श्रीमद्भगवद्गीता पंचदशोऽध्यायः | Shrimadbhagvadgita panchadashodhyayah

श्रीमद्भगवद्गीता का पंचदश अध्याय एक अत्यंत महत्वपूर्ण अध्याय है जो परब्रह्मविद्या और भक्ति के मार्ग को समझाता है। इस अध्याय में भगवान कृष्ण अर्जुन को अनंत रूप में परमात्मा का दर्शन करवाते हैं और वह श्रद्धा और भक्ति के साथ ईश्वर की उपासना करने की महत्वपूर्णता को बताते हैं।

श्रीमद्भगवद्गीता पंचदशोऽध्यायः | Shrimadbhagvadgita panchadashodhyayah

अथ पंचदशोऽध्यायः ।

श्रीभगवानुवाच ।
ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम् ।
छंदांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित् ॥ 1 ॥

अधश्चोर्ध्वं प्रसृतास्तस्य शाखा गुणप्रवृद्धा विषयप्रवालाः।
अधश्च मूलान्यनुसंततानि कर्मानुबंधीनि मनुष्यलोके ॥ 2 ॥

न रूपमस्येह तथोपलभ्यते नांतो न चादिर्न च संप्रतिष्ठा।
अश्वत्थमेनं सुविरूढमूलमसंगशस्त्रेण दृढेन छित्त्वा ॥ 3 ॥

ततः पदं तत्परिमार्गितव्यं यस्मिन्गता न निवर्तंति भूयः।
तमेव चाद्यं पुरुषं प्रपद्ये यतः प्रवृत्तिः प्रसृता पुराणी ॥ 4 ॥

निर्मानमोहा जितसंगदोषा अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।
द्वंद्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञैर्गच्छंत्यमूढाः पदमव्ययं तत् ॥ 5 ॥

न तद्भासयते सूर्यो न शशांको न पावकः ।
यद्गत्वा न निवर्तंते तद्धाम परमं मम ॥ 6 ॥

ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः ।
मनःषष्ठानींद्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति ॥ 7 ॥

शरीरं यदवाप्नोति यच्चाप्युत्क्रामतीश्वरः ।
गृहीत्वैतानि संयाति वायुर्गंधानिवाशयात् ॥ 8 ॥

श्रोत्रं चक्षुः स्पर्शनं च रसनं घ्राणमेव च ।
अधिष्ठाय मनश्चायं विषयानुपसेवते ॥ 9 ॥

उत्क्रामंतं स्थितं वापि भुंजानं वा गुणान्वितम् ।
विमूढा नानुपश्यंति पश्यंति ज्ञानचक्षुषः ॥ 10 ॥

यतंतो योगिनश्चैनं पश्यंत्यात्मन्यवस्थितम् ।
यतंतोऽप्यकृतात्मानो नैनं पश्यंत्यचेतसः ॥ 11 ॥

यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम् ।
यच्चंद्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम् ॥ 12 ॥

गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा ।
पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः ॥ 13 ॥

अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः ।
प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम् ॥ 14 ॥

सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च।
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदांतकृद्वेदविदेव चाहम् ॥ 15 ॥

द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च ।
क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते ॥ 16 ॥

उत्तमः पुरुषस्त्वन्यः परमात्मेत्युधाहृतः ।
यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वरः ॥ 17 ॥

यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तमः ।
अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथितः पुरुषोत्तमः ॥ 18 ॥

यो मामेवमसंमूढो जानाति पुरुषोत्तमम् ।
स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत ॥ 19 ॥

इति गुह्यतमं शास्त्रमिदमुक्तं मयानघ ।
एतद्बुद्ध्वा बुद्धिमान्स्यात्कृतकृत्यश्च भारत ॥ 20 ॥

ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे

पुरुषोत्तमयोगो नाम पंचदशोऽध्यायः ॥15 ॥

श्रीमद्भगवद्गीता पंचदशोऽध्यायः सुनें | Listen Shrimadbhagvadgita panchadashodhyayah

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श्रीमद्भगवद्गीता पंचदशोऽध्यायः के लाभ | Benefits of Shrimadbhagvadgita panchadashodhyayah

  1. परमात्मा के साथ एकात्मता: पंचदश अध्याय का सत्संग और अध्यात्मिक अनुसंधान के माध्यम से व्यक्ति अपनी आत्मा को परमात्मा के साथ एकात्मता में महसूस कर सकता है।
  2. भक्ति के माध्यम से शांति: इस अध्याय की शिक्षा का अनुसरण करके भक्ति के माध्यम से व्यक्ति अपने मन को शांत, संतुलित, और ध्यानमय बना सकता है।
  3. सच्चे प्रेम की अनुभूति: भगवान के प्रति आदर्श भक्ति और प्रेम के माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन को प्रासंगिक और सत्यप्रिय बना सकता है।

महत्वपूर्ण सिद्धांत:

  1. परब्रह्मविद्या: यह अध्याय आत्मा का परब्रह्म से मिलन करने के मार्ग को विस्तार से बताता है। भक्ति और ध्यान के माध्यम से परमात्मा की साकार और निराकार स्वरूप की पहचान होती है।
  2. ईश्वर भक्ति: पंचदश अध्याय में ईश्वर के प्रति अद्वितीय भक्ति के महत्व को प्रमोट किया जाता है। भक्ति भाव से भक्त अपने मन, वचन, और क्रियाओं को भगवान के समर्थन में समर्पित करता है।
  3. भक्ति के अलावा कोई और साधना नहीं: इस अध्याय में भगवान कृष्ण ने स्पष्ट रूप से बताया है कि परब्रह्म की प्राप्ति में भक्ति ही सर्वोत्तम साधना है, और कोई अन्य साधना नहीं है।

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