कनकधारा स्तोत्रम् | Kanakdhara Stotram
कनकधारा स्तोत्रम हिंदू दार्शनिक आदि शंकराचार्य द्वारा लिखा गया था। कहा जाता है, एक युवा लड़के के रूप में, आदि शंकराचार्य अपना दोपहर के भोजन के लिए भिक्षा मांग रहे थे और एक बहुत ही गरीब ब्राह्मण महिला के दरवाजे पर आ गए। अपने घर में कुछ भी खाने योग्य नहीं होने के कारण, महिला ने अपने घर की तलाशी ली, केवल एक आंवले का फल खोजने के लिए, जिसे उसने झिझकते हुए शंकराचार्य को चढ़ाया। शंकराचार्य इस महिला की अविश्वसनीय निःस्वार्थता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने कविता में फूट डाला और देवी लक्ष्मी की स्तुति में 22 छंद गाए। भजन की सुंदरता से प्रसन्न होकर, देवी ने तुरंत महिला के घर को शुद्ध सोने से बने आंवले से भर दिया।
कनकधारा स्तोत्रम् | Kanakdhara Stotram
वंदे वंदारु मंदारमिंदिरानंदकंदलम् ।
अमंदानंदसंदोह बंधुरं सिंधुराननम् ॥
अंगं हरेः पुलकभूषणमाश्रयंती
भृंगांगनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अंगीकृताखिलविभूतिरपांगलीला
मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवतायाः ॥ 1 ॥
मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि ।
मालादृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागरसंभवायाः ॥ 2 ॥
विश्वामरेंद्रपदविभ्रमदानदक्ष-
-मानंदहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्थ-
-मिंदीवरोदरसहोदरमिंदिरायाः ॥ 3 ॥
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुंद-
-मानंदकंदमनिमेषमनंगतंत्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजंगशयांगनायाः ॥ 4 ॥
बाह्वंतरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥ 5 ॥
कालांबुदालिललितोरसि कैटभारे-
-र्धाराधरे स्फुरति या तटिदंगनेव ।
मातुस्समस्तजगतां महनीयमूर्तिः
भद्राणि मे दिशतु भार्गवनंदनायाः ॥ 6 ॥
प्राप्तं पदं प्रथमतः खलु यत्प्रभावा-
-न्मांगल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन ।
मय्यापतेत्तदिह मंथरमीक्षणार्धं
मंदालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥ 7 ॥
दद्याद्दयानुपवनो द्रविणांबुधारा-
-मस्मिन्न किंचन विहंगशिशौ विषण्णे ।
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायणप्रणयिनीनयनांबुवाहः ॥ 8 ॥
इष्टाविशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र-
-दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते ।
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदर दीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥ 9 ॥
गीर्देवतेति गरुडध्वजसुंदरीति
शाकंभरीति शशिशेखरवल्लभेति ।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥ 10 ॥
श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै ।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै ॥ 11 ॥
नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूम्यै ।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ॥ 12 ॥
नमोऽस्तु हेमांबुजपीठिकायै
नमोऽस्तु भूमंडलनायिकायै ।
नमोऽस्तु देवादिदयापरायै
नमोऽस्तु शारंगायुधवल्लभायै ॥ 13 ॥
नमोऽस्तु देव्यै भृगुनंदनायै
नमोऽस्तु विष्णोरुरसिस्थितायै ।
नमोऽस्तु लक्ष्म्यै कमलालयायै
नमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै ॥ 14 ॥
नमोऽस्तु कांत्यै कमलेक्षणायै
नमोऽस्तु भूत्यै भुवनप्रसूत्यै ।
नमोऽस्तु देवादिभिरर्चितायै
नमोऽस्तु नंदात्मजवल्लभायै ॥ 15 ॥
संपत्कराणि सकलेंद्रियनंदनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि ।
त्वद्वंदनानि दुरिताहरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयंतु मान्ये ॥ 16 ॥
यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसंपदः ।
संतनोति वचनांगमानसै-
-स्त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥ 17 ॥
सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगंधमाल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥ 18 ॥
दिग्घस्तिभिः कनककुंभमुखावसृष्ट-
-स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुतांगीम् ।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष-
-लोकाधिनाथ गृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ॥ 19 ॥
कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं
करुणापूर तरंगितैरपांगैः ।
अवलोकय मामकिंचनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥ 20 ॥
बिल्वाटवीमध्यलसत्सरोजे
सहस्रपत्रे सुखसन्निविष्टाम् ।
अष्टापदांभोरुहपाणिपद्मां
सुवर्णवर्णां प्रणमामि लक्ष्मीम् ॥ 21 ॥
कमलासनपाणिना ललाटे
लिखितामक्षरपंक्तिमस्य जंतोः ।
परिमार्जय मातरंघ्रिणा ते
धनिकद्वारनिवास दुःखदोग्ध्रीम् ॥ 22 ॥
अंभोरुहं जन्मगृहं भवत्याः
वक्षःस्थलं भर्तृगृहं मुरारेः ।
कारुण्यतः कल्पय पद्मवासे
लीलागृहं मे हृदयारविंदम् ॥ 23 ॥
स्तुवंति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम् ।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभाजिनो
भवंति ते भुवि बुधभाविताशयाः ॥ 24 ॥
सुवर्णधारास्तोत्रं यच्छंकराचार्य निर्मितम् ।
त्रिसंध्यं यः पठेन्नित्यं स कुबेरसमो भवेत् ॥
इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य श्रीगोविंदभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य श्रीमच्छंकरभगवतः कृतौ कनकधारास्तोत्रं संपूर्णम् ।
सुने कनकधारा स्तोत्रम् | Listen Kanakdhara Stotram
कनकधारा स्तोत्रम् पाठ के लाभ | Benefits of Kanakdhara Stotram
कनकधारा स्तोत्रम् के पाठ से अनेक लाभ होते हैं। इसके निम्न लाभ हैं:
- शुभ फलों की प्राप्ति: कनकधारा स्तोत्रम् का पाठ करने से शुभ फल प्राप्त होता है। यह श्लोक संग्रह व्यक्ति के जीवन में खुशी, सफलता, शांति, सुख, समृद्धि और सम्पन्नता आदि के लिए वरदान होता है।
- धन का संचयन : कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती ही जिससे घर में धन धन्य, वैभव में वृद्धि होती है।
- शरीर और मन को शुद्ध करना: कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से मानसिक चंचलता, तनाव और चिंताओं से छुटकारा मिलता है। इसके अलावा, यह श्लोक संग्रह व्यक्ति के शरीर को भी शुद्ध करता है और उसे रोगों से बचाता है।
- संयम बढ़ाना: कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति का संयम बढ़ता है|
- मानसिक शांति: कनकधारा स्तोत्र के पाठ से मन शांत होता है और तनाव कम होता है।
- माता लक्ष्मी की कृपा: कनकधारा स्तोत्र के पाठ से माता लक्ष्मी की कृपा मिलती है और उनकी आशीर्वाद से जीवन में सफलता मिलती है।
- संतुलित जीवन: कनकधारा स्तोत्र के पाठ से जीवन में संतुलितता आती है और अंतरंग शांति होती है।
- समस्त दुःखों से मुक्ति: कनकधारा स्तोत्र के पाठ से समस्त दुःखों से मुक्ति मिलती है।
- संघर्ष का समाधान: कनकधारा स्तोत्र के पाठ से संघर्षों का समाधान होता है और जीवन में सफलता प्राप्त होती है।
इसका पाठ माता लक्ष्मी की पूजा और उनकी महिमा के गुणगान के लिए किया जाता है। कनकधारा स्तोत्र का पाठ शुक्रवार के दिन करने का विशेष महत्व है। यह श्लोक संग्रह हिंदू धर्म के विभिन्न पाठ्यक्रमों में उपयोग किया जाता है।