विन्ध्येश्वरी चालीसा | Vindhyeshvari Chalisa

विंध्यवासिनी, महामाया या योगमाया माँ दुर्गा का ही स्वरूप है। उनकी पहचान आदि पराशक्ति के रूप में की जाती है। माँ विन्ध्यासिनी त्रिकोण यन्त्र पर स्थित तीन रूपों को धारण करती हैं जहां स्वयं माँ आदिशक्ति महालक्ष्मी विंध्यवासिनी के रूप में, अष्टभुजी अर्थात महासरस्वती और कालीखोह स्थित महाकाली के रूप में विराजमान हैं। मान्यता अनुसार सृष्टि आरंभ होने से पूर्व और प्रलय के बाद भी इस क्षेत्र का अस्तित्व कभी समाप्त नहीं हो सकता।

विन्ध्येश्वरी चालीसा | Vindhyeshvari Chalisa

॥ दोहा ॥
नमो नमो विन्ध्येश्वरी, नमो नमो जगदम्ब ।
सन्तजनों के काज में, करती नहीं विलम्ब ॥

जय जय जय विन्ध्याचल रानी।
आदिशक्ति जगविदित भवानी ॥

सिंहवाहिनी जै जगमाता ।
जै जै जै त्रिभुवन सुखदाता ॥

कष्ट निवारण जै जगदेवी ।
जै जै सन्त असुर सुर सेवी ॥

महिमा अमित अपार तुम्हारी ।
शेष सहस मुख वर्णत हारी ॥

दीनन को दु:ख हरत भवानी ।
नहिं देखो तुम सम कोउ दानी ॥

सब कर मनसा पुरवत माता ।
महिमा अमित जगत विख्याता ॥

जो जन ध्यान तुम्हारो लावै ।
सो तुरतहि वांछित फल पावै ॥

तुम्हीं वैष्णवी तुम्हीं रुद्रानी ।
तुम्हीं शारदा अरु ब्रह्मानी ॥

रमा राधिका श्यामा काली ।
तुम्हीं मातु सन्तन प्रतिपाली ॥

उमा माध्वी चण्डी ज्वाला ।
वेगि मोहि पर होहु दयाला ॥ 10

तुम्हीं हिंगलाज महारानी ।
तुम्हीं शीतला अरु विज्ञानी ॥

दुर्गा दुर्ग विनाशिनी माता ।
तुम्हीं लक्ष्मी जग सुख दाता ॥

तुम्हीं जाह्नवी अरु रुद्रानी ।
हे मावती अम्ब निर्वानी ॥

अष्टभुजी वाराहिनि देवा ।
करत विष्णु शिव जाकर सेवा ॥

चौंसट्ठी देवी कल्यानी ।
गौरि मंगला सब गुनखानी ॥

पाटन मुम्बादन्त कुमारी ।
भाद्रिकालि सुनि विनय हमारी ॥

बज्रधारिणी शोक नाशिनी ।
आयु रक्षिनी विन्ध्यवासिनी ॥

जया और विजया वैताली ।
मातु सुगन्धा अरु विकराली ॥

नाम अनन्त तुम्हारि भवानी ।
वरनै किमि मानुष अज्ञानी ॥

जापर कृपा मातु तब होई ।
जो वह करै चाहे मन जोई ॥ 20

कृपा करहु मोपर महारानी ।
सिद्ध करहु अम्बे मम बानी ॥

जो नर धरै मातु कर ध्याना ।
ताकर सदा होय कल्याना ॥

विपति ताहि सपनेहु नाहिं आवै ।
जो देवीकर जाप करावै ॥

जो नर कहँ ऋण होय अपारा ।
सो नर पाठ करै शत बारा ॥

निश्चय ऋण मोचन होई जाई ।
जो नर पाठ करै चित लाई ॥

अस्तुति जो नर पढ़े पढ़अवे ।
या जग में सो बहु सुख पावे ॥

जाको व्याधि सतावे भाई ।
जाप करत सब दूर पराई ॥

जो नर अति बन्दी महँ होई ।
बार हजार पाठ करि सोई ॥

निश्चय बन्दी ते छुट जाई ।
सत्य वचन मम मानहु भाई ॥

जापर जो कछु संकट होई ।
निश्चय देविहिं सुमिरै सोई ॥ 30

जा कहँ पुत्र होय नहिं भाई ।
सो नर या विधि करे उपाई ॥

पाँच वर्ष जो पाठ करावै ।
नौरातन महँ विप्र जिमावै ॥

निश्चय होहिं प्रसन्न भवानी ।
पुत्र देहिं ता कहँ गुणखानी ॥

ध्वजा नारियल आन चढ़ावै ।
विधि समेत पूजन करवावै ॥

नित प्रति पाठ करै मन लाई ।
प्रेम सहित नहिं आन उपाई ॥

यह श्री विन्ध्याचल चालीसा ।
रंक पढ़त होवे अवनीसा ॥

यह जन अचरज मानहु भाई ।
कृपा दृश्टि जापर होइ जाई ॥

जै जै जै जग मातु भवानी ।
कृपा करहु मोहि निज जन जानी ॥ 40

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विन्ध्येश्वरी चालीसा के लाभ | Vindhyeshvari Chalisa Ke Labh

विन्ध्येश्वरी चालीसा का पाठ करने के विभिन्न लाभ प्राप्त होते हैं, इस चालीसा का नियमित पाठ करने से आप अपने शत्रुओं के ऊपर विजय प्राप्त कर करते है। इस चालीसा के पाठ से व्यक्ति के आध्यात्मिक प्रभाव पड़ता है। सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। विन्ध्येश्वरी चालीसा का पाठ करने से जीवन में नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव नहीं पड़ता है, विन्ध्येश्वरी चालीसा के नियमित पाठ को करने से आर्थिक लाभ की प्राप्ति होती है। विन्ध्येश्वरी चालीसा का नियमित पाठ कर व्यक्ति अपना खोया हुआ आत्मविश्वास और ऐश्वर्य भी वापस प्राप्त कर सकता है।

विन्ध्येश्वरी चालीसा की विधि व सावधानियां | Vindhyeshvari Chalisa Ki Vidhi & Savdhaniyan

विन्ध्येश्वरी चालीसा का पाठ करने के लिए सर्वप्रथम सूर्योदय से पूर्व स्नान करके साफ सुथरे वस्त्र धारण करें । तत्पश्चात एक लकड़ी की चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछा कर, उस पर माँ विन्ध्येश्वरी की प्रतिमा विराजित करें | उसके बाद सबसे पहले माता विन्ध्येश्वरी की फूल, रोली, धूप, दीप इत्यादि से पूजा अर्चना करें। अब विन्ध्येश्वरी चालीसा का पाठ शुरू करें। चालीसा पाठन में शीघ्रता न करें तथा मन में बुरे विचार न लाएं।

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