निर्वाण षट्कम् | Nirvan Shatakam

आदि गुरु श्री शंकराचार्य के अपने गुरु बाल शंकर से सर्वप्रथम भेंट के समय उनके गुरु ने उनसे पूछा की तुम्हारा परिचय क्या है ?, तुम कौन हो ? आदि गुरु शंकराचार्य जी ने इस पर जो उत्तर दिया वही निर्वाण षट्कम के रूप में जाना जाता है। आदि शंकराचार्य द्वारा रचित है, जब कोई श्रोता निर्वाण षट्कम को सुनता है तप इस स्तोत्र को सुनकर मुग्‍ध हो जाता है। निर्वाण षट्कम का मूल भाव वैराग्य है। इस मंत्र को ब्रह्मचर्य मार्ग का समानार्थी माना जाता है। इसकी ध्‍वनि हमारे अंतरतम की गहराइयों में हलचल पैदा कर देती है।

निर्वाण षट्कम् स्तोत्र | Nirvan Shatakam Stotra

शिवोऽहं शिवोऽहं, शिवोऽहं शिवोऽहं, शिवोऽहं शिवोऽहं

मनो बुध्यहंकार चित्तानि नाहं
न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राणनेत्रे ।
न च व्योम भूमिर्-न तेजो न वायुः
चिदानंद रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥ 1 ॥

न च प्राण संज्ञो न वैपंचवायुः
न वा सप्तधातुर्-न वा पंचकोशाः ।
नवाक्पाणि पादौ न चोपस्थ पायू
चिदानंद रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥ 2 ॥

न मे द्वेषरागौ न मे लोभमोहो
मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः ।
न धर्मो न चार्धो न कामो न मोक्षः
चिदानंद रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥ 3 ॥

न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं
न मंत्रो न तीर्थं न वेदा न यज्ञः ।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता
चिदानंद रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥ 4 ॥

न मृत्युशंका न मे जाति भेदः
पिता नैव मे नैव माता न जन्मः ।
न बंधुर्-न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यः
चिदानंद रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥ 5 ॥

अहं निर्विकल्पो निराकार रूपो
विभूत्वाच्च सर्वत्र सर्वेंद्रियाणाम् ।
न वा बंधनं नैवर्-मुक्ति न बंधः ।
चिदानंद रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥ 6 ॥

शिवोऽहं शिवोऽहं, शिवोऽहं शिवोऽहं, शिवोऽहं शिवोऽहं

सुने निर्वाण षट्कम् | Listen Nirvan Shatakam

Nirvan Shatakam | by ॐ नम: शिवाय | A hymn in praise of Adi Shankaracharya

निर्वाण षट्कम् का हिंदी अर्थ | Hindi meaning of Nirvana Shatkam

मैं न मन हूँ, न बुद्धि हूँ, न अहंकार हूँ, न मन हूँ। मैं न तो कान हूं, न जिह्वा, न नासिका, न आंखें हूं। मैं न आकाश हूँ, न पृथ्वी हूँ, न अग्नि हूँ, न वायु हूँ। मैं शुद्ध चैतन्य, शाश्वत, अनंत शिव हूं।

मैं न तो प्राण हूँ और न ही पाँच वायु हूँ। मैं न तो सात धातु हूं और न ही पांच कोश। मैं न तो वाणी हूँ, न हाथ हूँ, न पाँव हूँ, न उत्सर्जनेन्द्रियाँ हूँ। मैं शुद्ध चैतन्य, शाश्वत, अनंत शिव हूं।

मुझमें न द्वेष है, न मोह है, न लोभ है, न आसक्ति है। मुझे न तो गर्व है और न ही ईर्ष्या। मैं धर्म, धन, काम और मोक्ष से परे हूं। मैं शुद्ध चैतन्य, शाश्वत, अनंत शिव हूं।

मैं पुण्य, पाप, सुख और दु:ख से पृथक् हूँ। मैं न मन्त्र हूँ, न तीर्थ हूँ, न ज्ञान हूँ, न यज्ञ हूँ। मैं न तो अन्न (भोग की वस्तु) हूँ, न भोग का अनुभव हूँ, न भोक्ता हूँ। मैं शुद्ध चैतन्य, शाश्वत, अनंत शिव हूं।

मुझे न मौत का डर है, न जाति के भेदभाव का। मेरा न पिता है, न माता, न मेरा जन्म हुआ, न मेरा कोई भाई है, न मित्र है, न गुरु है, न शिष्य है। मैं शुद्ध चैतन्य, शाश्वत, अनंत शिव हूं।

मैं निर्विकल्प निराकार हूँ। चेतना के रूप में, मैं हर जगह, सभी इंद्रियों में मौजूद हूं। न तो मैं किसी चीज से जुड़ा हूं और न ही मैं इससे मुक्त हूं। मैं शुद्ध चैतन्य, शाश्वत, अनंत शिव हूं।

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