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वासुदेव स्तोत्रम् | Vasudev Stotram

वासुदेव स्तोत्रम् एक प्रशंसा स्तोत्र है जो भगवान वासुदेव (भगवान विष्णु का एक अन्तर्मुख रूप) की महिमा और दिव्य गुणों की स्तुति करता है। इस स्तोत्र के पाठ से भक्तों को भगवान के प्रति प्रेम, श्रद्धा, और समर्पण का अनुभव होता है।

वासुदेव स्तोत्रम् | Vasudev Stotram

(श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि पंचषष्टितमोऽध्याये श्लो: 47)

विश्वावसुर्विश्वमूर्तिर्विश्वेशो
विष्वक्सेनो विश्वकर्मा वशी च ।
विश्वेश्वरो वासुदेवोऽसि तस्मा-
-द्योगात्मानं दैवतं त्वामुपैमि ॥ 47 ॥

जय विश्व महादेव जय लोकहितेरत ।
जय योगीश्वर विभो जय योगपरावर ॥ 48 ॥

पद्मगर्भ विशालाक्ष जय लोकेश्वरेश्वर ।
भूतभव्यभवन्नाथ जय सौम्यात्मजात्मज ॥ 49 ॥

असंख्येयगुणाधार जय सर्वपरायण ।
नारायण सुदुष्पार जय शारंगधनुर्धर ॥ 50 ॥

जय सर्वगुणोपेत विश्वमूर्ते निरामय ।
विश्वेश्वर महाबाहो जय लोकार्थतत्पर ॥ 51 ॥

महोरगवराहाद्य हरिकेश विभो जय ।
हरिवास दिशामीश विश्वावासामिताव्यय ॥ 52 ॥

व्यक्ताव्यक्तामितस्थान नियतेंद्रिय सत्क्रिय ।
असंख्येयात्मभावज्ञ जय गंभीरकामद ॥ 53 ॥

अनंतविदित ब्रह्मन् नित्यभूतविभावन ।
कृतकार्य कृतप्रज्ञ धर्मज्ञ विजयावह ॥ 54 ॥
गुह्यात्मन् सर्वयोगात्मन् स्फुट संभूत संभव ।
भूताद्य लोकतत्त्वेश जय भूतविभावन ॥ 55 ॥

आत्मयोने महाभाग कल्पसंक्षेपतत्पर ।
उद्भावनमनोभाव जय ब्रह्मजनप्रिय ॥ 56 ॥

निसर्गसर्गनिरत कामेश परमेश्वर ।
अमृतोद्भव सद्भाव मुक्तात्मन् विजयप्रद ॥ 57 ॥

प्रजापतिपते देव पद्मनाभ महाबल ।
आत्मभूत महाभूत सत्वात्मन् जय सर्वदा ॥ 58 ॥

पादौ तव धरा देवी दिशो बाहु दिवं शिरः ।
मूर्तिस्तेऽहं सुराः कायश्चंद्रादित्यौ च चक्षुषी ॥ 59 ॥

बलं तपश्च सत्यं च कर्म धर्मात्मजं तव ।
तेजोऽग्निः पवनः श्वास आपस्ते स्वेदसंभवाः ॥ 60 ॥

अश्विनौ श्रवणौ नित्यं देवी जिह्वा सरस्वती ।
वेदाः संस्कारनिष्ठा हि त्वयीदं जगदाश्रितम् ॥ 61 ॥

न संख्या न परीमाणं न तेजो न पराक्रमम् ।
न बलं योगयोगीश जानीमस्ते न संभवम् ॥ 62 ॥

त्वद्भक्तिनिरता देव नियमैस्त्वां समाश्रिताः ।
अर्चयामः सदा विष्णो परमेशं महेश्वरम् ॥ 63 ॥

ऋषयो देवगंधर्वा यक्षराक्षसपन्नगाः ।
पिशाचा मानुषाश्चैव मृगपक्षिसरीसृपाः ॥ 64 ॥

एवमादि मया सृष्टं पृथिव्यां त्वत्प्रसादजम् ।
पद्मनाभ विशालाक्ष कृष्ण दुःखप्रणाशन ॥ 65 ॥

त्वं गतिः सर्वभूतानां त्वं नेता त्वं जगद्गुरुः ।
त्वत्प्रसादेन देवेश सुखिनो विबुधाः सदा ॥ 66 ॥

पृथिवी निर्भया देव त्वत्प्रसादात्सदाऽभवत् ।
तस्माद्भव विशालाक्ष यदुवंशविवर्धनः ॥ 67 ॥

धर्मसंस्थापनार्थाय दैत्यानां च वधाय च ।
जगतो धारणार्थाय विज्ञाप्यं कुरु मे प्रभो ॥ 68 ॥

यत्तत्परमकं गुह्यं त्वत्प्रसादादिदं विभो ।
वासुदेव तदेतत्ते मयोद्गीतं यथातथम् ॥ 69 ॥

सृष्ट्वा संकर्षणं देवं स्वयमात्मानमात्मना ।
कृष्ण त्वमात्मनो साक्षी प्रद्युम्नं चात्मसंभवम् ॥ 70 ॥

प्रद्युम्नादनिरुद्धं त्वं यं विदुर्विष्णुमव्ययम् ।
अनिरुद्धोऽसृजन्मां वै ब्रह्माणं लोकधारिणम् ॥ 71 ॥

वासुदेवमयः सोऽहं त्वयैवास्मि विनिर्मितः ।
[तस्माद्याचामि लोकेश चतुरात्मानमात्मना।]
विभज्य भागशोऽऽत्मानं व्रज मानुषतां विभो ॥ 72 ॥

तत्रासुरवधं कृत्वा सर्वलोकसुखाय वै ।
धर्मं प्राप्य यशः प्राप्य योगं प्राप्स्यसि तत्त्वतः ॥ 73 ॥

त्वां हि ब्रह्मर्षयो लोके देवाश्चामितविक्रम ।
तैस्तैर्हि नामभिर्युक्ता गायंति परमात्मकम् ॥ 74 ॥

स्थिताश्च सर्वे त्वयि भूतसंघाः
कृत्वाश्रयं त्वां वरदं सुबाहो ।
अनादिमध्यांतमपारयोगं
लोकस्य सेतुं प्रवदंति विप्राः ॥ 75 ॥

इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि पंचषष्टितमोऽध्याये वासुदेव स्तोत्रम् ।

वासुदेव स्तोत्रम् सुनें | Listen Vasudev Stotram

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वासुदेव स्तोत्रम् के लाभ | Benefits of Vasudev Stotram

  1. भक्ति और श्रद्धा: वासुदेव स्तोत्रम् का जप करने से भक्तों की भक्ति और श्रद्धा में वृद्धि होती है, जो आत्मिक उन्नति का मार्गदर्शन करती है।
  2. आत्मा के साथ संयोग: इस स्तोत्र का जप करने से भक्त अपनी आत्मा को भगवान के साथ संयोगित करता है और दिव्यता की अनुभूति होती है।
  3. जीवन की सभी क्षेत्रों में समृद्धि: वासुदेव स्तोत्रम् का नियमित जप करने से भक्तों को जीवन के सभी क्षेत्रों में समृद्धि और सफलता मिलती है।

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