अधिक मास : हिंदू पंचांग में अनूठा और महत्वपूर्ण मास
इस साल अधिक मास होने से अधिकतर लोगों को इसके बारे में अधिक से अधिक जानकारी चाहिए। हिंदू पंचांग में अधिक मास का बहुत अत्यधिक महत्व है। अलग-अलग संस्कृतियों में इसे अलग अलग नाम से भी जाना जाता है जैसे मलमास, पुरुषोत्तम मास, लौंद का महिना इत्यादि| इससे जुड़ी कहानियां पुराणों में मिलती है। अधिक मास का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है कि वह 3 साल में एक बार आता है तथा उस वर्ष 12 मास की जगह हिंदू पंचांग में 13 मास होते है, इसी वजह से उसका आध्यात्मिक मूल्य और भी बढ़ जाता है।
जैसे कि अंग्रेजी कैलेंडर में लीप ईयर होता है, जिसकी वजह से हर 4 साल में एक बार फरवरी के महीने में 1 दिन ज्यादा होता है, यानी फरवरी में 28 की जगह 29 दिन होते है। इसी तरह उस वर्ष 365 दिन की जगह 366 दिन होते है। 2016, 2020, 2024, 2028 आदि लीप ईयर होते है। अंग्रेजी कैलेंडर में काल की गणना सूर्य से होती है।
इसी तरह हिंदू पंचांग में भी 12 मास की जगह हर 3 वर्ष में 13 मास का वर्ष आता है। आइए देखते हैं कि 13 मास का वर्ष कैसे हो सकता है?
अधिक मास क्या है? (Adhik Maas Kya Hai?)
हिंदू पंचांग में काल की गणना चंद्र की परिक्रमा से होती है। इसी कारण हिंदू पंचांग का नववर्ष तथा सारे मास अंग्रेजी पंचांग से अलग है। हिंदू पंचांग की शुरुआत चैत्र मास से होती है। पृथ्वी से चंद्र की परिक्रमा के दिन, सूर्य की परिक्रमा से कम होती है। इसलिए हिंदू वर्ष में अंग्रेजी कैलेंडर से कम दिन होते है। इन दिनों को जोड़ते हुए, हर तीन साल में एक मास जितने दिन रह जाते है जो अधिक मास में इन्हे पूरा कर देते है। इसकी गणित आगे इसी लेख में समझा रखी है।
हिंदू पंचांग में अधिक मास कैसे आया? (Hindu Panchaang Mein Adhik Maas Kaise Aaya?)
जैसे कि आपको पहले ही बताया गया है कि चंद्र की परिक्रमा के अनुसार हिंदू पंचांग में मांस की गणना की जाती है। इस वजह से हिंदू मास 28 से 29 दिन का होता है, क्योंकि चंद्र की परिक्रमा लगभग 28 से 29 दिनों में हो जाती है। इस तरह हिंदू पंचांग का पूरा वर्ष लगभग 354 दिन का ही होता है।
अंग्रेजी कैलेंडर में 365 दिन होते है, तथा हिंदू पंचांग में इससे 10 से 11 दिन कम रहते हैं। यह 10 से 11 दिन 3 साल में पूरा एक मास जितना समय हो जाता है। इसलिए 3 साल होने के बाद हिंदू पंचांग में अधिक मास होता है। अधिक मास में जो ज्यादा दिन बच गए थे वह आ जाते हैं।
पुराणों में अधिक मास का महत्व (Puraanon Mein Adhik Maas Ka Mahatva)
हिन्दू पवित्र ग्रंथ पुराणों में कई कथाओं में अधिक मास का वर्णन मिलता है। सबसे अधिक विस्तृत तथा प्रचलित वर्णन भगवान विष्णु के अवतार नरसिंह और हिरण्यकश्यप की कहानी में मिलती है। इस कहानी में अधिक मास का वर्णन रोचक रूप से किया गया है।
कहानी का सारांश यह है दैत्य राक्षस हिरण्यकश्यप जो की एक राजा भी था। उसका बेटा प्रहलाद परम विष्णु भक्त होता है। प्रहलाद की विष्णु भक्ति से हिरण्यकश्यप क्रोधित हो उठता है। वह कई बार प्रहलाद को मारने की कोशिश करता है लेकिन हमेशा भगवान विष्णु उसे बचा लेते हैं। भगवान विष्णु हिरण्यकश्यप के छोटे भाई तथा उसकी बहन होलिका का भी वध कर देते हैं। इस पर हिरण्यकश्यप का गुस्सा और बढ़ जाता है तथा वह भगवान ब्रह्मा की साधना करके उनसे अमर होने का वरदान मांगता है। ब्रह्मा जी बोलते हैं कि वह हिरण्यकश्यप को अमर तो नहीं कर सकते तो, हिरण्यकश्यप बोलता है कि वह ऐसा वरदान दे कि कोई भी उसे न दिन में मार सके ना रात में मार सके। ना ही कोई भी उसे 12 मास में उसका वध न कर सकें तथा कोई भी शस्त्र उसे मार नहीं कर सकता।
ब्रह्मा जी से वरदान पाकर हिरण्यकश्यप प्रहलाद को भगवान विष्णु के बारे में पूछता है। अपने भक्त पर संकट आता देख भगवान विष्णु नरसिंह का रूप लेकर हिरण्यकश्यप का वध कर देते हैं। उस समय अधिक मास होने से तथा नरसिंह अपने हाथों से वध करते है, इसलिए हिरण्यकश्यप का वरदान असफल हो जाता है।
इस कहानी से अधिक मास का महत्व और भी बढ़ जाता है तथा आध्यात्मिक लोक में भी इस मास का बहुत अधिक महत्व है।
महादेव और ब्रह्मा जी ने अधिक मास का भगवान बनने से क्यों मना किया? (Mahaadev Aur Brahma Ji Ne Adhik Maas Ka Bhagavan Banane Se Kyon Mana Kiya?)
जब महादेव जी तथा ब्रह्मा जी से पूछा गया कि वे अधिक मास के भगवान बनना चाहते हैं तो उन्होंने साफ साफ मना कर दिया। उनका मना करने के कारण कहीं स्पष्ट नहीं है, माना जाता है अधिक मास में शुरुआत अमावस्या से शुरू होने से उसे अशुभ माना गया है।
जब कोई भी भगवान अधिक मास का अधिपति बनने के लिए तैयार नहीं हुआ तो स्वयं भगवान विष्णु ने अधिक मास की अधिपति स्वीकार की। यह जानकारी एक मान्यता के अनुसार है इसमें कई विशेषज्ञों के मतभेद भी हैं।
अधिक मास में कौन से कार्य करने योग्य है और कौन से नहीं? (Adhik Maas Mein Kaun Se Kaarya Karane Yogya Hai Aur Kaun Se Nahin?)
आध्यात्मिक गुरु के अनुसार अधिक मास में किसी भी अच्छे कार्य की शुरुआत नहीं करनी चाहिए। इसी वजह से अधिक मास में कभी भी शादी आदि शुभ कार्यों के लिए मुहूर्त नहीं मिलता है। इसलिए इस मास में अधिक से अधिक धर्म ध्यान तथा आध्यात्मिकता में लीन होना चाहिए।
अधिक मास में दरिद्रता से कैसे मुक्ति पाएं? (Adhik Maas Mein Daridrata Se Kaise Mukti Payein?
पुराणों के अनुसार अधिक मास में अगर मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना करते हैं तो मनुष्य की दरिद्रता दूर हो जाती है। अधिक मास के देवता भगवान विष्णु के होने से, इस मास में माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना करने से मनुष्य की दरिद्रता जल्द से जल्द दूर हो जाती है तथा उसे कभी धन की कमी नहीं होती है।
2023 – 2024 में अधिक मास कब है? (2023 – 2024 Mein Adhik Maas Kab Hai?)
जैसे कि आपको पहले ही बताया गया है कि अधिक मास 3 साल में एक बार आता है। इसलिए इस वर्ष ( 2023 ) में अधिक मास जुलाई माह में शुरू हो रहा है। 2023 में अधिक मास 17 जुलाई से 19 अगस्त तक है।
अधिक मास हर 3 साल में एक बार आने की वजह से वर्ष 2024 में अधिक मास नहीं है। अगला अधिक मास अब 2026 में आने की संभावना है।
अधिक मास में पड़ने वाले प्रमुख अवसर व तिथियां
जैसे कि आपको पहले ही बताया जा चुका है कि अधिक मास में भगवान विष्णु की अराधना का कई अधिक महत्व है। वर्ष 2023 के अधिक मास में कई धार्मिक तिथियां और त्योहार आने वाले हैं। इनकी जानकारी आपको क्रमबद्ध नीचे दी जा रही है।
21 जुलाई: गणेश चतुर्थी
24 जुलाई: सावन सोमवार
25 जुलाई: मंगला गौरी व्रत
31 जुलाई: सावन सोमवार
1 अगस्त: अधिक मास पूर्णिमा व्रत, मंगला गौरी व्रत
4 अगस्त: विभुवन संकष्टी चतुर्थी
7 अगस्त: सावन सोमवार
8 अगस्त: मंगला गौरी व्रत, कालाष्टमी
12 अगस्त: पुरुषोत्तम एकादशी
14 अगस्त: अधिक मास मासिक शिवरात्रि, सावन सोमवार
15 अगस्त: मंगला गौरी व्रत
16 अगस्त: अधिक मास अमावस्या
गणेश चतुर्थी, सावन सोमवार, मंगलागौर तथा अधिक मास की अमावस्या – यह 2023 के अधिक मास के कुछ महत्वपूर्ण त्योहार है।
इस तरह इस लेख में आपको अधिक मास के बारे में पूरी जानकारी दी गई है। मास के अधिपति भगवान विष्णु के होने से उनकी आराधना तथा माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना से पुण्य वाणी में वृद्धि होती है। अधिक मास का महत्व आध्यात्मिकता में अधिक है इससे जुड़ी कहानियां पुराणों में मिलती है। हर हिंदू त्यौहार की तरह या त्यौहार भी बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाता है।