देवी माहात्म्यं कीलक स्तोत्रम् | Devi Mahatmya Keelak Stotram

कीलक स्तोत्र का पाठ विशेषरूप से दुर्गा कवच स्तोत्र तथा दुर्गा अर्गला स्तोत्र के बाद किया जाता है। कीलक स्तोत्र दुर्गा सप्तशती (देवी महात्मय) के अंतर्गत आता है। विद्वानों के अनुसार देवी कवच, देवी अर्गला तथा कीलक स्तोत्र ये तीनों दुर्गा सप्तशती के छः अंग है। कीलक स्तोत्र का नियमित पाठ करने से देवी माँ की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
देवी माहात्म्यं कीलक स्तोत्रम् | Devi Mahatmya Keelak Stotram
अस्य श्री कीलक स्तोत्र महा मंत्रस्य । शिव ऋषिः । अनुष्टुप् छंदः । महासरस्वती देवता । मंत्रोदित देव्यो बीजम् । नवार्णो मंत्रशक्ति।श्री सप्त शती मंत्र स्तत्वं स्री जगदंबा प्रीत्यर्थे सप्तशती पाठांगत्वएन जपे विनियोगः ।
ॐ नमश्चंडिकायै
मार्कंडेय उवाच
ॐ विशुद्ध ज्ञानदेहाय त्रिवेदी दिव्यचक्षुषे ।
श्रेयः प्राप्ति निमित्ताय नमः सोमार्थ धारिणे ॥1॥
सर्वमेत द्विजानीयान्मंत्राणापि कीलकम् ।
सोऽपि क्षेममवाप्नोति सततं जाप्य तत्परः ॥2॥
सिद्ध्यंतुच्चाटनादीनि कर्माणि सकलान्यपि ।
एतेन स्तुवतां देवीं स्तोत्रवृंदेन भक्तितः ॥3॥
न मंत्रो नौषधं तस्य न किंचि दपि विध्यते ।
विना जाप्यं न सिद्ध्येत्तु सर्व मुच्चाटनादिकम् ॥4॥
समग्राण्यपि सेत्स्यंति लोकशज्ञ्का मिमां हरः ।
कृत्वा निमंत्रयामास सर्व मेव मिदं शुभम् ॥5॥
स्तोत्रंवै चंडिकायास्तु तच्च गुह्यं चकार सः ।
समाप्नोति सपुण्येन तां यथावन्निमंत्रणां ॥6॥
सोपिऽक्षेम मवाप्नोति सर्व मेव न संशयः ।
कृष्णायां वा चतुर्दश्यां अष्टम्यां वा समाहितः॥6॥
ददाति प्रतिगृह्णाति नान्य थैषा प्रसीदति ।
इत्थं रूपेण कीलेन महादेवेन कीलितम्। ॥8॥
यो निष्कीलां विधायैनां चंडीं जपति नित्य शः ।
स सिद्धः स गणः सोऽथ गंधर्वो जायते ध्रुवम् ॥9॥
न चैवा पाटवं तस्य भयं क्वापि न जायते ।
नाप मृत्यु वशं याति मृतेच मोक्षमाप्नुयात्॥10॥
ज्ञात्वाप्रारभ्य कुर्वीत ह्यकुर्वाणो विनश्यति ।
ततो ज्ञात्वैव संपूर्नं इदं प्रारभ्यते बुधैः ॥11॥
सौभाग्यादिच यत्किंचिद् दृश्यते ललनाजने ।
तत्सर्वं तत्प्रसादेन तेन जप्यमिदं शुभं ॥12॥
शनैस्तु जप्यमानेऽस्मिन् स्तोत्रे संपत्तिरुच्चकैः।
भवत्येव समग्रापि ततः प्रारभ्यमेवतत् ॥13॥
ऐश्वर्यं तत्प्रसादेन सौभाग्यारोग्यमेवचः ।
शत्रुहानिः परो मोक्षः स्तूयते सान किं जनै ॥14॥
चण्दिकां हृदयेनापि यः स्मरेत् सततं नरः ।
हृद्यं काममवाप्नोति हृदि देवी सदा वसेत् ॥15॥
अग्रतोऽमुं महादेव कृतं कीलकवारणम् ।
निष्कीलंच तथा कृत्वा पठितव्यं समाहितैः ॥16॥
॥ इति श्री भगवती कीलक स्तोत्रं समाप्तम् ॥
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देवी माहात्म्यं कीलक स्तोत्रम् पाठ के लाभ | Benefits of Devi Mahatmya Keelak Stotram
कीलक स्तोत्रम् के पाठ से अनेक लाभ होते हैं। इसके निम्न लाभ हैं:
- कीलक स्तोत्र पाठ का क्रम : दुर्गा कवच, दुर्गा अर्गला तथा कीलक स्तोत्र के पाठ क्रम के अलग-अलग मत है। योगरत्नावली के अनुसार के कीलक स्तोत्र का पाठ दुर्गा कवक तथा अर्गला के बाद करना चाहिए। चिदम्बरसहिंता में क्रम इससे अलग है।
- शुभ फलों की प्राप्ति: कीलक स्तोत्र का पाठ करने से शुभ फल प्राप्त होता है। यह श्लोक संग्रह व्यक्ति के जीवन में खुशी, सफलता, शांति, सुख, समृद्धि और सम्पन्नता आदि के लिए वरदान होता है।
- मन को शुद्ध करना: कीलक स्तोत्र का पाठ करने से मानसिक चंचलता, तनाव और चिंताओं से छुटकारा मिलता है। इसके अलावा, यह श्लोक संग्रह व्यक्ति के शरीर को भी शुद्ध करता है और उसे रोगों से बचाता है।
- संयम बढ़ाना: कीलक स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति का संयम बढ़ता है|
- मानसिक शांति: कीलक स्तोत्र के पाठ से मन शांत होता है और तनाव कम होता है।
