दुर्वा सूक्तम् | Durva Suktam
दुर्वा सूक्तम् एक प्रमुख सूक्त (हिंदू वेदिक मंत्र) है जो दुर्वा घास (धर्मी घास) की महिमा और आराधना को समर्पित है। इस सूक्त में दुर्वा की प्रशंसा, उसकी महत्ता, गुण, और पूजा-आराधना की विधियों का वर्णन किया गया है। यह सूक्त विभिन्न पौराणिक और धार्मिक ग्रंथों में प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है।
दुर्वा सूक्तम् | Durva Suktam
स॒ह॒स्र॒पर॑मा दे॒वी॒ श॒तमू॑ला श॒तांकु॑रा । सर्वग्ं॑ हरतु॑ मे पा॒पं॒ दू॒र्वा दुः॑स्वप्न॒ नाश॑नी । कांडा᳚त् कांडात् प्र॒रोहं॑ती॒ परु॑षः परुषः॒ परि॑ ।
ए॒वा नो॑ दूर्वे॒ प्रत॑नु स॒हस्रे॑ण श॒तेन॑ च । या श॒तेन॑ प्रत॒नोषि॑ स॒हस्रे॑ण वि॒रोह॑सि । तस्या᳚स्ते देवीष्टके वि॒धेम॑ ह॒विषा॑ व॒यम् । अश्व॑क्रां॒ते र॑थक्रां॒ते॒ वि॒ष्णुक्रां᳚ते व॒सुंध॑रा । शिरसा॑ धार॑यिष्या॒मि॒ र॒क्ष॒स्व मां᳚ पदे॒ पदे ॥ 1.37 (तै. अर. 6.1.8)
सुने दुर्वा सूक्तम् | Listen Durva Suktam
दुर्वा सूक्तम् के लाभ | Benefits of Durva Suktam
- दुर्वा की महिमा: सूक्त की शुरुआत दुर्वा की महिमा के संबंध में होती है। दुर्वा को दिव्य, पवित्र और शिवा के स्वरूप माना जाता है।
- दुर्वा की पूजा: सूक्त में दुर्वा की पूजा और आराधना के तरीके का वर्णन किया गया है। इसमें दुर्वा को विशेषता से समर्पित किया जाता है और विशेषता के साथ पूजा की जाती है।
- दुर्वा की महिमा के उदाहरण: सूक्त में दुर्वा की महिमा को दर्शाने के लिए विभिन्न उदाहरण दिए गए हैं। इनमें दुर्वा की पूजा करने से ऋषि विश्वामित्र को उच्च कर्मपथ की प्राप्ति हुई, दुर्वा की पूजा से सेनापति दाशरथ की सेना विजयी हुई आदि कथाएं हैं।
- दुर्वा की प्रशंसा: सूक्त में दुर्वा की प्रशंसा की गई है, जहां उसे सौम्यगुण, पवित्रता, ज्ञान, ऋषि संबंधी गुण, और प्रकृति के आनंद के द्वारा महिमामय बताया गया है।