श्री सरस्वती चालीसा | Shri Saraswati Chalisa

श्री सरस्वती चालीसा, चालीस श्लोकों से बना एक भक्ति भजन है, जो ज्ञान, ज्ञान और रचनात्मक कलाओं की अवतार देवी सरस्वती को समर्पित है। भारत की समृद्ध आध्यात्मिक विरासत से उत्पन्न, यह पवित्र मंत्र प्रसिद्ध कवि और संत गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखा गया है, जो अपने कालातीत कार्य, रामचरितमानस के लिए भी जाने जाते हैं। सरस्वती चालीसा बौद्धिक विकास, विचार की स्पष्टता और कलात्मक अभिव्यक्ति के लिए देवी के आशीर्वाद का आह्वान करते हुए देवी के दिव्य गुणों का व्याख्यान मनाती है। माना जाता है कि श्रद्धा और भक्ति के साथ इस शक्तिशाली भजन का जाप करने से सीखने की क्षमता बढ़ती है, शिक्षा में बाधाएं दूर होती हैं और साधकों को आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने में मदद मिलती है।

श्री सरस्वती चालीसा | Shri Saraswati Chalisa

॥ दोहा ॥
जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि ।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि ॥

पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु ॥

॥ चालीसा ॥
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी ।
जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी ॥

जय जय जय वीणाकर धारी ।
करती सदा सुहंस सवारी ॥

रूप चतुर्भुज धारी माता ।
सकल विश्व अन्दर विख्याता ॥4

जग में पाप बुद्धि जब होती ।
तब ही धर्म की फीकी ज्योति ॥

तब ही मातु का निज अवतारी ।
पाप हीन करती महतारी ॥

वाल्मीकिजी थे हत्यारा ।
तव प्रसाद जानै संसारा ॥

रामचरित जो रचे बनाई ।
आदि कवि की पदवी पाई ॥8

कालिदास जो भये विख्याता ।
तेरी कृपा दृष्टि से माता ॥

तुलसी सूर आदि विद्वाना ।
भये और जो ज्ञानी नाना ॥

तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा ।
केव कृपा आपकी अम्बा ॥

करहु कृपा सोइ मातु भवानी ।
दुखित दीन निज दासहि जानी ॥12

पुत्र करहिं अपराध बहूता ।
तेहि न धरई चित माता ॥

राखु लाज जननि अब मेरी ।
विनय करउं भांति बहु तेरी ॥

मैं अनाथ तेरी अवलंबा ।
कृपा करउ जय जय जगदंबा ॥

मधुकैटभ जो अति बलवाना ।
बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना ॥16

समर हजार पाँच में घोरा ।
फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा ॥

मातु सहाय कीन्ह तेहि काला ।
बुद्धि विपरीत भई खलहाला ॥

तेहि ते मृत्यु भई खल केरी ।
पुरवहु मातु मनोरथ मेरी ॥

चंड मुण्ड जो थे विख्याता ।
क्षण महु संहारे उन माता ॥20

रक्त बीज से समरथ पापी ।
सुरमुनि हदय धरा सब काँपी ॥

काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा ।
बारबार बिन वउं जगदंबा ॥

जगप्रसिद्ध जो शुंभनिशुंभा ।
क्षण में बाँधे ताहि तू अम्बा ॥

भरतमातु बुद्धि फेरेऊ जाई ।
रामचन्द्र बनवास कराई ॥24

एहिविधि रावण वध तू कीन्हा ।
सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा ॥

को समरथ तव यश गुन गाना ।
निगम अनादि अनंत बखाना ॥

विष्णु रुद्र जस कहिन मारी ।
जिनकी हो तुम रक्षाकारी ॥

रक्त दन्तिका और शताक्षी ।
नाम अपार है दानव भक्षी ॥28

दुर्गम काज धरा पर कीन्हा ।
दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा ॥

दुर्ग आदि हरनी तू माता ।
कृपा करहु जब जब सुखदाता ॥

नृप कोपित को मारन चाहे ।
कानन में घेरे मृग नाहे ॥

सागर मध्य पोत के भंजे ।
अति तूफान नहिं कोऊ संगे ॥32

भूत प्रेत बाधा या दुःख में ।
हो दरिद्र अथवा संकट में ॥

नाम जपे मंगल सब होई ।
संशय इसमें करई न कोई ॥

पुत्रहीन जो आतुर भाई ।
सबै छांड़ि पूजें एहि भाई ॥

करै पाठ नित यह चालीसा ।
होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा ॥36

धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै ।
संकट रहित अवश्य हो जावै ॥

भक्ति मातु की करैं हमेशा ।
निकट न आवै ताहि कलेशा ॥

बंदी पाठ करें सत बारा ।
बंदी पाश दूर हो सारा ॥

रामसागर बाँधि हेतु भवानी ।
कीजै कृपा दास निज जानी ॥40

॥दोहा॥
मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप ।
डूबन से रक्षा करहु, परूँ न मैं भव कूप ॥

बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु ।
राम सागर अधम को, आश्रय तू ही देदातु ॥

सुनें श्री सरस्वती चालीसा | Listen Shri Saraswati Chalisa

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् | मृत्युंजय हिरेमठ | सौराष्ट्र सोमनाथम् | Dwadash Jyotirlinga Stotram

श्री सरस्वती चालीसा पाठ के लाभ | Benefits of Shri Saraswati Chalisa

श्री सरस्वती चालीसा का पाठ करने के लाभ:

  • शिक्षा में वृद्धि: चालीसा का जाप करने से बौद्धिक क्षमता, याददाश्त और एकाग्रता मजबूत होती है।
  • बुद्धि और ज्ञान: भजन ज्ञान, ज्ञान और विभिन्न विषयों की गहरी समझ प्राप्त करने के लिए देवी सरस्वती के आशीर्वाद का आह्वान करता है।
  • रचनात्मक अभिव्यक्ति: जप कलात्मक प्रतिभाओं के पोषण और संगीत, कला और साहित्य में रचनात्मक कौशल को निखारने में मदद करता है।
  • विचार की स्पष्टता: चालीसा का पाठ करने से स्पष्ट सोच, बेहतर निर्णय लेने और प्रभावी संचार को बढ़ावा मिलता है।
  • आध्यात्मिक विकास: भजन का जाप करने से देवी के साथ आध्यात्मिक संबंध गहरा होता है और आंतरिक परिवर्तन में तेजी आती है।

श्री सरस्वती चालीसा का जाप करने के लिए दिशा-निर्देश:

  • कौन: छात्र, विद्वान, कलाकार और आध्यात्मिक साधक, उम्र या लिंग की परवाह किए बिना देवी सरस्वती का आशीर्वाद पाने के लिए इस चालीसा का जाप कर सकते हैं।
  • कब: जप करने का आदर्श समय सुबह या शाम के समय के दौरान होता है। इसका पाठ प्रतिदिन या विशेष अवसरों जैसे सरस्वती पूजा, बसंत पंचमी, या नवरात्रि में किया जा सकता है।
  • कहा: जप के लिए एक स्वच्छ, शांतिपूर्ण और शांत स्थान चुनें, अधिमानतः अपने घर में एक समर्पित प्रार्थना या ध्यान क्षेत्र।
  • कैसे: जप से पहले स्नान करके और साफ कपड़े पहनकर खुद को शुद्ध करें। शांत और एकाग्र मन से पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके एक आरामदायक आसन में बैठें।

भक्ति और श्रद्धा के साथ श्री सरस्वती चालीसा का जाप इच्छानुसार या अपनी व्यक्तिगत साधना के अनुसार कई बार करें।

Leave a Comment