शिव भुजंगम् | Shiva Bhujangam

शिव भुजंगम, एक गहन भक्तिमय स्तोत्र, हमें भगवान शिव की असीम करुणा और असीम ज्ञान में डूबने के लिए आमंत्रित करता है, सर्वोच्च प्राणी जो सृजन, संरक्षण और विघटन के शाश्वत चक्र का प्रतीक है। भारतीय अध्यात्म के पवित्र भंडार से निकली यह दिव्य रचना, श्रद्धेय संत आदि शंकराचार्य द्वारा लिखी गई, भगवान शिव के बहुमुखी स्वरूप की एक अंतरंग झलक प्रदान करती है, जो हमें उनके दिव्य गुणों की गहरी समझ और प्रशंसा की ओर ले जाती है।

मोहक भुजंगप्रयता मीटर में रचित, शिव भुजंगम के मधुर छंद प्रेम, श्रद्धा और समर्पण की एक टेपेस्ट्री बुनते हैं, क्योंकि साधक का हृदय दयालु भगवान की सर्वव्यापी उपस्थिति से गूंजता है। जैसा कि हम पवित्र छंदों में तल्लीन हैं, हम शिव भुजंगम की सुंदरता की खोज करेंगे और इसमें निहित आध्यात्मिक ज्ञान के छिपे हुए रत्नों का अनावरण करेंगे। आइये मधुर शिव भुजंगम के माध्यम से भगवान शिव की अनंत कृपा और अनंत प्रेम के लिए अपने दिलों को जगाते हैं।

शिव भुजंगम् | Shiva Bhujangam

गलद्दानगंडं मिलद्भृंगषंडं
चलच्चारुशुंडं जगत्त्राणशौंडम् ।
कनद्दंतकांडं विपद्भंगचंडं
शिवप्रेमपिंडं भजे वक्रतुंडम् ॥ 1 ॥

अनाद्यंतमाद्यं परं तत्त्वमर्थं
चिदाकारमेकं तुरीयं त्वमेयम् ।
हरिब्रह्ममृग्यं परब्रह्मरूपं
मनोवागतीतं महःशैवमीडे ॥ 2 ॥

स्वशक्त्यादि शक्त्यंत सिंहासनस्थं
मनोहारि सर्वांगरत्नोरुभूषम् ।
जटाहींदुगंगास्थिशम्याकमौलिं
पराशक्तिमित्रं नमः पंचवक्त्रम् ॥ 3 ॥

शिवेशानतत्पूरुषाघोरवामादिभिः
पंचभिर्हृन्मुखैः षड्भिरंगैः ।
अनौपम्य षट्त्रिंशतं तत्त्वविद्यामतीतं
परं त्वां कथं वेत्ति को वा ॥ 4 ॥

प्रवालप्रवाहप्रभाशोणमर्धं
मरुत्वन्मणि श्रीमहः श्याममर्धम् ।
गुणस्यूतमेतद्वपुः शैवमंतः
स्मरामि स्मरापत्तिसंपत्तिहेतोः ॥ 5 ॥

स्वसेवासमायातदेवासुरेंद्रा
नमन्मौलिमंदारमालाभिषिक्तम् ।
नमस्यामि शंभो पदांभोरुहं ते
भवांभोधिपोतं भवानी विभाव्यम् ॥ 6 ॥

जगन्नाथ मन्नाथ गौरीसनाथ
प्रपन्नानुकंपिन्विपन्नार्तिहारिन् ।
महःस्तोममूर्ते समस्तैकबंधो
नमस्ते नमस्ते पुनस्ते नमोऽस्तु ॥ 7 ॥

विरूपाक्ष विश्वेश विश्वादिदेव
त्रयी मूल शंभो शिव त्र्यंबक त्वम् ।
प्रसीद स्मर त्राहि पश्यावमुक्त्यै
क्षमां प्राप्नुहि त्र्यक्ष मां रक्ष मोदात् ॥ 8 ॥

महादेव देवेश देवादिदेव
स्मरारे पुरारे यमारे हरेति ।
ब्रुवाणः स्मरिष्यामि भक्त्या \लिनॆ भवंतं ततो मे दयाशील देव प्रसीद ॥ 9 ॥

त्वदन्यः शरण्यः प्रपन्नस्य नेति
प्रसीद स्मरन्नेव हन्यास्तु दैन्यम् ।
न चेत्ते भवेद्भक्तवात्सल्यहानिस्ततो
मे दयालो सदा सन्निधेहि ॥ 10 ॥

अयं दानकालस्त्वहं दानपात्रं
भवानेव दाता त्वदन्यं न याचे ।
भवद्भक्तिमेव स्थिरां देहि मह्यं
कृपाशील शंभो कृतार्थोऽस्मि तस्मात् ॥ 11 ॥

पशुं वेत्सि चेन्मां तमेवाधिरूढः
कलंकीति वा मूर्ध्नि धत्से तमेव ।
द्विजिह्वः पुनः सोऽपि ते कंठभूषा
त्वदंगीकृताः शर्व सर्वेऽपि धन्याः ॥ 12 ॥

न शक्नोमि कर्तुं परद्रोहलेशं
कथं प्रीयसे त्वं न जाने गिरीश ।
तथाहि प्रसन्नोऽसि कस्यापि
कांतासुतद्रोहिणो वा पितृद्रोहिणो वा ॥ 13 ॥

स्तुतिं ध्यानमर्चां यथावद्विधातुं
भजन्नप्यजानन्महेशावलंबे ।
त्रसंतं सुतं त्रातुमग्रे
मृकंडोर्यमप्राणनिर्वापणं त्वत्पदाब्जम् ॥ 14 ॥

शिरो दृष्टि हृद्रोग शूल प्रमेहज्वरार्शो जरायक्ष्महिक्काविषार्तान् ।
त्वमाद्यो भिषग्भेषजं भस्म शंभो
त्वमुल्लाघयास्मान्वपुर्लाघवाय ॥ 15 ॥

दरिद्रोऽस्म्यभद्रोऽस्मि भग्नोऽस्मि दूये
विषण्णोऽस्मि सन्नोऽस्मि खिन्नोऽस्मि चाहम् ।
भवान्प्राणिनामंतरात्मासि शंभो
ममाधिं न वेत्सि प्रभो रक्ष मां त्वम् ॥ 16 ॥

त्वदक्ष्णोः कटाक्षः पतेत्त्र्यक्ष यत्र
क्षणं क्ष्मा च लक्ष्मीः स्वयं तं वृणाते ।
किरीटस्फुरच्चामरच्छत्रमालाकलाचीगजक्षौमभूषाविशेषैः ॥ 17 ॥

भवान्यै भवायापि मात्रे च पित्रे
मृडान्यै मृडायाप्यघघ्न्यै मखघ्ने ।
शिवांग्यै शिवांगाय कुर्मः शिवायै
शिवायांबिकायै नमस्त्र्यंबकाय ॥ 18 ॥

भवद्गौरवं मल्लघुत्वं विदित्वा
प्रभो रक्ष कारुण्यदृष्ट्यानुगं माम् ।
शिवात्मानुभावस्तुतावक्षमोऽहं
स्वशक्त्या कृतं मेऽपराधं क्षमस्व ॥ 19 ॥

यदा कर्णरंध्रं व्रजेत्कालवाहद्विषत्कंठघंटा घणात्कारनादः ।
वृषाधीशमारुह्य देवौपवाह्यंतदा
वत्स मा भीरिति प्रीणय त्वम् ॥ 20 ॥

यदा दारुणाभाषणा भीषणा मे
भविष्यंत्युपांते कृतांतस्य दूताः ।
तदा मन्मनस्त्वत्पदांभोरुहस्थं
कथं निश्चलं स्यान्नमस्तेऽस्तु शंभो ॥ 21 ॥

यदा दुर्निवारव्यथोऽहं शयानो
लुठन्निःश्वसन्निःसृताव्यक्तवाणिः ।
तदा जह्नुकन्याजलालंकृतं ते
जटामंडलं मन्मनोमंदिरे स्यात् ॥ 22 ॥

यदा पुत्रमित्रादयो मत्सकाशे
रुदंत्यस्य हा कीदृशीयं दशेति ।
तदा देवदेवेश गौरीश शंभो
नमस्ते शिवायेत्यजस्रं ब्रवाणि ॥ 23 ॥

यदा पश्यतां मामसौ वेत्ति
नास्मानयं श्वास एवेति वाचो भवेयुः ।
तदा भूतिभूषं भुजंगावनद्धं
पुरारे भवंतं स्फुटं भावयेयम् ॥ 24 ॥

यदा यातनादेहसंदेहवाही
भवेदात्मदेहे न मोहो महान्मे ।
तदा काशशीतांशुसंकाशमीश
स्मरारे वपुस्ते नमस्ते स्मरामि ॥ 25 ॥

यदापारमच्छायमस्थानमद्भिर्जनैर्वा विहीनं गमिष्यामि मार्गम् ।
तदा तं निरुंधंकृतांतस्य मार्गं
महादेव मह्यं मनोज्ञं प्रयच्छ ॥ 26 ॥

यदा रौरवादि स्मरन्नेव भीत्या
व्रजाम्यत्र मोहं महादेव घोरम् ।
तदा मामहो नाथ कस्तारयिष्यत्यनाथं पराधीनमर्धेंदुमौले ॥ 27 ॥

यदा श्वेतपत्रायतालंघ्यशक्तेः
कृतांताद्भयं भक्तिवात्सल्यभावात् ।
तदा पाहि मां पार्वतीवल्लभान्यं
न पश्यामि पातारमेतादृशं मे ॥ 28 ॥

इदानीमिदानीं मृतिर्मे भवित्रीत्यहो संततं चिंतया पीडितोऽस्मि ।
कथं नाम मा भून्मृतौ भीतिरेषा
नमस्ते गतीनां गते नीलकंठ ॥ 29 ॥

अमर्यादमेवाहमाबालवृद्धं
हरंतं कृतांतं समीक्ष्यास्मि भीतः ।
मृतौ तावकांघ्र्यब्जदिव्यप्रसादाद्भवानीपते निर्भयोऽहं भवानि ॥ 30 ॥

जराजन्मगर्भाधिवासादिदुःखान्यसह्यानि जह्यां जगन्नाथ देव ।
भवंतं विना मे गतिर्नैव शंभो
दयालो न जागर्ति किं वा दया ते ॥ 31 ॥

शिवायेति शब्दो नमःपूर्व एष
स्मरन्मुक्तिकृन्मृत्युहा तत्त्ववाची ।
महेशान मा गान्मनस्तो वचस्तः
सदा मह्यमेतत्प्रदानं प्रयच्छ ॥ 32 ॥

त्वमप्यंब मां पश्य शीतांशुमौलिप्रिये भेषजं त्वं भवव्याधिशांतौ
बहुक्लेशभाजं पदांभोजपोते
भवाब्धौ निमग्नं नयस्वाद्य पारम् ॥ 33 ॥

अनुद्यल्ललाटाक्षि वह्नि प्ररोहैरवामस्फुरच्चारुवामोरुशोभैः ।
अनंगभ्रमद्भोगिभूषाविशेषैरचंद्रार्धचूडैरलं दैवतैर्नः ॥ 34 ॥

अकंठेकलंकादनंगेभुजंगादपाणौकपालादफालेऽनलाक्षात् ।
अमौलौशशांकादवामेकलत्रादहं देवमन्यं न मन्ये न मन्ये ॥ 35 ॥

महादेव शंभो गिरीश त्रिशूलिंस्त्वदीयं समस्तं विभातीति यस्मात् ।
शिवादन्यथा दैवतं नाभिजाने
शिवोऽहं शिवोऽहं शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥ 36 ॥

यतोऽजायतेदं प्रपंचं विचित्रं
स्थितिं याति यस्मिन्यदेकांतमंते ।
स कर्मादिहीनः स्वयंज्योतिरात्मा
शिवोऽहं शिवोऽहं शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥ 37 ॥

किरीटे निशेशो ललाटे हुताशो
भुजे भोगिराजो गले कालिमा च ।
तनौ कामिनी यस्य तत्तुल्यदेवं
न जाने न जाने न जाने न जाने ॥ 38 ॥

अनेन स्तवेनादरादंबिकेशं
परां भक्तिमासाद्य यं ये नमंति ।
मृतौ निर्भयास्ते जनास्तं भजंते
हृदंभोजमध्ये सदासीनमीशम् ॥ 39 ॥

भुजंगप्रियाकल्प शंभो मयैवं
भुजंगप्रयातेन वृत्तेन क्लृप्तम् ।
नरः स्तोत्रमेतत्पठित्वोरुभक्त्या
सुपुत्रायुरारोग्यमैश्वर्यमेति ॥ 40 ॥

सुनें शिव भुजंगम् | Listen Shiva Bhujangam

Shiva Bhujangam Stotram with lyrics and meaning | शिवभुजंगम् स्तोत्रम् श्लोक और अर्थसहित

शिव भुजंगम् के लाभ | Benefits of Shiva Bhujangam

शिव भुजंगम जप के लाभ:

आध्यात्मिक जागृति: भजन आध्यात्मिक विकास और आत्म-साक्षात्कार का समर्थन करते हुए, भगवान शिव के साथ गहरे संबंध को बढ़ावा देता है।

  • शांति और संतुलन: शिव भुजंगम का जाप करने से शांति, भावनात्मक स्थिरता और मानसिक सद्भाव आता है।
  • सशक्तिकरण: जप जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए आंतरिक शक्ति, लचीलापन और साहस को प्रेरित करता है।
  • बुद्धि और ज्ञान: भगवान शिव का आह्वान करके, भजन दिव्य ज्ञान और समझ प्राप्त करने में मदद करता है।
  • सकारात्मक ऊर्जा: शिव भुजंगम का जाप किसी की आभा को शुद्ध करता है, सकारात्मक कंपन को आकर्षित करता है और नकारात्मकता को दूर करता है।

शिव भुजंगम जप के लिए दिशानिर्देश:

  • कौन: भगवान शिव के भक्त, उम्र, लिंग या धार्मिक पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना, इस मंत्र का जाप कर सकते हैं।
  • कब: जप करने का सबसे अच्छा समय ब्रह्म मुहूर्त (सुबह जल्दी) या संध्या (शाम) के दौरान होता है। महा शिवरात्रि, प्रदोष या श्रावण मास जैसे विशेष अवसर भी पाठ के लिए उपयुक्त होते हैं।
  • कहा: अपने घर में एक स्वच्छ, शांतिपूर्ण और शांत स्थान चुनें, अधिमानतः एक समर्पित प्रार्थना या ध्यान क्षेत्र।
  • कैसे: जप से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके किसी आरामदायक आसन में बैठ जाएं।

श्रद्धा और भक्ति के साथ शिव भुजंगम का जप करते समय शांत और केंद्रित मन बनाए रखें। इच्छानुसार या अपनी व्यक्तिगत साधना के अनुसार भजन का कई बार पाठ करें।

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