श्री अन्नपूर्णा अष्टोत्तरशत नामस्तोत्रम् अन्नपूर्णाष्टोत्तरशतनामावलिः अथवा अन्नपूर्णा अष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं भगवती अन्नपूर्णा के 108 नामों का संग्रह है। यह स्तोत्र अन्नपूर्णा देवी को समर्पित है जिन्हें हिंदू धर्म में अन्न और अन्नदात्री के रूप में पूजा जाता है। यह स्तोत्र उसके सामर्थ्य, कृपा और महिमा का वर्णन करता है। यह नामस्तोत्र श्लोकों के रूप में प्रस्तुत होता है, जिनका पाठ भक्ति और आदर्श जीवन की प्राप्ति के लिए किया जाता है। इस स्तोत्र के पाठ से भक्त का अन्नपूर्णा देवी के प्रति भक्ति और समर्पण बढ़ता है।
श्री अन्नपूर्णा अष्टोत्तरशत नाम्स्तोत्रम् | Shri Annapurna Ashtottarshat Namstotram
अस्य श्री अन्नपूर्णाष्टोत्तर शतनामस्तोत्र महामंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः अनुष्टुप्छंदः श्री अन्नपूर्णेश्वरी देवता स्वधा बीजं स्वाहा शक्तिः ॐ कीलकं मम सर्वाभीष्टप्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।
ॐ अन्नपूर्णा शिवा देवी भीमा पुष्टिस्सरस्वती ।
सर्वज्ञा पार्वती दुर्गा शर्वाणी शिववल्लभा ॥ 1 ॥
वेदवेद्या महाविद्या विद्यादात्री विशारदा ।
कुमारी त्रिपुरा बाला लक्ष्मीश्श्रीर्भयहारिणी ॥ 2 ॥
भवानी विष्णुजननी ब्रह्मादिजननी तथा ।
गणेशजननी शक्तिः कुमारजननी शुभा ॥ 3 ॥
भोगप्रदा भगवती भक्ताभीष्टप्रदायिनी ।
भवरोगहरा भव्या शुभ्रा परममंगला ॥ 4 ॥
भवानी चंचला गौरी चारुचंद्रकलाधरा ।
विशालाक्षी विश्वमाता विश्ववंद्या विलासिनी ॥ 5 ॥
आर्या कल्याणनिलया रुद्राणी कमलासना ।
शुभप्रदा शुभाऽनंता वृत्तपीनपयोधरा ॥ 6 ॥
अंबा संहारमथनी मृडानी सर्वमंगला ।
विष्णुसंसेविता सिद्धा ब्रह्माणी सुरसेविता ॥ 7 ॥
परमानंददा शांतिः परमानंदरूपिणी ।
परमानंदजननी परानंदप्रदायिनी ॥ 8 ॥
परोपकारनिरता परमा भक्तवत्सला ।
पूर्णचंद्राभवदना पूर्णचंद्रनिभांशुका ॥ 9 ॥
शुभलक्षणसंपन्ना शुभानंदगुणार्णवा ।
शुभसौभाग्यनिलया शुभदा च रतिप्रिया ॥ 10 ॥
चंडिका चंडमथनी चंडदर्पनिवारिणी ।
मार्तांडनयना साध्वी चंद्राग्निनयना सती ॥ 11 ॥
पुंडरीकहरा पूर्णा पुण्यदा पुण्यरूपिणी ।
मायातीता श्रेष्ठमाया श्रेष्ठधर्मात्मवंदिता ॥ 12 ॥
असृष्टिस्संगरहिता सृष्टिहेतु कपर्दिनी ।
वृषारूढा शूलहस्ता स्थितिसंहारकारिणी ॥ 13 ॥
मंदस्मिता स्कंदमाता शुद्धचित्ता मुनिस्तुता ।
महाभगवती दक्षा दक्षाध्वरविनाशिनी ॥ 14 ॥
सर्वार्थदात्री सावित्री सदाशिवकुटुंबिनी ।
नित्यसुंदरसर्वांगी सच्चिदानंदलक्षणा ॥ 15 ॥
नाम्नामष्टोत्तरशतमंबायाः पुण्यकारणम् ।
सर्वसौभाग्यसिद्ध्यर्थं जपनीयं प्रयत्नतः ॥ 16 ॥
इदं जपाधिकारस्तु प्राणमेव ततस्स्तुतः ।
आवहंतीति मंत्रेण प्रत्येकं च यथाक्रमम् ॥ 17 ॥
कर्तव्यं तर्पणं नित्यं पीठमंत्रेति मूलवत् ।
तत्तन्मंत्रेतिहोमेति कर्तव्यश्चेति मालवत् ॥ 18 ॥
एतानि दिव्यनामानि श्रुत्वा ध्यात्वा निरंतरम् ।
स्तुत्वा देवीं च सततं सर्वान्कामानवाप्नुयात् ॥ 19 ॥
इति श्री ब्रह्मोत्तरखंडे आगमप्रख्यातिशिवरहस्ये अन्नपूर्णाष्टोत्तर शतनामस्तोत्रम् ॥
सुने श्री अन्नपूर्णा अष्टोत्तरशत नाम्स्तोत्रम् | Listen Shri Annapurna Ashtottarshat Namstotram
श्री अन्नपूर्णा अष्टोत्तरशत नाम्स्तोत्रम् के लाभ | Benefits of Shri Annapurna Ashtottarshat Namstotram
- स्तोत्र की शुरुआत: स्तोत्र की शुरुआत में भगवती अन्नपूर्णा की प्रशंसा की गई है, जिन्हें सर्वाधारमयी, सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ बताया गया है।
- नामावली: यहां श्री अन्नपूर्णा के 108 नामों का संग्रह है, जिनमें उनकी विभिन्न गुणों, स्वरूपों और महत्व का वर्णन किया गया है। इन नामों के माध्यम से उनकी महिमा और सामर्थ्य का वर्णन किया जाता है।
- देवी की कृपा: स्तोत्र में अन्नपूर्णा देवी की कृपा के बारे में भी बताया गया है। उनकी कृपा से भक्त को धन, सुख, समृद्धि, संतोष, शक्ति आदि प्राप्त होती है।
- पूजा और स्तुति: इस स्तोत्र के पाठ के माध्यम से भक्त अन्नपूर्णा देवी की पूजा, स्तुति और समर्पण करते हैं। यह स्तोत्र भक्ति और आदर्श जीवन की प्राप्ति के लिए प्रयोग किया जाता है।
- स्वरूप और महिमा: स्तोत्र की शुरुआत में अन्नपूर्णा देवी का स्वरूप और महिमा का वर्णन किया गया है। उन्हें सबका आहार देने वाली, सृष्टि की रक्षिका, जगत की माता, देवी शक्ति, श्री चक्र रूपिणी आदि के रूप में जाना जाता है।
- देवी के गुण: अन्नपूर्णा देवी के गुणों का वर्णन भी इस स्तोत्र में किया गया है। उन्हें कृपालु, करुणामयी, आनंदमयी, महामाया, प्राणनाथिनी, दुर्गा, जगदम्बा, सर्वमंगला आदि के रूप में जाना जाता है।