श्रीकाशीविश्वनाथस्तोत्रम् | Shri Kashivishvanath Stotram

काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर पिछले कई हजार वर्षों से वाराणसी में स्थित है। काशी विश्वनाथ मंदिर का हिंदू धर्म में एक विशिष्‍ट स्‍थान है। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्‍नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। श्री काशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्रम संस्कृत भाषा में रचित एक स्तोत्र है, जो भगवान शिव के काशी विश्वनाथ रूप को समर्पित किया है। इस स्तोत्र के नियमित पाठ से व्यक्ति को विशेष लाभ की प्राप्ति होती है।

श्रीकाशीविश्वनाथस्तोत्रम् | Shri Kashivishvanath Stotram

कंठे यस्य लसत्करालगरलं गंगाजलं मस्तके
वामांगे गिरिराजराजतनया जाया भवानी सती ।
नंदिस्कंदगणाधिराजसहिता श्रीविश्वनाथप्रभुः
काशीमंदिरसंस्थितोऽखिलगुरुर्देयात्सदा मंगलम् ॥ 1॥

यो देवैरसुरैर्मुनींद्रतनयैर्गंधर्वयक्षोरगै-
र्नागैर्भूतलवासिभिर्द्विजवरैः संसेवितः सिद्धये ।
या गंगोत्तरवाहिनी परिसरे तीर्थेरसंख्यैर्वृता
सा काशी त्रिपुरारिराजनगरी देयात्सदा मंगलम् ॥ 2॥

तीर्थानां प्रवरा मनोरथकरी संसारपारापरा-
नंदा नंदिगणेश्वरैरुपहिता देवैरशेषैः स्तुता ।
या शंभोर्मणिकुंडलैककणिका विष्णोस्तपोदीर्घिका
सेयं श्रीमणिकर्णिका भगवती देयात्सदा मंगलम् ॥ 3॥

एषा धर्मपताकिनी तटरुहासेवावसन्नाकिनी
पश्यन्पातकिनी भगीरथतपःसाफल्यदेवाकिनी ।
प्रेमारूढपताकिनी गिरिसुता सा केकरास्वाकिनी
काश्यामुत्तरवाहिनी सुरनदी देयात्सदा मंगलम् ॥ 4॥

विघ्नावासनिवासकारणमहागंडस्थलालंबितः
सिंदूरारुणपुंजचंद्रकिरणप्रच्छादिनागच्छविः ।
श्रीविश्वेश्वरवल्लभो गिरिजया सानंदकानंदितः
स्मेरास्यस्तव ढुंढिराजमुदितो देयात्सदा मंगलम् ॥। 5॥ ।
केदारः कलशेश्वरः पशुपतिर्धर्मेश्वरो मध्यमो
ज्येष्ठेशो पशुपश्च कंदुकशिवो विघ्नेश्वरो जंबुकः ।
चंद्रेशो ह्यमृतेश्वरो भृगुशिवः श्रीवृद्धकालेश्वरो
मध्येशो मणिकर्णिकेश्वरशिवो देयात्सदा मंगलम् ॥ 6॥

गोकर्णस्त्वथ भारभूतनुदनुः श्रीचित्रगुप्तेश्वरो
यक्षेशस्तिलपर्णसंगमशिवो शैलेश्वरः कश्यपः ।
नागेशोऽग्निशिवो निधीश्वरशिवोऽगस्तीश्वरस्तारक-
ज्ञानेशोऽपि पितामहेश्वरशिवो देयात्सदा मंगलम् ॥ 7॥

ब्रह्मांडं सकलं मनोषितरसै रत्नैः पयोभिर्हरं
खेलैः पूरयते कुटुंबनिलयान् शंभोर्विलासप्रदा ।
नानादिव्यलताविभूषितवपुः काशीपुराधीश्वरी
श्रीविश्वेश्वरसुंदरी भगवती देयात्सदा मंगलम् ॥ 8॥

या देवी महिषासुरप्रमथनी या चंडमुंडापहा
या शुंभासुररक्तबीजदमनी शक्रादिभिः संस्तुता ।
या शूलासिधनुःशराभयकरा दुर्गादिसंदक्षिणा-
माश्रित्याश्रितविघ्नशंसमयतु देयात्सदा मंगलम् ॥ 9॥

आद्या श्रीर्विकटा ततस्तु विरजा श्रीमंगला पार्वती
विख्याता कमला विशालनयना ज्येष्ठा विशिष्टानना ।
कामाक्षी च हरिप्रिया भगवती श्रीघंटघंटादिका
मौर्या षष्टिसहस्रमातृसहिता देयात्सदा मंगलम् ॥ 10॥

आदौ पंचनदं प्रयागमपरं केदारकुंडं कुरु-
क्षेत्रं मानसकं सरोऽमृतजलं शावस्य तीर्थं परम् ।
मत्स्योदर्यथ दंडखांडसलिलं मंदाकिनी जंबुकं
घंटाकर्णसमुद्रकूपसहितो देयात्सदा मंगलम् ॥ 11॥

रेवाकुंडजलं सरस्वतिजलं दुर्वासकुंडं ततो
लक्ष्मीतीर्थलवांकुशस्य सलिलं कंदर्पकुंडं तथा ।
दुर्गाकुंडमसीजलं हनुमतः कुंडप्रतापोर्जितः
प्रज्ञानप्रमुखानि वः प्रतिदिनं देयात्सदा मंगलम् ॥ 12॥

आद्यः कूपवरस्तु कालदमनः श्रीवृद्धकूपोऽपरो
विख्यातस्तु पराशरस्तु विदितः कूपः सरो मानसः ।
जैगीषव्यमुनेः शशांकनृपतेः कूपस्तु धर्मोद्भवः
ख्यातः सप्तसमुद्रकूपसहितो देयात्सदा मंगलम् ॥ 13॥

लक्ष्यीनायकबिंदुमाधवहरिर्लक्ष्मीनृसिंहस्ततो
गोविंदस्त्वथ गोपिकाप्रियतमः श्रीनारदः केशवः ।
गंगाकेशववामनाख्यतदनु श्वेतो हरिः केशवः
प्रह्लादादिसमस्तकेशवगणो देयात्सदा मंगलम् ॥ 14॥

लोलार्को विमलार्कमायुखरविः संवर्तसंज्ञो रवि-
र्विख्यातो द्रुपदुःखखोल्कमरुणः प्रोक्तोत्तरार्को रविः ।
गंगार्कस्त्वथ वृद्धवृद्धिविबुधा काशीपुरीसंस्थिताः
सूर्या द्वादशसंज्ञकाः प्रतिदिनं देयात्सदा मंगलम् ॥ 15॥

आद्यो ढुंढिविनायको गणपतिश्चिंतामणिः सिद्धिदः
सेनाविघ्नपतिस्तु वक्त्रवदनः श्रीपाशपाणिः प्रभुः ।
आशापक्षविनायकाप्रषकरो मोदादिकः षड्गुणो
लोलार्कादिविनायकाः प्रतिदिनं देयात्सदा मंगलम् ॥ 16॥।

हेरंबो नलकूबरो गणपतिः श्रीभीमचंडीगणो
विख्यातो मणिकर्णिकागणपतिः श्रीसिद्धिदो विघ्नपः ।
मुंडश्चंडमुखश्च कष्टहरणः श्रीदंडहस्तो गणः
श्रीदुर्गाख्यगणाधिपः प्रतिदिनं देयात्सदा मंगलम् ॥ 17॥

आद्यो भैरवभीषणस्तदपरः श्रीकालराजः क्रमा-
च्छ्रीसंहारकभैरवस्त्वथ रुरुश्चोन्मत्तको भैरवः ।
क्रोधश्चंडकपालभैरववरः श्रीभूतनाथादयो
ह्यष्टौ भैरवमूर्तयः प्रतिदिनं देयात्सदा मंगलम् ॥ 18॥

आधातोऽंबिकया सह त्रिनयनः सार्धं गणैर्नंदितां
काशीमाशु विशन् हरः प्रथमतो वार्षध्वजेऽवस्थितः ।
आयाता दश धेनवः सुकपिला दिव्यैः पयोभिर्हरं
ख्यातं तद्वृषभध्वजेन कपिलं देयात्सदा मंगलम् ॥ 19॥

आनंदाख्यवनं हि चंपकवनं श्रीनैमिषं खांडवं
पुण्यं चैत्ररथं त्वशाकविपिनं रंभावनं पावनम् ।
दुर्गारण्यमथोऽपि कैरववनं वृंदावनं पावनं
विख्यातानि वनानि वः प्रतिदिनं देयात्सदा मंगलम् ॥ 20॥

अलिकुलदलनीलः कालदंष्ट्राकरालः
सजलजलदनीलो व्यालयज्ञोपवीतः ।
अभयवरदहस्तो डामरोद्दामनादः
सकलदुरितभक्षो मंगलं वो ददातु ॥ 21॥

अर्धांगे विकटा गिरींद्रतनया गौरी सती सुंदरी
सर्वांगे विलसद्विभूतिधवलो कालो विशालेक्षणः ।
वीरेशः सहनंदिभृंगिसहितः श्रीविश्वनाथः प्रभुः
काशीमंदिरसंस्थितोऽखिलगुरुर्देयात्सदा मंगलम् ॥ 22॥

यः प्रातः प्रयतः प्रसन्नमनसा प्रेमप्रमोदाकुलः
ख्यातं तत्र विशिष्टपादभुवनेशेंद्रादिभिर्यत्स्तुतम् ।
प्रातः प्राङ्मुखमासनोत्तमगतो ब्रूयाच्छृणोत्यादरात्
काशीवासमुखान्यवाप्य सततं प्रीते शिवे धूर्जटि ॥ 23॥

इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं काशीविश्वनाथस्तोत्रम् ॥

सुने श्रीकाशीविश्वनाथस्तोत्रम् | Listen Shri Kashivishvnath Stotram

शिव का ध्यान करके सुने काशी विश्वनाथ स्तोत्र – हर मनोकामनाये पूरी हो जायेंगी – Vishwanath Ashtakam

श्रीकाशीविश्वनाथस्तोत्रम् पाठ के लाभ | Benefits of Shri Kashivishvnath Stotram

श्रीकाशीविश्वनाथस्तोत्रम् के पाठ से अनेक लाभ होते हैं। इसके निम्न लाभ हैं:

  1. शुभ फलों की प्राप्ति: श्रीकाशीविश्वनाथस्तोत्रम् का पाठ करने से शुभ फल प्राप्त होता है। यह श्लोक संग्रह व्यक्ति के जीवन में खुशी, सफलता, शांति, सुख, समृद्धि और सम्पन्नता आदि के लिए वरदान होता है।
  2. शरीर और मन को शुद्ध करना: श्रीकाशीविश्वनाथस्तोत्रम् का पाठ करने से मानसिक चंचलता, तनाव और चिंताओं से छुटकारा मिलता है। इसके अलावा, यह श्लोक संग्रह व्यक्ति के शरीर को भी शुद्ध करता है और उसे रोगों से बचाता है।
  3. भय को दूर करना: श्रीकाशीविश्वनाथस्तोत्रम् का पाठ करने से भय और दुख भावना से मुक्ति मिलती है। यह श्लोक संग्रह व्यक्ति को आत्मविश्वास और संतुलन का अनुभव कराता है।
  4. संयम बढ़ाना: श्रीकाशीविश्वनाथस्तोत्रम् का पाठ करने से व्यक्ति का संयम बढ़ता है|
  5. मानसिक शांति: श्रीकाशीविश्वनाथस्तोत्रम् के पाठ से मन शांत होता है और तनाव कम होता है।
  6. भगवान शिव की कृपा: श्रीकाशीविश्वनाथस्तोत्रम् के पाठ से भगवान शिव की कृपा मिलती है और उनकी आशीर्वाद से जीवन में सफलता मिलती है।
  7. संघर्ष का समाधान: श्रीकाशीविश्वनाथस्तोत्रम् के पाठ से संघर्षों का समाधान होता है और जीवन में सफलता प्राप्त होती है।

इसका पाठ भगवान शिव की पूजा और उनकी महिमा के गुणगान के लिए किया जाता है। श्रीकाशीविश्वनाथस्तोत्रम् का पाठ किसी भी समय और किसी भी स्थान पर किया जा सकता है। इसे विशेष अवसरों पर जैसे महाशिवरात्रि, शिवरात्रि, कार्तिक पूर्णिमा आदि पर पाठ किया जाता है। यह श्लोक संग्रह हिंदू धर्म के विभिन्न पाठ्यक्रमों में उपयोग किया जाता है।

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