श्री सूक्तम् | Shri Suktam

श्री सूक्तम् देवी लक्ष्मी की आराधना करने हेतु उनको समर्पित मंत्र हैं। इसे ‘लक्ष्मी सूक्तम्’ भी कहते हैं। यह सूक्त, ऋग्वेद के खिलानि के अन्तर्गत आता है। इस सूक्त का पाठ धन-धान्य की अधिष्ठात्री, देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए किया जाता है। श्रीसूक्त का विनियोग लक्ष्मी के आराधन, जप, होम आदि में किया जाता है। महर्षि बोधायन, वशिष्ठ आदि ने इसके विशेष प्रयोग बतलाये हैं । श्रीसूक्त की फलश्रुति में भी इस सूक्त के मन्त्रों का जप तथा इन मन्त्रों के द्वारा होम करने का निर्देश किया गया है।

श्री सूक्तम् स्तोत्र | Shri Suktam Stotra

ओम् ॥ हिर॑ण्यवर्णां॒ हरि॑णीं सु॒वर्ण॑रज॒तस्र॑जाम् ।
चं॒द्रां हि॒रण्म॑यीं-लँ॒क्ष्मीं जात॑वेदो म॒ आव॑ह ॥

तां म॒ आव॑ह॒ जात॑वेदो ल॒क्ष्मीमन॑पगा॒मिनी᳚म् ।
यस्यां॒ हिर॑ण्यं-विँं॒देयं॒ गामश्वं॒ पुरु॑षान॒हम् ॥

अ॒श्व॒पू॒र्वां र॑थम॒ध्यां ह॒स्तिना॑द-प्र॒बोधि॑नीम् ।
श्रियं॑ दे॒वीमुप॑ह्वये॒ श्रीर्मा॑ दे॒वीर्जु॑षताम् ॥

कां॒सो᳚स्मि॒ तां हिर॑ण्यप्रा॒कारा॑मा॒र्द्रां ज्वलं॑तीं तृ॒प्तां त॒र्पयं॑तीम् ।
प॒द्मे॒ स्थि॒तां प॒द्मव॑र्णां॒ तामि॒होप॑ह्वये॒ श्रियम् ॥

चं॒द्रां प्र॑भा॒सां-यँ॒शसा॒ ज्वलं॑तीं॒ श्रियं॑-लोँ॒के दे॒वजु॑ष्टामुदा॒राम् ।
तां प॒द्मिनी॑मीं॒ शर॑णम॒हं प्रप॑द्येऽल॒क्ष्मीर्मे॑ नश्यतां॒ त्वां-वृँ॑णे ॥

आ॒दि॒त्यव॑र्णे॒ तप॒सोऽधि॑जा॒तो वन॒स्पति॒स्तव॑ वृ॒क्षोऽथ॑ बि॒ल्वः ।
तस्य॒ फला॑नि॒ तप॒सानु॑दंतु मा॒यांत॑रा॒याश्च॑ बा॒ह्या अ॑ल॒क्ष्मीः ॥

उपै॑तु॒ मां दे॑वस॒खः की॒र्तिश्च॒ मणि॑ना स॒ह ।
प्रा॒दु॒र्भू॒तोऽस्मि॑ राष्ट्रे॒ऽस्मिन् की॒र्ति॒मृ॑द्धिं द॒दातु॑ मे ॥

क्षु॒त्पि॒पा॒साम॑लां ज्ये॒ष्ठाम॒ल॒क्षीं ना॑शया॒म्यहम् ।
अभू॑ति॒मस॑मृद्धिं॒ च स॒र्वां॒ निर्णु॑द मे॒ गृहात् ॥

गं॒ध॒द्वा॒रां दु॑राध॒र्​षां॒ नि॒त्यपु॑ष्टां करी॒षिणी᳚म् ।
ई॒श्वरीग्ं॑ सर्व॑भूता॒नां॒ तामि॒होप॑ह्वये॒ श्रियम् ॥

श्री᳚र्मे भ॒जतु । अल॒क्षी᳚र्मे न॒श्यतु ।

मन॑सः॒ काम॒माकू॑तिं-वाँ॒चः स॒त्यम॑शीमहि ।
प॒शू॒नाग्ं रू॒पमन्य॑स्य॒ मयि॒ श्रीः श्र॑यतां॒-यँशः॑ ॥

क॒र्दमे॑न प्र॑जाभू॒ता॒ म॒यि॒ संभ॑व क॒र्दम ।
श्रियं॑-वाँ॒सय॑ मे कु॒ले॒ मा॒तरं॑ पद्म॒मालि॑नीम् ॥

आपः॑ सृ॒जंतु॑ स्नि॒ग्धा॒नि॒ चि॒क्ली॒त व॑स मे॒ गृहे ।
नि च॑ दे॒वीं मा॒तरं॒ श्रियं॑-वाँ॒सय॑ मे कु॒ले ॥

आ॒र्द्रां पु॒ष्करि॑णीं पु॒ष्टिं॒ पिं॒ग॒लां प॑द्ममा॒लिनीम् ।
चं॒द्रां हि॒रण्म॑यीं-लँ॒क्ष्मीं जात॑वेदो म॒ आव॑ह ॥

आ॒र्द्रां-यँः॒ करि॑णीं-यँ॒ष्टिं॒ सु॒व॒र्णां हे॑ममा॒लिनीम् ।
सू॒र्यां हि॒रण्म॑यीं-लँ॒क्ष्मीं॒ जात॑वेदो म॒ आव॑ह ॥

तां म॒ आव॑ह॒ जात॑वेदो ल॒क्षीमन॑पगा॒मिनी᳚म् ।
यस्यां॒ हिर॑ण्यं॒ प्रभू॑तं॒ गावो॑ दा॒स्योऽश्वा᳚न्, विं॒देयं॒ पुरु॑षान॒हम् ॥

यश्शुचिः॑ प्रयतो भू॒त्वा॒ जु॒हुया॑-दाज्य॒-मन्व॑हम् ।
श्रियः॑ पं॒चद॑शर्चं च श्री॒काम॑स्सत॒तं॒ ज॑पेत् ॥

आनंदः कर्द॑मश्चै॒व चिक्ली॒त इ॑ति वि॒श्रुताः ।
ऋष॑य॒स्ते त्र॑यः पुत्राः स्व॒यं॒ श्रीरे॑व दे॒वता ॥

पद्मानने प॑द्म ऊ॒रू॒ प॒द्माक्षी प॑द्मसं॒भवे ।
त्वं मां᳚ भ॒जस्व॑ पद्मा॒क्षी ये॒न सौख्यं॑-लँभा॒म्यहम् ॥

अ॒श्वदा॑यी च गोदा॒यी॒ ध॒नदा॑यी म॒हाध॑ने ।
धनं॑ मे॒ जुष॑तां दे॒वीं स॒र्वका॑मार्थ॒ सिद्ध॑ये ॥

पुत्रपौत्र धनं धान्यं हस्त्यश्वाजाविगो रथम् ।
प्रजानां भवसि माता आयुष्मंतं करोतु माम् ॥

चंद्राभां-लँक्ष्मीमीशानां सूर्याभां᳚ श्रियमीश्वरीम् ।
चंद्र सूर्याग्नि सर्वाभां श्री महालक्ष्मी-मुपास्महे ॥

धन-मग्नि-र्धनं-वाँयु-र्धनं सूर्यो॑ धनं-वँसुः ।
धनमिंद्रो बृहस्पति-र्वरु॑णं धनम॑श्नुते ॥

वैनतेय सोमं पिब सोमं॑ पिबतु वृत्रहा ।
सोमं॒ धनस्य सोमिनो॒ मह्यं॑ ददातु सोमिनी॑ ॥

न क्रोधो न च मात्स॒र्यं न लोभो॑ नाशुभा मतिः ।
भवंति कृत पुण्यानां भ॒क्तानां श्री सू᳚क्तं जपेत्सदा ॥

वर्​षं᳚तु॒ ते वि॑भाव॒रि॒ दि॒वो अभ्रस्य विद्यु॑तः ।
रोहं᳚तु सर्व॑बीजान्यव ब्रह्म द्वि॒षो᳚ ज॑हि ॥

पद्मप्रिये पद्मिनि पद्महस्ते पद्मालये पद्म-दलायताक्षी ।
विश्वप्रिये विष्णु मनोनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व ॥

या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी ।
गंभीरा वर्तनाभिः स्तनभरनमिता शुभ्र वस्तोत्तरीया ॥

लक्ष्मी-र्दिव्यै-र्गजेंद्रै-र्मणिगण खचितै-स्स्नापिता हेमकुंभैः ।
नित्यं सा पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्व मांगल्ययुक्ता ॥

लक्ष्मीं क्षीर समुद्र राजतनयां श्रीरंग धामेश्वरीम् ।
दासीभूत समस्त देव वनितां-लोँकैक दीपांकुराम् ।
श्रीमन्मंद कटाक्ष लब्ध विभव ब्रह्मेंद्र गंगाधराम् ।
त्वां त्रैलोक्य कुटुंबिनीं सरसिजां-वंँदे मुकुंदप्रियाम् ॥

सिद्धलक्ष्मी-र्मोक्षलक्ष्मी-र्जयलक्ष्मी-स्सरस्वती ।
श्रीलक्ष्मी-र्वरलक्ष्मीश्च प्रसन्ना मम सर्वदा ॥

वरांकुशौ पाशमभीति मुद्राम् ।
करैर्वहंतीं कमलासनस्थाम् ।
बालर्ककोटि प्रतिभां त्रिनेत्राम् ।
भजेऽहमंबां जगदीश्वरीं ताम् ॥

सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्य्रंबके देवी नारायणि नमोस्तुते ॥

ॐ म॒हा॒दे॒व्यै च॑ वि॒द्महे॑ विष्णुप॒त्नी च॑ धीमहि । तन्नो॑ लक्ष्मीः प्रचो॒दया᳚त् ॥

श्री-र्वर्च॑स्व॒-मायु॑ष्य॒-मारो᳚ग्य॒-मावी॑धा॒त् पव॑मानं मही॒यते᳚ ।
धा॒न्यं ध॒नं प॒शुं ब॒हुपु॑त्रला॒भं श॒तसं᳚​वँत्स॒रं दी॒र्घमायुः॑ ॥

ॐ शांतिः॒ शांतिः॒ शांतिः॑ ॥

सुनें श्री सूक्तम् स्तोत्र | Listen Shri Suktam Stotra

श्री सूक्त (ऋग्वेद) Full Shri Suktam with Lyrics – (A Vedic Hymn Addressed to Goddess Lakshmi)

श्री सूक्तम् स्तोत्र का अर्थ | Shiv Manas Puja Meaning in Hindi

हे जातवेदा (सर्वज्ञ) अग्निदेव! सुवर्ण के समान पीले रंगवाली, किंचित हरितवर्ण वाली, सोने और चांदी के हार पहनने वाली, चांदी के समान धवल पुष्पों की माला धारण करने वाली, चन्द्र के समान प्रसन्नकान्ति, स्वर्णमयी लक्ष्मीदेवी को मेरे लिए आवाहन करो (बुलाइए)।

हे अग्निदेव! आप उन जगत प्रसिद्ध लक्ष्मीजी को, जिनका कभी विनाश नहीं होता तथा जिनके आगमन से मैं सोना, गौ, घोड़े तथा पुत्रादि को प्राप्त करुंगा, मेरे लिए आवाहन करो।
जिन देवी के आगे घोड़े तथा उनके पीछे रथ रहते हैं अथवा जिनके सम्मुख घोड़े रथ में जुते हुए हैं, ऐसे रथ में बैठी हुई, हाथियों के निनाद से प्रमुदित होने वाली, देदीप्यमान एवं समस्तजनों को आश्रय देने वाली लक्ष्मीजी को मैं अपने सम्मुख बुलाता हूँ। दीप्यमान व सबकी आश्रयदाता वह लक्ष्मी मेरे घर में सर्वदा निवास करें।

जो साक्षात् ब्रह्मरूपा, मन्द-मन्द मुसकराने वाली, जो चारों ओर सुवर्ण से ओत-प्रोत हैं, दया से आर्द्र हृदय वाली या समुद्र से प्रादुर्भूत (प्रकट) होने के कारण आर्द्र शरीर होती हुई भी तेजोमयी हैं, स्वयं पूर्णकामा होने के कारण भक्तों के नाना प्रकार के मनोरथों को पूर्ण करने वाली, भक्तानुग्रहकारिणी, कमल के आसन पर विराजमान तथा पद्मवर्णा हैं, उन लक्ष्मीदेवी का मैं यहां आवाहन करता हूँ।

मैं चन्द्र के समान शुभ्र कान्तिवाली, सुन्दर, द्युतिशालिनी, यश से दीप्तिमती, स्वर्गलोक में इन्द्रादि देवगणों के द्वारा पूजित, उदारशीला, पद्महस्ता, सभी की रक्षा करने वाली एवं आश्रयदात्री लक्ष्मीदेवी की शरण ग्रहण करता हूँ। मेरा दारिद्रय दूर हो जाय। मैं आपको शरण्य के रूप में वरण करता हूँ अर्थात् आपका आश्रय लेता हूँ।
हे सूर्य के समान कान्ति वाली! तुम्हारे ही तप से वृक्षों में श्रेष्ठ मंगलमय बिना फूल के फल देने वाला बिल्ववृक्ष उत्पन्न हुआ। उस बिल्व वृक्ष के फल हमारे बाहरी और भीतरी (मन व संसार के) दारिद्रय को दूर करें।
हे लक्ष्मी! देवसखा (महादेव के सखा) कुबेर और उनके मित्र मणिभद्र अर्थात् चिन्तामणि तथा दक्ष प्रजापति की कन्या कीर्ति मुझे प्राप्त हों। अर्थात् मुझे धन और यश की प्राप्ति हो। मैं इस राष्ट्र में–देश में उत्पन्न हुआ हूँ, मुझे कीर्ति और ऋद्धि प्रदान करें।

लक्ष्मी की ज्येष्ठ बहिन अलक्ष्मी (दरिद्रता की अधिष्ठात्री देवी) का, जो क्षुधा और पिपासा से मलिन–क्षीणकाय रहती हैं, मैं नाश चाहता हूँ। देवि! मेरे घर से सब प्रकार के दारिद्रय और अमंगल को दूर करो।
सुगन्धित पुष्प के समर्पण करने से प्राप्त करने योग्य, किसी से भी दबने योग्य नहीं, धन-धान्य से सर्वदा पूर्ण, गौ-अश्वादि पशुओं की समृद्धि देने वाली, समस्त प्राणियों की स्वामिनी तथा संसार प्रसिद्ध लक्ष्मीदेवी का मैं यहां–अपने घर में आवाहन करता हूँ।

हे लक्ष्मी देवी! आपके प्रभाव से मन की कामनाएं और संकल्प की सिद्धि एवं वाणी की सत्यता मुझे प्राप्त हों; मैं गौ आदि पशुओं के दूध, दही, यव आदि एवं विभिन्न अन्नों के रूप (भक्ष्य, भोज्य, चोष्य, लेह्य, चतुर्विध भोज्य पदार्थों) को प्राप्त करुँ। सम्पत्ति और यश मुझमें आश्रय लें अर्थात् मैं लक्ष्मीवान एवं कीर्तिमान बनूँ।
लक्ष्मी के पुत्र कर्दम की हम संतान हैं। कर्दम ऋषि! आप हमारे यहां उत्पन्न हों (अर्थात् कर्दम ऋषि की कृपा होने पर लक्ष्मी को मेरे यहां रहना ही होगा) मेरे घर में लक्ष्मी निवास करें। पद्मों की माला धारण करने वाली सम्पूर्ण संसार की माता लक्ष्मीदेवी को हमारे कुल में स्थापित कराओ।

समुद्र-मन्थन द्वारा चौदह रत्नों के साथ लक्ष्मी का भी आविर्भाव हुआ है। इसी अभिप्राय में कहा गया है कि वरुण देवता स्निग्ध पदार्थों की सृष्टि करें। पदार्थों में सुन्दरता ही लक्ष्मी है। लक्ष्मी के आनन्द, कर्दम, चिक्लीत और श्रीत–ये चार पुत्र हैं। इनमें चिक्लीत से प्रार्थना की गयी है। हे लक्ष्मीपुत्र चिक्लीत! आप भी मेरे घर में वास करें और दिव्यगुणयुक्ता तथा सर्वाश्रयभूता अपनी माता लक्ष्मी को भी मेरे कुल में निवास करायें।
हे अग्निदेव! हाथियों के शुण्डाग्र से अभिषिक्त अतएव आर्द्र शरीर वाली, पुष्टि को देने वाली अर्थात् पुष्टिरूपा, पीतवर्णा, पद्मों (कमल) की माला धारण करने वाली, चन्द्रमा के समान शुभ्र कान्ति से युक्त, स्वर्णमयी लक्ष्मीदेवी का मेरे घर में आवाहन करें।

हे अग्निदेव! जो दुष्टों का निग्रह करने वाली होने पर भी कोमल स्वभाव की हैं, जो मंगलदायिनी, अवलम्बन प्रदान करने वाली यष्टिरूपा हैं (जिस प्रकार लकड़ी के बिना असमर्थ पुरुष चल नहीं सकता, उसी प्रकार लक्ष्मी के बिना संसार का कोई भी कार्य ठीक प्रकार नहीं हो पाता), सुन्दर वर्णवाली, सुवर्णमालाधारिणी, सूर्यस्वरूपा तथा हिरण्यमयी हैं (जिस प्रकार सूर्य प्रकाश और वृष्टि द्वारा जगत का पालन-पोषण करता है, उसी प्रकार लक्ष्मी ज्ञान और धन के द्वारा संसार का पालन-पोषण करती है), उन प्रकाशस्वरूपा लक्ष्मी का मेरे लिए आवाहन करें।
हे अग्निदेव! कभी नष्ट न होने वाली उन स्थिर लक्ष्मी का मेरे लिए आवाहन करें जो मुझे छोड़कर अन्यत्र नहीं जाने वाली हों, जिनके आगमन से बहुत-सा धन, उत्तम ऐश्वर्य, गौएं, दासियां, अश्व और पुत्रादि को हम प्राप्त करें।
जिसे लक्ष्मी की कामना हो, वह प्रतिदिन पवित्र और संयमशील होकर अग्नि में घी की आहुतियां दे तथा इन पंद्रह ऋचाओं वाले–“श्री-सूक्त” का निरन्तर पाठ करे।

श्री सूक्तम् स्तोत्र के लाभ | Shri Suktam Stotra Ke Labh

“श्री सूक्तम् स्तोत्र” को एक बहुत ही सुंदर पाठ और पूजा का रूप माना जाता है,पूजा मन में एकाग्रता के साथ और भक्त के सामने भगवान की उपस्थिति की भावना के साथ की जाती है; यह बहुत ही महत्वपूर्ण, पवित्र और पवित्र है। श्री सूक्त का पाठ हमेशा श्रद्धा और विश्वास के साथ करने से लक्ष्मी जी बहुत जल्दी प्रसन्न होती हैं और पूजा करने वाले को धन संपदा और ऐश्वर्य प्रदान करती है। धन की इच्छा रखने वालो को श्री सूक्त का पाठ प्रतिदिन करना चाहिए।

  • श्री सूक्त का पाठ प्रतिदिन करने से जीवन में दरिद्रता का नाश होता है।
  • श्री सूक्त करने से धन, संपदा और वैभव मिलता है।
  • श्री सूक्त का पाठ करने वाले पर माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु सदैव प्रसन्न रहते हैं।
  • श्री सूक्त से वाहन, मकान आदि का लाभ मिलता है।

श्री सूक्तम् स्तोत्र के लिए सावधानियां | Shri Suktam Stotra ke lie Savdhaniyan

शास्त्रों और पुराणों में पूजा करने के दौरान कुछ नियमों के पालन करने के बारे में बताए गया है, श्री सूक्तम् स्तोत्र का पाठ करते समय जरूर ध्यान में रखना चाहिए। आइए जानते हैं कि Shri Suktam Stotra का पाठ करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए…..

  • सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान आदि करके साफ कपड़े पहने।
  • श्री सूक्त स्तोत्र का पाठ करते समय मन में किसी प्रकार की बुरे विचार नहीं आने चाहिए |
  • जहां पूजा करनी हो वह स्थान साफ कर ले और वहां लाल रेशमी कपड़े पर माता लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर जिसमें माता लक्ष्मी कमल पर विराजमान हो स्थापित करें।
  • अगर संस्कृत में श्री सूक्त का पाठ न कर पाएं तो हिंदी में श्री सूक्त का पाठ करें। साथ ही साथ माता लक्ष्मी का ध्यान करें। दिवाली, नवरात्र को लक्ष्मी सूक्त का पाठ विधि विधान से पूर्ण करने का विशेष महत्व है।

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