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मंत्र मातृका पुष्प माला स्तव | Sri Mantra Matruka Pushpa Mala Stavam

Sri Mantra Matruka Pushpa Mala Stavam

मंत्र मातृका पुष्पमाला स्तव (Mantra Matruka Pushpamala Stava) एक संस्कृत श्लोक है जो मातृका देवी की स्तुति के लिए प्रयोग किया जाता है। यह मंत्र संग्रह “तन्त्रालोक” में मिलता है, जो तंत्रशास्त्र का महत्वपूर्ण ग्रंथ है। मंत्र मातृका पुष्पमाला स्तव के द्वारा, देवी की महिमा, शक्ति और समृद्धि का प्रशंसा की जाती है। यह एक पूजा आराधना का हिस्सा भी हो सकता है जहां मातृका देवी के सामर्थ्य को वंदना किया जाता है।

मंत्र मातृका पुष्प माला स्तव | Sri Mantra Matruka Pushpa Mala Stavam

कल्लोलोल्लसितामृताब्धिलहरीमध्ये विराजन्मणि-
-द्वीपे कल्पकवाटिकापरिवृते कादंबवाट्युज्ज्वले ।
रत्नस्तंभसहस्रनिर्मितसभामध्ये विमानोत्तमे
चिंतारत्नविनिर्मितं जननि ते सिंहासनं भावये ॥ 1 ॥

एणांकानलभानुमंडललसच्छ्रीचक्रमध्ये स्थितां
बालार्कद्युतिभासुरां करतलैः पाशांकुशौ बिभ्रतीम् ।
चापं बाणमपि प्रसन्नवदनां कौसुंभवस्त्रान्वितां
तां त्वां चंद्रकलावतंसमकुटां चारुस्मितां भावये ॥ 2 ॥

ईशानादिपदं शिवैकफलदं रत्नासनं ते शुभं
पाद्यं कुंकुमचंदनादिभरितैरर्घ्यं सरत्नाक्षतैः ।
शुद्धैराचमनीयकं तव जलैर्भक्त्या मया कल्पितं
कारुण्यामृतवारिधे तदखिलं संतुष्टये कल्पताम् ॥ 3 ॥

लक्ष्ये योगिजनस्य रक्षितजगज्जाले विशालेक्षणे
प्रालेयांबुपटीरकुंकुमलसत्कर्पूरमिश्रोदकैः ।
गोक्षीरैरपि नारिकेलसलिलैः शुद्धोदकैर्मंत्रितैः
स्नानं देवि धिया मयैतदखिलं संतुष्टये कल्पताम् ॥ 4 ॥

ह्रीं‍कारांकितमंत्रलक्षिततनो हेमाचलात्संचितैः
रत्नैरुज्ज्वलमुत्तरीयसहितं कौसुंभवर्णांशुकम् ।
मुक्तासंततियज्ञसूत्रममलं सौवर्णतंतूद्भवं
दत्तं देवि धिया मयैतदखिलं संतुष्टये कल्पताम् ॥ 5 ॥

हंसैरप्यतिलोभनीयगमने हारावलीमुज्ज्वलां
हिंदोलद्युतिहीरपूरिततरे हेमांगदे कंकणे ।
मंजीरौ मणिकुंडले मकुटमप्यर्धेंदुचूडामणिं
नासामौक्तिकमंगुलीयकटकौ कांचीमपि स्वीकुरु ॥ 6 ॥

सर्वांगे घनसारकुंकुमघनश्रीगंधपंकांकितं
कस्तूरीतिलकं च फालफलके गोरोचनापत्रकम् ।
गंडादर्शनमंडले नयनयोर्दिव्यांजनं तेऽंचितं
कंठाब्जे मृगनाभिपंकममलं त्वत्प्रीतये कल्पताम् ॥ 7 ॥

कह्लारोत्पलमल्लिकामरुवकैः सौवर्णपंकेरुहै-
-र्जातीचंपकमालतीवकुलकैर्मंदारकुंदादिभिः ।
केतक्या करवीरकैर्बहुविधैः क्लुप्ताः स्रजो मालिकाः
संकल्पेन समर्पयामि वरदे संतुष्टये गृह्यताम् ॥ 8 ॥

हंतारं मदनस्य नंदयसि यैरंगैरनंगोज्ज्वलै-
-र्यैर्भृंगावलिनीलकुंतलभरैर्बध्नासि तस्याशयम् ।
तानीमानि तवांब कोमलतराण्यामोदलीलागृहा-
-ण्यामोदाय दशांगगुग्गुलुघृतैर्धूपैरहं धूपये ॥ 9 ॥

लक्ष्मीमुज्ज्वलयामि रत्ननिवहोद्भास्वत्तरे मंदिरे
मालारूपविलंबितैर्मणिमयस्तंभेषु संभावितैः ।
चित्रैर्हाटकपुत्रिकाकरधृतैर्गव्यैर्घृतैर्वर्धितै-
-र्दिव्यैर्दीपगणैर्धिया गिरिसुते संतुष्टये कल्पताम् ॥ 10 ॥

ह्रीं‍कारेश्वरि तप्तहाटककृतैः स्थालीसहस्रैर्भृतं
दिव्यान्नं घृतसूपशाकभरितं चित्रान्नभेदं तथा ।
दुग्धान्नं मधुशर्करादधियुतं माणिक्यपात्रे स्थितं
माषापूपसहस्रमंब सफलं नैवेद्यमावेदये ॥ 11 ॥

सच्छायैर्वरकेतकीदलरुचा तांबूलवल्लीदलैः
पूगैर्भूरिगुणैः सुगंधिमधुरैः कर्पूरखंडोज्ज्वलैः ।
मुक्ताचूर्णविराजितैर्बहुविधैर्वक्त्रांबुजामोदनैः
पूर्णा रत्नकलाचिका तव मुदे न्यस्ता पुरस्तादुमे ॥ 12 ॥

कन्याभिः कमनीयकांतिभिरलंकारामलारार्तिका
पात्रे मौक्तिकचित्रपंक्तिविलसत्कर्पूरदीपालिभिः ।
तत्तत्तालमृदंगगीतसहितं नृत्यत्पदांभोरुहं
मंत्राराधनपूर्वकं सुविहितं नीराजनं गृह्यताम् ॥ 13 ॥

लक्ष्मीर्मौक्तिकलक्षकल्पितसितच्छत्त्रं तु धत्ते रसा-
-दिंद्राणी च रतिश्च चामरवरे धत्ते स्वयं भारती ।
वीणामेणविलोचनाः सुमनसां नृत्यंति तद्रागव-
-द्भावैरांगिकसात्त्विकैः स्फुटरसं मातस्तदाकर्ण्यताम् ॥ 14 ॥

ह्रीं‍कारत्रयसंपुटेन मनुनोपास्ये त्रयीमौलिभि-
-र्वाक्यैर्लक्ष्यतनो तव स्तुतिविधौ को वा क्षमेतांबिके ।
सल्लापाः स्तुतयः प्रदक्षिणशतं संचार एवास्तु ते
संवेशो नमसः सहस्रमखिलं त्वत्प्रीतये कल्पताम् ॥ 15 ॥

श्रीमंत्राक्षरमालया गिरिसुतां यः पूजयेच्चेतसा
संध्यासु प्रतिवासरं सुनियतस्तस्यामलं स्यान्मनः ।
चित्तांभोरुहमंटपे गिरिसुता नृत्तं विधत्ते रसा-
-द्वाणी वक्त्रसरोरुहे जलधिजा गेहे जगन्मंगला ॥ 16 ॥

इति गिरिवरपुत्रीपादराजीवभूषा
भुवनममलयंती सूक्तिसौरभ्यसारैः ।
शिवपदमकरंदस्यंदिनीयं निबद्धा
मदयतु कविभृंगान्मातृकापुष्पमाला ॥ 17 ॥

इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य श्रीगोविंदभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य श्रीमच्छंकरभगवतः कृतौ मंत्रमातृकापुष्पमाला स्तवः ।

सुने मंत्र मातृका पुष्प माला स्तव | Listen Sri Mantra Matruka Pushpa Mala Stavam

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मंत्र मातृका पुष्प माला स्तव के लाभ | Benefits of Sri Mantra Matruka Pushpa Mala Stavam

  1. देवी की महिमा और गुणों की प्रशंसा: यह स्तव देवी की शांति, क्षमा, धर्म, शिवतत्त्व और प्रज्ञा की प्रशंसा करता है। इसमें देवी को भगवती, शांता, धर्ममयी और शिवा रूपी शक्तिस्वरूपी माता के रूप में समर्पित किया जाता है।
  2. देवी की पूजा: स्तव में देवी को प्रणाम किया जाता है और उन्हें आत्मा का शरण और प्रणतार्ति हरणे वाली शक्ति के रूप में स्तुति दी जाती है।
  3. देवी के रूपों की पूजा: स्तव में पञ्चमुखी और त्रिनेत्रकम रूपी देवी की पूजा की जाती है। पञ्चमुखी रूप देवी को पञ्चतत्त्वों के संक्रमण का प्रतीक और त्रिनेत्रकम रूप देवी को पशुपति (शिव) की पत्नी के रूप में स्तुति किया जाता है।
  4. देवी के नामों की महिमा: स्तव में देवी के नामों की महिमा का वर्णन किया जाता है, जैसे नारायणी और प्रणवाक्षरसिद्धार्थ।
  5. संसार के बीज और गुरु की महत्वता: स्तव में संसार के बीज के रूप में गुरु और उसकी आश्रय और सहायता की महिमा का वर्णन किया जाता है। यह स्तव इस प्रकार एक पुष्पमाला के रूप में देवी को समर्पित है जिसमें प्रत्येक मंत्र एक पुष्प के समान होता है और पूरा स्तव एक पूर्ण पुष्पमाला की तरह देवी को समर्पित होता है।

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