तंत्र क्या होता है? और इसका इतिहास क्या है? | What is Tantra and History of Tantra
तंत्र शब्द सुनते ही लोग तुरंत अचंबित और जिज्ञासु हो जाते है। हर कोई इसके बारे में जानना चाहता है की आखिर ये तंत्र क्या होता है, यह कैसे काम करता है इत्यादि| तंत्र के बारे में काफी गलत चीज़े भी फैली हुई है कि तंत्र से ऐसा होता है वैसा होता है। तंत्र गलत चीज़ों में प्रयोग होता है, लेकिन तंत्र गलत चीज़ो से ज्यादा बहुत ही अच्छे कार्यों में भी प्रयोग होता है , लोगों को इस बारे में नहीं पता होता है। इस आर्टिकल में आपको तंत्र से जुड़े हुए हर पहलू का जवाब मिलेगा और हम इस आर्टिकल के माध्यम से तंत्र को समझने कि कोशिश करेंगे। तो आईए सबसे पहले हम शुरुआत इसके इतिहास को जानने से करते है, इसके बाद हम तंत्र क्या होता है यह जानेंगे।
तंत्र का इतिहास | History of Tantra
तंत्र का इतिहास काफी पुराना है। इसका वर्णन हमे अर्थ वेद संहिता में मिलता है। हालांकि उस समय इसका प्रचलन काफी कम था और बहुत से लोग मानते हैं कि कनिष्क के समय और उसके बाद इन सब का प्रचार प्रसार हुआ। हिंदू समाज में इसका प्रचलन काफी ज्यादा था जिसको देखकर बौद्धों ने भी इसका प्रयोग करना शुरू किया और इसका प्रचार प्रसार तिब्बत तथा चीन में किया। हिंदू तांत्रिक पौधों के तंत्र को उप तंत्र कहते थे। हिंदू ऋषि मुनियों को इसका उपजनक माना जाता है इन्होंने ही इसका प्रचार प्रसार किया था और आज भी साधु समाज ही इसे बढ़ा रहे है।
तंत्र का जन्म (एडी 500)
एक दर्शन और प्रथाओं के रूप में तंत्र भारत में विकसित होता है, इसका नाम पवित्र निर्देशात्मक ग्रंथों से लिया गया है जो सभी शक्तिशाली देवताओं का आह्वान करने के लिए अनुष्ठानों का वर्णन करते हैं। तंत्र समाज के हाशिये पर शुरू होता है, हिंदू भगवान शिव के भक्तों के बीच, ब्रह्मांड के विध्वंसक, और शक्ति, ब्रह्मांड की सर्वव्यापी शक्ति। 700 के दशक तक पूरे भारत में हिंदू और बौद्ध मठों में तंत्र का अध्ययन किया जा रहा था।
भारत में तंत्र का उदय (500-1500 ई.)
गुप्त और वाकाटक राजवंशों के टूटने और कई नए राज्यों के उदय के साथ राजनीतिक अशांति की अवधि के दौरान तंत्र ने दक्षिण एशिया में पकड़ बना ली, जिनके शासक तंत्र के साथ-साथ आध्यात्मिक शक्ति के वादे के लिए तैयार थे। उन्होंने विशेष रूप से 900 ईस्वी से तांत्रिक देवताओं को प्रतिष्ठित करने वाले शानदार मंदिरों का निर्माण किया। दर्शन नए देवताओं की एक श्रृंखला को प्रेरित करता है और देवी पूजा के नाटकीय उदय को ट्रिगर करता है।
पूरे एशिया में तंत्र का प्रसार (600-1500 ई.)
तांत्रिक बौद्ध धर्म, जिसे वज्रयान (थंडरबोल्ट का पथ) के रूप में भी जाना जाता है, तीर्थयात्रा, व्यापार और राजनयिक नेटवर्क के माध्यम से पूरे एशिया में यात्रा करने से पहले, पूर्वी भारत में मठों में फलता-फूलता है। तांत्रिक आचार्य लगभग 700 ईस्वी से भारत से तिब्बत में शिक्षाओं का संचार करते हैं, और 1000 और 1300 के दशक के बीच कई वज्रयान विचार धाराएँ वहाँ विकसित हुईं। 800 ईस्वी पूर्व में, कुकाई नाम का एक जापानी भिक्षु चीन से तांत्रिक शिक्षाओं को जापान लाता है और शिंगोन (मंत्र या ‘सच्चा शब्द’) परंपरा की स्थापना करता है।
तंत्र और भारत के शाही दरबार (1500-1800)
1500 और 1800 के बीच भारत के दरबारों के शासकों को तंत्र का आकर्षण तांत्रिक बना रहता है। इनमें उत्तर-पश्चिम के हिंदू राजपूत शासक, दक्षिण में स्वतंत्र सल्तनत के मुस्लिम शासक और 1526 से एक साम्राज्य के मुगल शासक शामिल हैं जो हावी हैं। अगले 200 वर्षों के लिए भारत। तांत्रिक साधना का एक रूप जो लोकप्रिय हो जाता है वह है हठ योग (बल का योग), जो शरीर को एक पवित्र साधन के रूप में उपयोग करता है।
औपनिवेशिक भारत में तंत्र और क्रांति (1757-1947)
तांत्रिक देवी काली का प्रिंट, रवि वर्मा प्रेस द्वारा प्रकाशित, लगभग 1910-20। © मेट्रोपॉलिटन म्यूज़ियम ऑफ़ आर्ट, न्यूयॉर्क।
1757 में प्लासी की निर्णायक लड़ाई के बाद ब्रिटिश शासन पूरे भारत में विकसित हुआ। 1911 तक, ब्रिटिश राजधानी बंगाल (अब कोलकाता) में कलकत्ता में है, जो तांत्रिक देवी काली की भक्ति का केंद्र है। तंत्र की गलत व्याख्याएं काले जादू और यौन दुराचार से भ्रष्ट भारत की ब्रिटिश रूढ़िवादिता को पुष्ट करती हैं, जबकि बंगाली क्रांतिकारी इन चिंताओं पर खेलते हैं और काली और अन्य तांत्रिक देवी-देवताओं को उपनिवेशवाद-विरोधी प्रतिरोध के प्रमुख के रूप में फिर से कल्पना करते हैं।
तंत्र और वैश्विक प्रतिसंस्कृति (1960-1980)
1960 और 70 के दशक में, तांत्रिक विचारों और इमेजरी पर वैश्विक काउंटरकल्चरल आंदोलन आकर्षित हुए। नव-तंत्र आंदोलन से जुड़े दक्षिण एशियाई कलाकार तांत्रिक प्रतीकों को अपनाते हैं और उन्हें वैश्विक आधुनिकता की दृश्य भाषा में बोलने के लिए अनुकूलित करते हैं। यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका में, तंत्र की व्याख्याएं उस अवधि की कट्टरपंथी राजनीति को प्रभावित करती हैं – पूंजीवादी विरोधी, पारिस्थितिक और मुक्त प्रेम आदर्शों को प्रेरित करती हैं।
तंत्र आज (21 वीं सदी)
एक विश्वदृष्टि, दर्शन और प्रथाओं के सेट के रूप में, तंत्र हमेशा की तरह जीवित है, और कई तांत्रिक स्थल हैं जिनकी सक्रिय रूप से पूजा की जाती है। समकालीन कला की दुनिया में, महिला कलाकारों ने वास्तविक महिलाओं के शरीर के माध्यम से तांत्रिक देवी-देवताओं का दोहन किया है, उन्हें एक नारीवादी धारणा के माध्यम से उठाया है।
उदहारण के जरिये तंत्र कि व्याख्या
आजकल लोग तंत्र के बारे में बुरा सोचते है क्यूंकि कुछ लोगों ने पिछले कुछ वर्षो में तंत्र का प्रयोग गलत ढंग से किया है। जैसे कि किसी को नुकसान पहुँचाना या किसी की जिंदगी में गड़बड़ी कर देना। लेकिन तंत्र एक ऊँची कोटि कि चीज़ है , भगवन शिव खुद एक तांत्रिक है।
तंत्र को मोटे रूप से दो भागो में बाटा गया है। पहले जिसमें हम बाहरी चीज़ो का इस्तेमाल करते है और दूसरा जिसमें हम अपने शरीर का इस्तेमाल करते है। तंत्र का मतलब है एक तरह कि काबिलियत या कहो तो तकनीक (technique)। उदहारण के तौर पर जैसे आज के दौर में हम अपने फ़ोन से दूर बैठे लोगों से बात कर सकते। ये एक आधुनिक तकनीक (technique) है। पर अगर बिना किसी फ़ोन के ही किसी से बात हो पाए तो यह तंत्र है। तंत्र और तकनीक (technique) में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है। हम बात करने के लिए अलग उपकरण इस्तेमाल कर सकते है पर दोनों है एक ही चीज़ क्यूंकि दोनों ही जरिये से हम बात कर पा रहे है। इसी तरह तंत्र से हम बहुत कुछ कर सकते है अगर इसका ज्ञान अच्छे से हो तो। जैसे हम कुछ चीज़े करने के लिए बाहरी उपकरण का इस्तेमाल करते है वैसे ही तंत्र के जरिये अपने शरीर और मन का इस्तेमाल करना सीखते है। आधुनिक उपकरण बनाने के लिए जिस तरह ब्रह्माण्ड में मौजूद तरंगों (frequencies) और ब्रह्माण्ड कि ऊर्जा (energy) का प्रयोग किया जाता है जिस से हम दूर बैठे इंसान से बात कर सकते है , टीवी पर प्रोग्राम देख सकते है ठीक उसी तरह तंत्र में भी ब्राह्मण कि तरंग (frequencies) और ब्राह्मण कि ऊर्जा (energy) का प्रयोग किया जाता है। जिस से हम वही काम कर सकते है जो हम आम जिंदगी में आधुनिक उपकरण के जरिये करते है। यह सब कुछ मंत्रों द्वारा और कुछ क्रियाओं द्वारा तंत्र के जरिये संभव है। यही नहीं तंत्र के बारे में हमारे अथर्वेद में भी काफी बातें लिखी हुई है। पुराने समय में खतरानक हथियार जैसे ब्रह्मास्त्र और सर्पास्त्र में भी तंत्र के प्रयोग से पाए जाते थे। जो लोग तंत्र में रूचि रखते है या फिर जो लोग तंत्र सीखते है वो लोग माँ कामाख्या के मंदिर को बहुत मानते है। क्यूंकि कामाख्या माता को तंत्र कि जननी भी कहा जाता है।
क्या है बुरे तंत्र से बचने का उपाय
वैसे तो बहुत काम लोग होते है जो किसी का बुरा करने के लिए तंत्र का प्रयोग करते है क्यूंकि कर्म से बड़ा कुछ नहीं होता , जो कर्म हम दूसरों के साथ करते है उसका परिणाम हमे प्रकृति और भगवान जरूर देता है चाहे वह बुरा कर्म तांत्रिक करे या आम आदमी। पर दुनिये में कुछ लोग ऐसे होते है जो तंत्र का इस्तेमाल बुरे काम करने के लिए करते है। लेकिन कुछ अच्छे तांत्रिक लोग बताते है कि अगर आप हनुमान जी या माँ काली या भगवती माँ कि पूजा करते है या उपासना करते है तो तंत्र का असर न के बराबर होता है और बहुत ही कम समय के लिए होता है।
तंत्र के प्रकार
तंत्र को तांत्रिक परम्परा में मुख्य रूप से 4 प्रकार में डिवाइड (divide) किया गया है। जो कि इस प्रकार है।
- शैव तंत्र : जो तांत्रिक भगवान शिव को मानते है वो शैव तंत्र कि साधना करते है।
- शाक्त तंत्र : जो तांत्रिक माँ शक्ति या काली माँ कि उपासना करते हुए तंत्र विद्या करते है वो शाक्त तंत्र में आते है।
- बौद्ध तंत्र : भगवान बुद्ध को जो लोग मानते है और उपासना करते है वो बौद्ध तंत्र में आते है।
- वैषणव तंत्र : जो तांत्रिक भगवान विष्णु को मानते है वो तांत्रिक वैष्णव तंत्र में आते है।
तंत्र में कितने प्रकार के कर्म होते है।
तंत्र में मुख्य रूप से 6 प्रकार के कर्म होते है जिसे शठ कर्म भी कहते है , जो कि इस प्रकार है।
- शांति कर्म – जिस से लोगों कि और गृह आदि कि शांति होती है उसे शांति कर्म कहते है।
- वशीकरण कर्म – जिस कर्म लोगों को वश में किया जाये उसको वशीकरण कर्म प्रयोग कहते है।
- स्तंभन कर्म – जिस से लोगों की प्रगति रोक दी जाये उसे स्तंभन कर्म कहते है।
- विद्वेषण कर्म – दो लोगों के बीच दूरियां करवाने वाले कर्म को विद्वेषण कर्म कहते है।
- उच्चाटन कर्म – जिस कर्म से लोगों को देश आदि से दूर कर दिया जाये उसे उच्चाटन प्रयोग कहते है।
- मारण कर्म – जिस कर्म से किसी आदमी को मार डाला जाये उसे मारण कर्म कहते है।
तंत्र एक भगवान से जुड़ने और समाज के लोए कल्याण करने कि तकनीक है। जिसका वर्णन वेदो में भी है , परन्तु कुछ लोग इसका दुरप्रयोग करते है , हालाँकि अगर आपके कर्म अच्छे है और आप भगवान कि पूजा उपासना करते है तो आपको डरने कि जरुरत नहीं है। क्यूंकि भगवान आपके साथ है।
तंत्र के भगवान और देवता कौन हैं?
तंत्र विद्या के लिए 10 देवियों को प्रमुख माना गया है। इन्हे महाविद्या के नाम से भी जाना जाता है। इनके नाम इस प्रकार से है: काली, तारा, त्रिपुरा सुंदरी, भुवनेश्वरी, भैरवी, चिन्नमस्ता, धूमावती, बांग्लामाती, मतांगनी और कमला.
प्राचीन काल के प्रसिद्ध तांत्रिक
हिंदू इतिहास में कई प्रसिद्ध तांत्रिक हुए है जिनमे से कई के बारे में तो अच्छे से जानकारी भी उपलब्ध नहीं है। आईए हम आपको कुछ प्रसिद्ध प्राचीन तांत्रिको के नाम बताते है जो की कुछ इस प्रकार है:
- लक्ष्मणदेशीकेंद्र
- चरणस्वामी
- अमृतानंद
- राघव भट्ट
- पुण्यानंद
- ब्रह्मानंद
- गोरक्ष
- उमानंद नाथ
- काशीनाथ
निष्कर्ष:
दोस्तो आज के इस आर्टिकल में हमने आपको तंत्र क्या होता है? और इसका इतिहास क्या है के बारे में बताया। यह आर्टिकल सिर्फ जानकारी के लिए है। और हम किसी भी तरह के जादू टोने जैसे चीजों का समर्थन नहीं करते है। इस आर्टिकल का मकसद इन चीजों को बढ़ावा देने का बिल्कुल नही है। यह आर्टिकल सिर्फ आपकी जागरूकता के लिए है। तो ये आपको कैसा लगा हमे कॉमेंट के माध्यम से ज़रूर से बताए। और साथ में अगर आपके कोई सवाल हैं तो उन्हें भी आप हमसे पूछ सकते हैं।
नमस्कार सर, बोहोत लोग करणी या तंत्र से पारेशान है,, हम भी इसमे फसे हुये है,कृपया आप कूछ ऐसे किताब बता सकते है क्या ???
जिसकी मदत से हमे कोई बंधन का उपाय घर में ही कर सके, हमे किसिको भी नुकसान पोहचणे का इरादा नाही है, सिर्फ कोई ऐसे चिझो से बचने के लिये मदत ही चाहिए बसं,
नमस्कार आपने बहुत ही अच्छा प्रश्न किया है| आपकी सोच उचित है किन्तु कोई भी उपाय करने से पहले आपको एक गुरु के मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है अतः आप एक गुरु चुनिए जो आपका मार्गदर्शन करेंगे कि ऐसे समय में आपको क्या करना चाहिए और कौनसी पुस्तक पढके आप इस प्रकार का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं| धन्यवाद!