मैं मन हूँ : दीप त्रिवेदी द्वारा हिंदी ऑडियो बुक | Main Man Hun : by Deep Trivedi Hindi Audiobook
पुस्तक का विवरण / Book Details | |
AudioBook Name | मैं मन हूँ / Main Man Hun |
Author | Deep Trivedi |
Category | Audiobooks, प्रेरक / Motivational |
Language | हिंदी / Hindi |
Duration | 7:09 hrs |
Source | Youtube |
Main Man Hun Hindi Audiobook का संक्षिप्त विवरण : मैं मन हूँ। मेरा अस्तित्व उतना ही पुराना है जितना कि यह ब्रह्मांड। और मनुष्य के अस्तित्व से लेकर उसके जीवन के तमाम उतार-चढ़ावों तक का मैं ही एक ‘साक्षी’ हूँ या यह कहूं कि एक मेरे कारण ही यह मनुष्य अस्तित्व में है, तो भी गलत नहीं होगा। हर मनुष्य चौबीसों घंटे मुझसे ही चलायमान है। उसके जीवन के तमाम उतार-चढ़ाव, उसकी तमाम सफलता-असफलता या उसके सारे सुख-दुःखों का मैं ही सबसे महत्वपूर्ण और मूलभूत कारण हूँ। मजा यह कि अपने अस्तित्व के इतने वर्षों बाद भी यह मनुष्य ‘मेरे-बाबत’ पूरी तरह अनजान है। और सच कहूं तो यही उसके तमाम दुःखों व उसकी तमाम असफलताओं का मूल कारण है। आज इतने वर्षों बाद मेरी करुणा ही मुझे अपने अस्तित्व, अपनी कार्यप्रणाली तथा अपने प्रभावों के बाबत चर्चा करने को मजबूर कर रही है। लेकिन ऐसी कोई भी चर्चा छेड़ने से पूर्व मैं एक अति-सोचनीय विषय की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। सोचो, मनुष्य-जीवन का ध्येय क्या है? एक वाक्य में कहूं तो शायद “आनंद और सफलता” निश्चित ही मैंने भी देखा है और आपने भी गौर किया होगा कि हर कोई अपनी ओर से आनंद व सफलता पाने के प्रयास में चोबीसों घंटे लगा ही रहता है। और ऐसा आज से नहीं, मनुष्य अस्तित्व में आया तब से चला आ रहा है। यहां यह भी स्वीकारना होगा कि हर बीतते युग के साथ मनुष्य की बुद्धि का विकास ही हुआ है। और यह मैं ऐसे ही नहीं कह रहा, अपना जीवन संवारने हेतु उसके लगातार किये प्रयासों के परिणाम हमारी आंखों के सामने है ही। पेट भरने के लिए जंगली फल-फूल व कच्चे मांस खाने वाले मनुष्यों ने आज खान-पान की लाखों स्वादिष्ट व पौष्टिक बानगियां ईजाद कर ली हैं। जंगलों में रहकर हर ऋतु का कोप भोगनेवाले मनुष्यों ने आज धूप व ठंड से पूरी तरह रक्षा करने में समर्थ घरों का निर्माण कर लिया है। वहीं पेड़ के पत्ते पहनकर घूमने वाले इस मनुष्य ने आज अपनी सुंदरता निखारने हेतु हजारों तरीके के रंगबिरंगी पोशाकों का निर्माण भी कर ही लिया है। यही क्यों, अकेले-अकेले व सिर्फ अपने लिए जीनेवाले मनुष्य ने समाज तथा सामाजिक सोच का भी विकास किया है। आज अपने अथक प्रयासों से उसने पूरी धरती को एक कर दिया है। और इसका सबसे बड़ा परिणाम तो यह आया है कि आज का मनुष्य अब सिर्फ अपनी ही नहीं, पूरी मनुष्यता की भी चिंता करने लगा है। आज करोड़ों मनुष्य व लाखों समाजसेवी संस्थाएं मनुष्यों के उद्धार हेतु लगी हुई हैं। हजारों-लाखों अनाथालय से लेकर विकलांग-गृह व अस्पताल से लेकर बाल क्रीड़ा केन्द्र तक बनाए गए हैं। मनुष्य के साथ अन्याय न हो, इसलिए कानून व न्यायालय भी बनाए गए हैं। साथ ही मनुष्य सुखी व आनंदित रहे, इस हेतु अनेक धर्मों व धर्मग्रंथों की भी रचनाएं की गई हैं। मनुष्य की मान्यता के अनुसार तो इस धरती पर उसके उद्धार हेतु हजारों अवतारी पुरुष व भगवान भी आए हैं, और उनकी सोच सही मानें तो जरूरत पड़ने पर आगे भी आते ही रहेंगे। यही क्यों, मनुष्य के उद्धार हेतु हजारों विधियां व पूजाएं भी दुनिया-भर के धर्मों और उनके धर्मगुरुओं ने सुझाई ही हैं। और इधर मनुष्य तो हर हाल में अपना उद्धार चाहता ही हैः सो देखते-ही-देखते आज की पूरी मनुष्यता धार्मिक व पूजा-पाठ करनेवाली हो गई है। और यह कम पड़ रहा था तो विज्ञान ने मनुष्य को सुखी व आनंदित करने का बीड़ा उठा लिया। फिर तो मनुष्य-जाति के इतिहास के श्रेष्ठ बुद्धिमानों की फौज ही इसमें लग गई। उन्होंने वह क्रांति ला दी कि जहां आज से सिर्फ दो सौ वर्ष पूर्व तक दस में से करीब पांच बच्चे पैदा होते ही मर जाते थे, वहीं देखते-ही-देखते विज्ञान ने यह संख्या दो प्रतिशत के करीब पहुंचा दी है। मनुष्य के बेहतर स्वास्थ्य के लिए ना सिर्फ ब्लड-टेस्ट खोजा गया, बल्कि उसकी अधिकांश बीमारियों का इलाज भी खोज लिया गया। यही नहीं, हार्ट से लेकर नी-ट्रांसप्लांट तक की बड़ी सर्जरी भी विज्ञान ने आसान व आम कर दी। एक तरीके से विज्ञान के इन प्रयासों ने पूरा-का-पूरा मनुष्य-जीवन ही बदलकर रख दिया। हालांकि विज्ञान भी विज्ञान है। उसने ना सिर्फ मनुष्य की लंबी उम्र व स्वास्थ्य तथा स्फूर्ति की ही चिंता कीः बल्कि इससे आगे बढ़कर उसके आराम, वैभव व प्रगति की भी चलो, यदि आप मान लेते हैं कि आप बीमार हैं तो मैं आगे आपको मेरी संरचना के बारे में बताता हूँ। इससे आपको ना सिर्फ मुझे समझने बल्कि मेरे उपद्रवों से बचने में भी बड़ी सहायता मिलेगी। और इस बाबत कोई भी चर्चा प्रारंभ करने से पूर्व मैं आपको एकबार फिर याद दिला दूं कि मैं अपने सम्पूर्ण कोम्प्लीकेटेड मैकेनिज्म के साथ आपकी नाभि में अदृश्य रूप से स्थित हूँ। और चूंकि अदृश्य हूँ इसीलिए विज्ञान की पकड़ से बाहर हूँ। और अपने मैकेनिज्म की बात करूं तो मेरे तरंगों की भिन्नता के आधार पर मुझे सात प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता है। उनमें से कुछ उपद्रवी हैं तो कुछ अद्भुत शक्तियों से भरे पड़े हैं:-
मेरे उपद्रव मचाने वाले स्वरूप:-
1) कोन्शियस माइंड (Conscious mind)
2) सब-कोन्शियस माइंड (Sub-conscious mind)
3) अन-कोन्शियस माइंड (Un-Conscious Mind)
मेरी शक्तियों के केंद्र
1) सुपर-कोन्शियस माइंड (Super-conscious mind)
2) कलेक्टिव कोन्शियस माइंड (Collective Conscious Mind)
3) स्पोंटेनियस माइंड (Spontaneous Mind)
4) अल्टीमेट माइंड (Ultimate Mind)
“मुझे ऐसे मित्र की आवश्यकता नहीं जो मेरे साथ-साथ बदले और मेरी हां में हां भरे; ऐसा तो मेरी परछाई कहीं बेहतर कर लेती है।” ‐ प्लूटार्क
“I don’t need a friend who changes when I change and who nods when I nod; my shadow does that much better.” ‐ Plutarch
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