श्री दुर्गा नक्षत्र माळीका स्तोत्र एक स्तुति है जो देवी दुर्गा की 12 नक्षत्र रूपों की स्तुति करती है। यह स्तोत्र भगवान कृष्ण द्वारा रचित है और यह देवी दुर्गा के भक्तों द्वारा व्यापक रूप से पढ़ा और गाया जाता है। स्तोत्र में, भगवान कृष्ण देवी दुर्गा की महिमा का वर्णन करते हैं और उनकी पूजा करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करते हैं। वे देवी दुर्गा को सभी शक्तियों और गुणों का भंडार कहते हैं और उनसे अपने भक्तों को सभी कष्टों से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना करते हैं। श्री दुर्गा नक्षत्र माळीका स्तोत्र एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो देवी दुर्गा के आशीर्वाद प्राप्त करने में मदद कर सकता है। यह स्तोत्र उन लोगों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है जो किसी कठिन परिस्थिति का सामना कर रहे हैं या जो अपने जीवन में शांति और समृद्धि की खोज कर रहे हैं। यदि आप देवी दुर्गा की भक्ति करते हैं और उनके आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं, तो आप इस स्तोत्र का पाठ करें। यह स्तोत्र आपको देवी दुर्गा के करीब लाएगा और आपको उनके आशीर्वाद प्राप्त करने में मदद करेगा।
श्री दुर्गा नक्षत्र मालिका स्तुति | Shree Durga Nakshatra Malika Stuti
विराटनगरं रम्यं गच्छमानो युधिष्ठिरः ।
अस्तुवन्मनसा देवीं दुर्गां त्रिभुवनेश्वरीम् ॥ 1 ॥
यशोदागर्भसंभूतां नारायणवरप्रियाम् ।
नंदगोपकुलेजातां मंगल्यां कुलवर्धनीम् ॥ 2 ॥
कंसविद्रावणकरीं असुराणां क्षयंकरीम् ।
शिलातटविनिक्षिप्तां आकाशं प्रतिगामिनीम् ॥ 3 ॥
वासुदेवस्य भगिनीं दिव्यमाल्य विभूषिताम् ।
दिव्यांबरधरां देवीं खड्गखेटकधारिणीम् ॥ 4 ॥
भारावतरणे पुण्ये ये स्मरंति सदाशिवाम् ।
तान्वै तारयते पापात् पंकेगामिव दुर्बलाम् ॥ 5 ॥
स्तोतुं प्रचक्रमे भूयो विविधैः स्तोत्रसंभवैः ।
आमंत्र्य दर्शनाकांक्षी राजा देवीं सहानुजः ॥ 6 ॥
नमोऽस्तु वरदे कृष्णे कुमारि ब्रह्मचारिणि ।
बालार्क सदृशाकारे पूर्णचंद्रनिभानने ॥ 7 ॥
चतुर्भुजे चतुर्वक्त्रे पीनश्रोणिपयोधरे ।
मयूरपिंछवलये केयूरांगदधारिणि ॥ 8 ॥
भासि देवि यदा पद्मा नारायणपरिग्रहः ।
स्वरूपं ब्रह्मचर्यं च विशदं तव खेचरि ॥ 9 ॥
कृष्णच्छविसमा कृष्णा संकर्षणसमानना ।
बिभ्रती विपुलौ बाहू शक्रध्वजसमुच्छ्रयौ ॥ 10 ॥
पात्री च पंकजी कंठी स्त्री विशुद्धा च या भुवि ।
पाशं धनुर्महाचक्रं विविधान्यायुधानि च ॥ 11 ॥
कुंडलाभ्यां सुपूर्णाभ्यां कर्णाभ्यां च विभूषिता ।
चंद्रविस्पार्धिना देवि मुखेन त्वं विराजसे ॥ 12 ॥
मुकुटेन विचित्रेण केशबंधेन शोभिना ।
भुजंगाऽभोगवासेन श्रोणिसूत्रेण राजता ॥ 13 ॥
भ्राजसे चावबद्धेन भोगेनेवेह मंदरः ।
ध्वजेन शिखिपिंछानां उच्छ्रितेन विराजसे ॥ 14 ॥
कौमारं व्रतमास्थाय त्रिदिवं पावितं त्वया ।
तेन त्वं स्तूयसे देवि त्रिदशैः पूज्यसेऽपि च ॥ 15 ॥
त्रैलोक्य रक्षणार्थाय महिषासुरनाशिनि ।
प्रसन्ना मे सुरश्रेष्ठे दयां कुरु शिवा भव ॥ 16 ॥
जया त्वं विजया चैव संग्रामे च जयप्रदा ।
ममाऽपि विजयं देहि वरदा त्वं च सांप्रतम् ॥ 17 ॥
विंध्ये चैव नगश्रेष्टे तव स्थानं हि शाश्वतम् ।
कालि कालि महाकालि सीधुमांस पशुप्रिये ॥ 18 ॥
कृतानुयात्रा भूतैस्त्वं वरदा कामचारिणि ।
भारावतारे ये च त्वां संस्मरिष्यंति मानवाः ॥ 19 ॥
प्रणमंति च ये त्वां हि प्रभाते तु नरा भुवि ।
न तेषां दुर्लभं किंचित् पुत्रतो धनतोऽपि वा ॥ 20 ॥
दुर्गात्तारयसे दुर्गे तत्वं दुर्गा स्मृता जनैः ।
कांतारेष्ववपन्नानां मग्नानां च महार्णवे ॥ 21 ॥
(दस्युभिर्वा निरुद्धानां त्वं गतिः परमा नृणाम)
जलप्रतरणे चैव कांतारेष्वटवीषु च ।
ये स्मरंति महादेवीं न च सीदंति ते नराः ॥ 22 ॥
त्वं कीर्तिः श्रीर्धृतिः सिद्धिः ह्रीर्विद्या संततिर्मतिः ।
संध्या रात्रिः प्रभा निद्रा ज्योत्स्ना कांतिः क्षमा दया ॥ 23 ॥
नृणां च बंधनं मोहं पुत्रनाशं धनक्षयम् ।
व्याधिं मृत्युं भयं चैव पूजिता नाशयिष्यसि ॥ 24 ॥
सोऽहं राज्यात्परिभ्रष्टः शरणं त्वां प्रपन्नवान् ।
प्रणतश्च यथा मूर्ध्ना तव देवि सुरेश्वरि ॥ 25 ॥
त्राहि मां पद्मपत्राक्षि सत्ये सत्या भवस्व नः ।
शरणं भव मे दुर्गे शरण्ये भक्तवत्सले ॥ 26 ॥
एवं स्तुता हि सा देवी दर्शयामास पांडवम् ।
उपगम्य तु राजानमिदं वचनमब्रवीत् ॥ 27 ॥
शृणु राजन् महाबाहो मदीयं वचनं प्रभो ।
भविष्यत्यचिरादेव संग्रामे विजयस्तव ॥ 28 ॥
मम प्रसादान्निर्जित्य हत्वा कौरव वाहिनीम् ।
राज्यं निष्कंटकं कृत्वा भोक्ष्यसे मेदिनीं पुनः ॥ 29 ॥
भ्रातृभिः सहितो राजन् प्रीतिं प्राप्स्यसि पुष्कलाम् ।
मत्प्रसादाच्च ते सौख्यं आरोग्यं च भविष्यति ॥ 30 ॥
ये च संकीर्तयिष्यंति लोके विगतकल्मषाः ।
तेषां तुष्टा प्रदास्यामि राज्यमायुर्वपुस्सुतम् ॥ 31 ॥
प्रवासे नगरे चापि संग्रामे शत्रुसंकटे ।
अटव्यां दुर्गकांतारे सागरे गहने गिरौ ॥ 32 ॥
ये स्मरिष्यंति मां राजन् यथाहं भवता स्मृता ।
न तेषां दुर्लभं किंचिदस्मिन् लोके भविष्यति ॥ 33 ॥
य इदं परमस्तोत्रं भक्त्या शृणुयाद्वा पठेत वा ।
तस्य सर्वाणि कार्याणि सिध्धिं यास्यंति पांडवाः ॥ 34 ॥
मत्प्रसादाच्च वस्सर्वान् विराटनगरे स्थितान् ।
न प्रज्ञास्यंति कुरवः नरा वा तन्निवासिनः ॥ 35 ॥
इत्युक्त्वा वरदा देवी युधिष्ठिरमरिंदमम् ।
रक्षां कृत्वा च पांडूनां तत्रैवांतरधीयत ॥ 38 ॥
सुने श्री दुर्गा नक्षत्र मालिका स्तुति | Listen Shree Durga Nakshatra Malika Stuti
श्री दुर्गा नक्षत्र मालिका स्तुति के लाभ| Benefits of Shree Durga Nakshatra Malika Stuti
- नक्षत्रों का वर्णन: स्तुति में प्रत्येक नक्षत्र के नाम का उल्लेख होता है। यह नक्षत्र दुर्गा माता के संबंध में समर्पित होता है और उसका वर्णन किया जाता है।
- देवी दुर्गा का विशेष रूप: प्रत्येक नक्षत्र के लिए दुर्गा माता का एक विशेष रूप उल्लेखित होता है। यह रूप उस नक्षत्र की शक्ति और महिमा को प्रकट करता है।
- आराधना के उपाय: स्तुति में हर नक्षत्र के लिए उनकी आराधना करने के उपाय दिए जाते हैं। ये उपाय मंत्र जाप, पूजा, व्रत, दान, ध्यान आदि के रूप में हो सकते हैं।
- कृपा और आशीर्वाद: स्तुति में प्रत्येक नक्षत्र की माता दुर्गा से कृपा और आशीर्वाद प्रार्थना की जाती है। भक्त इन उपायों और स्तुति के माध्यम से दुर्गा माता की कृपा को प्राप्त करने की कोशिश करते हैं।
- नक्षत्रों का वर्णन: स्तुति में प्रत्येक नक्षत्र के नामों का उल्लेख होता है जैसे अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशीर्षा, आदि।
- दुर्गा माता का विशेष रूप: प्रत्येक नक्षत्र के लिए एक विशेष रूप दुर्गा माता का वर्णन होता है। उदाहरण के लिए, कृत्तिका नक्षत्र के लिए वीरभद्री, रोहिणी नक्षत्र के लिए महिषासुरमर्दिनी, आदि।
- आराधना के उपाय: प्रत्येक नक्षत्र के लिए आराधना के उपायों का वर्णन होता है। इनमें माता दुर्गा के मंत्र जाप, पूजा, व्रत, ध्यान, आदि शामिल हो सकते हैं।
- भक्ति और श्रद्धा: यह स्तुति भक्ति और श्रद्धा का प्रदर्शन करने के लिए होती है। जब भक्त इन नक्षत्रों की आराधना करते हैं, तो वे माता दुर्गा की कृपा को प्राप्त करते हैं और अपने जीवन में सुख, समृद्धि और सुरक्षा को प्राप्त करते हैं।