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इंसान का नसीबा : मिखाइल शोलोखोव | Insaan Ka Naseeba : By Mikhail Sholokhov Hindi Book

इंसान का नसीबा : मिखाइल शोलोखोव | Insaan Ka Naseeba : By Mikhail Sholokhov Hindi Book
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इंसान का नसीबा पुस्तक पीडीएफ के कुछ अंश : सत्तांकि प्रख्यात रूसी उपन्यासकार शोलोखो की ख्याति उनके महाकाव्यात्मक उपन्यास धीरे हे दोन रे पर आधारित है लेकिन उन्होंने कुछ ऐसी अपेक्षाकृत छोटे कलेवर की कथाकृतियाँ भी रखी हैं जो रूसी गृह बुद्ध के अलावा दूसरी उथल-पुथल का चित्रण करती हैं ‘इन्सान का नसीबा ऐसा ही एक लघु उपन्यास है जो युद्ध की विभीषिका का और उस विभीषिका के दीय मनुष्य की जिजीविषा और सामान्य जनों की मानवीयता का अप्रतिम चित्रण करता है। इस उपन्यास का केन्द्रीय पात्र एक ड्राइवर है जो दूसरे महायुद्ध के दौरान अपनी पत्नी और बच्चों को गंवा बैठता है। न सिर्फ यह बल्कि यह जर्मनों के हाथ पड़ कर तरह-तरह की यातनाओं से भी गुजरता है। इसके बावजूद जीवन और उसकी गरिमा में उसकी आस्था कम नहीं होती। वह युद्ध में अपने माता-पिता गंवा बैठने वाले एक अनाथ बालक को एक तरह से गोद से लेता है और पालने लगता है। कुद्ध की विभीषिका के शिकार दो अभागे इस प्रकार साथ आ मिलते हैं और एक-दूसरे के जीवन के अभाव के पूरक बन जाते हैं।

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पुस्तक का विवरण / Book Details
Book Name इंसान का नसीबा | Insaan Ka Naseeba
Author
CategoryNovel Book in Hindi PDF
Language
Pages 90
Quality Good
Download Status Not for Download
“हर सुबह जब मैं अपनी आंखे खोलता हूं तो अपने आप से कहता हूं कि आज मुझमें स्वयं को खुश या उदास रखने का सामर्थ्य है न कि घटनाओं में। मैं इस बात को चुन सकता हूं कि यह क्या होगी। कल तो जा चुका है, कल अभी आया नहीं है। मेरे पास केवल एक दिन है, आज तथा मैं दिन भर प्रसन्न रहूंगा।” ‐ ग्रोचो मार्क्स
“Each morning when I open my eyes I say to myself: I, not events, have the power to make me happy or unhappy today. I can choose which it shall be. Yesterday is dead, tomorrow hasn’t arrived yet. I have just one day, today, and I’m going to be happy in it.” ‐ Groucho Marx

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