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करवा चौथ व्रत कथा (साहूकार की बेटी की कहानी) : हिंदी ऑडियोबुक | Karva Chauth Vrat Katha (Sahukar Ki Beti Ki Kahani) : Hindi Audiobook

करवा चौथ व्रत कथा (साहूकार की बेटी की कहानी) : हिंदी ऑडियोबुक | Karva Chauth Vrat Katha (Sahukar Ki Beti Ki Kahani) : Hindi Audiobook
पुस्तक का विवरण / Book Details
AudioBook Name करवा चौथ व्रत कथा (साहूकार की बेटी की कहानी) / Karva Chauth Vrat Katha (Sahukar Ki Beti Ki Kahani)
Author
Category, ,
Duration 8:59 Mins
Source Youtube

Karva Chauth Vrat Katha (Sahukar Ki Beti Ki Kahani) Hindi Audiobook का संक्षिप्त विवरण : एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। सेठानी के सहित उसकी बहुओं और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा था। रात्रि को साहकार के लड़के भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहन से भोजन के लिए कहा। इस पर बहन ने बताया कि उसका आज उसका व्रत है और वह खाना चंद्रमा को अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है। सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। जो ऐसा प्रतीत होता है जैसे चतुर्थी का चांद हो। बहन ने अपनी भाभी से भी कहा कि चंद्रमा निकल आया है व्रत खोल लें, लेकिन भाभियों ने उसकी बात नहीं मानी और व्रत नहीं खोला।  बहन को अपने भाईयों की चतुराई समझ में नहीं आई और उसे देख कर करवा उसे अर्घ्‍य देकर खाने का निवाला खा लिया।  जैसे ही वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और तीसरा टुकड़ा मुंह में डालती है तभी उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बेहद दुखी हो जाती है। उसकी भाभी सच्चाई बताती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं। इस पर करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं करेगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। शोकातुर होकर वह अपने पति के शव को लेकर एक वर्ष तक बैठी रही और उसके ऊपर उगने वाली घास को इकट्ठा करती रही। उसने पूरे साल की चतुर्थी को व्रत किया और अगले साल कार्तिक कृष्ण चतुर्थी फिर से आने पर उसने पूरे विधि-विधान से करवा चौथ व्रत किया, जिसके फलस्वरूप करवा माता और गणेश जी के आशीर्वाद से उसका पति पुनः जीवित हो गया।

“बच्चों को शिक्षित करना तो ज़रूरी है ही, उन्हें अपने आपको शिक्षित करने के लिए छोड़ देना भी उतना ही ज़रूरी है।” ‐ अर्नेस्ट डिमनेट
“Children have to be educated, but they have also to be left to educate themselves.” ‐ Ernest Dimnet

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