कॉरपोरेट गुरु धीरुभाई अंबानी : प्रतीक्षा एम. तिवारी द्वारा हिंदी ऑडियो बुक | Corporate Guru Dhirubhai Ambani : by Prateeksha M. Tiwari Hindi Audiobook
पुस्तक का विवरण / Book Details | |
AudioBook Name | कॉरपोरेट गुरु धीरुभाई अंबानी / Corporate Guru Dhirubhai Ambani |
Author | Prateeksha M. Tiwari |
Category | प्रेरक / Motivational, हिंदी ऑडियोबुक्स / Hindi Audiobooks, व्यवसाय / Business |
Language | हिंदी / Hindi |
Duration | 4:44 hrs |
Source | Youtube |
Corporate Guru Dhirubhai Ambani Hindi Audiobook का संक्षिप्त विवरण : आप उस व्यक्ति को कया कहेंगे जिसे हार से नफरत हो?… एक विजेता?…. यह काफी आसान, वाक् पटुता एवं सत्यता को कहीं दबा देने वाली बात है। धीरजलाल हीराचंद्र अंबानी (धीरूभाई) अगर कुछ चाहते थे तो वह था इतनी ऊँचाई को छुना जितनी किसी ने नछुआ है और इतना श्रेष्ठ बनना जितना अब तक कोई न था। धीरूभाई वास्तव में एक उद्यमी थे, परंतु उनका करियर इतना असाधारण था कि वे एक आम व्यापारी से भी ज्यादा और शायद एक उद्योगपति से भी बढ़कर कहे जा सकते हैं। वे लाखों भारतीयों के लिए एक जननायक थे, यहां तक कि उनके लिए भी जो नतो उद्यमी थे और न ही बनना चाहते थे। धीरूभाई के बगैर कभी हम यह नहीं सीख पाते कि बड़ा कैसे सोचा जाता है। उन्होंने यहाँ-वहाँ छोटे फैक्टरी के बारे में नहीं बल्कि ऐसे विशालकाय प्लांट के बारे में सोचा जो विश्व के किसी भी बड़ी उद्योग को टक्कर दे सके तथा आधुनिकता में किसी से कम न हो। धीरूभाई ने भारत को “बड़ा सोचना” सिखाया और वे हमेशा कहा करते थे “हमारा देश बहुत बड़ा है और अगर हम बड़ा नहीं सोचेंगे तो कभी अपने सामर्थ्य को नहीं पा सकते।” भारत में “बड़ा सोचना” इतना आसान नहीं है। हमें अपने दूसरे वक्त की रोटी की चिंता से ही इतना वक्त नहीं मिलता कि किसी और चीज के बारे में सोच सकें। पिछले हजारों सालों से हमने कुछ बड़ा नहीं सोचा है। हम सिर्फ अपने दूसरे वक्त की रोटी, अगले वेतन, अगली नौकरी, या अगले चुनाव के बारे में ही सोच सकते हैं। अपनी अगली पीढ़ी के बारे सोचना तो दूर की बात है, अगले साल या कल के बाद के बारे में सोचना भी संभव नहीं। हम इतने गरीब हैं कि हर चीज़ छोटी और क्षुद्र, अध-आवधिक तथा अस्थायी और अल्पआयु ही लगती है। धीरूभाई ने बड़ा सोचना कैसे सीखा?… वह गुजरात के छोटे से गांव में स्कूल शिक्षक के बेटे थे। उन्हें लगभग 5 साल की उम्र में मुंबई भेजा गया क्योंकि उनके गांव में उनके लायक कोई काम नहीं था। इसके बाद वे अदन चले गये वहाँ उन्होंने एक पेट्रोल पंप पर सहायक का काम किया। बाद में वह पूर्वी अफ्रीका गए, जहाँ उन्होंने एक तेल कंपनी में काम किया तथा भारत आने से पहले वहाँ उन्होंने सहायक के रूप में काम किया। जब वह मुंबई वापस आए, मूलजी जेठा मार्केट में 0/70 के एक छोटे से कमरे में उन्होंहोंने खुद का सूत डीलरशीप का काम शुरू किया। इस कमरे को उन्होंने 50 रूपए के आर्यायक (उस समय के लिए) किराये पर सिर्फ इसलिए लिया, क्योंकि वहां फोन की सुविधा उपलब्ध थी। एक सूत व्यापारी के रूप में वह एक डीलर से दूसरे डीलर के पास जाते थे और साथ ही उन्हें मुंबई के कई ऐसी बड़ी टेक्सटाइल कंपनियों के पास एजेंट की खरीदारी के लिए आते थे, जिनमें से ज्यादातर ने अपनी दुकानें बंद कर ली थी या दिवालिया हो गए थे। अंबानी उन्हें याद रखते थे और उन्हें अपना सेठ कहते थे। पर धीरूभाई टेक्सटाइल से के मिकल के क्षेत्र में गए फिर पेट्रोकेमिकल, फिर वहाँ से तेल अन्वेषण के क्षेत्र में? धीरूभाई हमेशा बड़ा सोचते थे, तब भी जब वह खुद छोटे थे। 1977 में उनकी रिलायंस इनडस्ट्रीज सार्वजनिक हुई। जब उसका टर्नओवर 100 करोड़ का था, हालांकि 25 साल पहले के हिसाब से भी यह रकम बहत बडी नहीं थी। वह अभी भी एक आम आदमी ही थे, जबकि मुंबई में लोग उन्हें काफी सर्तकता से देखते थे। पर वे न ही अपने 100 करोड़ के उद्यम के बारे में सोचते थे और न ही यह कि इसे 200 करोड़ कैसे बनाया जाये, बल्कि यह सोचते थे कि उनकी कंपनी शिखर पर कैसे पहुँचे? वह सिर्फ बड़ा सोचते ही नहीं थे, बल्कि उनके पास बड़ा बनने की मजबूत योजनाएँ भी थी। उनके पास अपनी कंपनी, रिलायांस के लिए परियोजनाएं भी थी। धीरूभाई के लिए टेक्सटाइल उनके सपने की एक शुरूआत थी। उन्होंने अपने मस्तिष्क में यह निर्धारित कर लिया था कि वह अगले पांच, दस, पन्द्रह सालों बाद कया करेंगे, यहां तक कि जो वह करना चाहते थे, उसके लिए उन्होंने पूरी रणनीति भी बना रखी थी। धीरूभाई कभी बड़बोले नहीं थे। पर दोपहर के अच्छे खाने और मिठाइयों के बाद वह अपने ऑफिस में आराम करते थे और तब तक इधर-उधर की बातें करते थे जब तक काम पर जाने का वक्त नहीं हो जाता है। वह तब भी टेक्सटाइल बिजनेस में थे और अभी तक उनके पास एक भी केमिकल प्लांट नहीं थे। धीरूभाई को सिंथेटिक उद्योग के बारे में वृहत जानकारी थी; और वे उन सभी केमिकल्स के बारे में भी जानते थे जो के बारे में वृहत जानकारी थी; और वे उन सभी केमिकल्स के बारे में भी जानते थे जो सिर्फ एक केमिकल इंजीनियर ही जान सकता था। उनके इस अदृभुत ज्ञान के बारे में वह कहते थे “मैं कई लोगों से मिलता हूँ और कई किताबें पढ़ता हूँ और मैं यह अच्छी तरह जानता हूँ कि एक बाद से दुसरे बिंदु पर कैसे जाना है और वह कैसे करना है, जो मैं चाहता हूँ” धीरूभाई पैसे के बारे में कम बात करते थे; इसे ही उनका सबसे सबल गुण माना जाता है। वे बाजार में वित्तीय जादूगर के रूप जाने जाते थे। उन्होंने अपने बिजनेस के लिए 7500 करोड़ रुपये जुटाए, जो धीरूभाई अंबानी जैसे व्यक्ति के लिए एक बड़ी रकम नहीं थी। धीरूभाई ने एक छोटे से बुनाई मिल से शुरूआत की और तेल रिफाइनरी पर जाकर रूके। जब उनकी मृत्यु हुई, वह ‘Petroleum Man’ के रूप जाने जाते थे, न कि ‘Textile Man’ के रूप में, क्योंकि उनके 60,0000 करोड़ के कुल टर्नओवर का केवल 2 प्रतिशत ही टेक्सटाइल से आता है। धीरूभाई ने बड़ा सोचना कहाँ से सीखा?…… उन्होंने अपने समकालीन उद्योगपतियों से कुछ भी नहीं सीखा क्योंकि उनमें सीखने के लिए कुछ था ही नहीं। वे बड़ा सोचने के लिए पैदा हुए थे। यह उनके लिए दूसरी प्रकृति होगी, नहीं तो ऐसा आदमी जो एक छोटे से ऑफिस में बैठकर सर्ट बेचने वाला था. एक विशालकाय पेट्रोकेमिकल प्लांट और उतने ही विशाल तेल रिफाइनरी का मालिक बन बैठा। वह एक ऐसे अशांत व्यक्ति थे, वह वही करते थे जो उन्हें करना होता था, क्योंकि उनके लिए यह एक जरूरत बन जाती थी। बाकी हर चीज बाद में आती थी क्योंकि ऐसा ही होता है जब आप यह तो जानते हैं कि आप क्या करने जा रहे हैं, बजाय यह कि कैसे करने जा रहे हैं। अगर 20 वीं सदी का पूर्वाद्ध टाटा से संबंधित है तो, अवश्य ही इसके अंतर्द्ध अंबानी से संबंधित है।
“सुविचरों से सुफल उपजते हैं और कुविचारों से कुफल।” ‐ जेम्स एलन
“Good thoughts bear good fruit, bad thoughts bear bad fruit.” ‐ James Allen
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