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Pani Bhitar Phul : By Ekant Srivastav Hindi Book | पानी भीतर फूल : एकांत श्रीवास्तव द्वारा हिंदी पुस्तक

Pani Bhitar Phul : By Akant Srivastav Hindi Book | पानी भीतर फूल : एकांत श्रीवास्तव द्वारा हिंदी पुस्तक
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पानी भीतर फूल पुस्तक पीडीएफ के कुछ अंश :
जेठ के आखिरी दिन । आषाढ़ सामने था। दोपहर आधी ढल गई थी। निताई जल्दी- जल्दी झिपारी बना रहे थे। आँगन में लगे गुलमोहर के लाल फूल हवा में झड़ रहे थे। श्यामली चाय बनाकर ले आई थी। तभी बखरी के धनबोहार में कहीं से उड़ता हुआ आकर बनकुकरा उतरा। धनबोहार के उजले पीले फूलों के बीच उसका काला कत्थई रंग भला लग रहा था।
‘देखने में मोर का बच्चा लगता है।’ निताई ने चाय पीते हुए कहा।
‘हाँ, मगर मोर इतने ऊपर नहीं उड़ सकता। श्यामली ने कहा।
‘हाँ, सो तो है’ -निताई ने समर्थन में सिर हिलाया और पुनः झिपारी बनाने में व्यस्त हो गए। बाँस की खपच्चियों को चारपाई के आकार में बाँध दिया जाता। बीच- बीच में अरहर के सूखे पौधे और बेशरम की डालियाँ लगा दी जातीं। आवरण को सघन करने के लिए पैरा चारों तरफ भर दिया जाता। पैरा (पुआल) को गाय-बैल न खा जाएँ -इस डर से ऊपर से गोबर पानी सींच दिया जाता। श्यामली बाल्टी में गोबर – पानी घोलकर ले आई और बनी हुई झिपारी में सींचने लगी। झिपारी को बाँधने के लिए पटवा (पटसन) की रस्सी का उपयोग किया जाता। इसके बाद झिपारी को छानी में इस तरह से बाँधकर लटकाया जाता ताकि बारिश का पानी मिट्टी की दीवालों पर न पड़े। कुल मिलाकर, झिपारी को बारिश की बौछारों से मिट्टी की दीवालों को बचाने का देशी रक्षा कवच कहा जा सकता है।
काम पूरा हो जाने पर निताई ने राहत की साँस ली। वे लगभग एक हफ्ते से इस काम में लगे हुए थे। स्कूल शुरू हो जाने पर फिर इस काम के लिए समय निकालना कुछ मुश्किल होता। फिर बारिश के आ जाने का डर भी मन में था।

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पुस्तक का विवरण / Book Details
Book Name पानी भीतर फूल | Pani Bhitar Phul
Author
CategoryLiterature Book in Hindi Novel Book in Hindi PDF
Language
Pages 188
Quality Good
Download Status Not for Download
“हम ईश्वर को कहां पा सकते हैं अगर हम उसे अपने आप में और अन्य जीवों में नहीं देखते?” ‐ स्वामी विवेकानंद
“Where can we go to find God if we cannot see Him in our own hearts and in every living being?” ‐ Swami Vivekananda

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