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शाम भी थी धुआँ-धुआँ : कश्मीरी लाल जाकिरा दवरा हिंदी पुस्तक | Sham Bhi Thi Dhuan Dhuan : By Kashmiri Lal Zakira Hindi Book

शाम भी थी धुआँ-धुआँ : कश्मीरी लाल जाकिरा दवरा हिंदी पुस्तक | Sham Bhi Thi Dhuan Dhuan : By Kashmiri Lal Zakira Hindi Book
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शाम भी थी धुआँ-धुआँ पुस्तक पीडीएफ के कुछ अंश : कश्मीरी लाल ज़ाकिर उर्दू कहानी-लेखन के उम्न्बलतम युग से सम्बन्ध रखते हैं।
उस स्वर्णिम युग को कृपन चन्दर, मंटो और बेदी की रचनाओं से जो दिशा और दृष्टि मिली, उर्दू साहित्य का इतिहास उसका साती है। इस विशिष्ट काल में किसी अन्य कहानीकार का कहानी के सुधी पाठकों को अपनी ओर आकृष्ट करना अत्यन्त कठिन था, परन्तु कश्मीरी साल जाकिर ने अपने रचनात्मक कौशल से इस कठिनाई को सरल और सहज बना लिया। उसने मध्यम एवं निम्न वर्गों से सम्बद्ध चरित्रों को पूरी सच्चाई ओर निष्ठा के साथ यथार्थ रूप में प्रस्तुत किया है और उनके मनोवैज्ञानिक भावों का विश्लेषण एवं अध्ययन बड़ी गहराई से किया है। कश्मीरी लाल ज़ाकिर की अभिव्यक्ति आकर्षक, भाषा स्पष्ट और सुबोध तथा उसकी वर्णन-शैली ऐसी प्रवाहमयी है, मानों पाठक के साथ उसका मैत्रीपूर्वक संवाद हो रहा हो और किसी कहानीकार की यह उपलब्धि कोई साधारण उपलब्धि नहीं है।

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पुस्तक का विवरण / Book Details
Book Name शाम भी थी धुआँ-धुआँ | Sham Bhi Thi Dhuan Dhuan
Author
CategoryNovel Book in Hindi PDF
Language
Pages 152
Quality Good
Download Status Not for Download
“सितारों की तरह होते हैं आदर्श। उन्हें आप हाथों से छू नहीं पाएंगे। लेकिन समुद्र के नाविकों की तरह आप उन्हें अपना मार्गदर्शक चुनते हैं, और उनका पीछा करते हुए आप अपनी मंजिल पा लेंगें।” ‐ कार्ल शुर्ट्ज़ (१८२९-१९०६), लेखक एवं राजनीतिज्ञ
“Ideas are like stars; you will not succeed in touching them with your hands. But, like the seafaring man on the desert of waters, you choose them as your guides, and following them you will reach your destiny.” ‐ Carl Shurtz, (1829-1906), Writer and Politician

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