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ऋग्वेद भाग – १ : हिंदी ऑडियोबुक | Rigved Part -1 : Hindi Audiobook

ऋग्वेद भाग - १ : हिंदी ऑडियोबुक | Rigved Part -1 : Hindi Audiobook
पुस्तक का विवरण / Book Details
AudioBook Name ऋग्वेद भाग - १ / Rigved Part -1
Author
Category,
Language
Duration 9:59:19 hrs
Source Youtube
Rigved Part -1 Hindi Audiobook का संक्षिप्त विवरण : ऋग्वेद आर्यों एवं भारतीयों की ही नहीं, विश्व की सब से प्राचीन पुस्तक है। सब से प्राचीन संस्कृति-वैदिक संस्कृति के प्राचीनतम लिखित प्रमाण होने के कारण ऋग्वेद की महत्ता सर्वमान्य है- फिर भी ऋग्वेद की ऋचाओं का ऋषियों ने ईश्वरीय ज्ञान के रूप में साक्षात्कार किया था या उन्होंने उन की रचना की थी, यह विषय विवादास्पद है। ऋग्वेद का प्रस्तुत अनुवाद सायण भाष्य पर आधारित है। सायण ने चार वेदों पर पूर्ण भाष्य लिखे हैं और वे उपलब्ध भी हैं। उन्हें देशविदेश में विश्वविद्यालय स्तर पर मान्यता प्राप्त है। सायण ने ऋचाओं के प्रत्येक शब्द का विस्तार से अर्थ दिया है। प्रत्येक शब्द की व्याकरण सम्मत व्युत्पत्ति दी है तथा उन्होंने अपने समय के अनेक ग्रंथों के उद्धरण दे कर अपने अर्थ की पुष्टि की है। सायण के अनुसार अधिकांश मंत्र मानवजीवन से ही संबंधित हैं। इस प्रकार एकमात्र सायण ही ऐसे भाष्यकर्ता हैं, जिन्होंने बिना किसी पूर्वाग्रह के वेद मंत्रें का अर्थ किया है और उन के भाष्य के आधार पर साधारण पाठक वैदिक कालीन संस्कृति का सही रूप समझपरख सकता है।

ऋग्वेद का विभाजन दस मंडलों में किया गया है. प्रत्येक मंडल में बहुत से सूक्त एवं प्रत्येक सूक्‍त में अनेक ऋचाएं हैं, वैसे प्रत्येक मंडल कुछ अनुवाकों में विभक्त है. अनुवाक सूक्तों में बांटे गए हैं. संपूर्ण ऋग्वेद को चौसठ अध्यायों में विभक्‍त करके उनके आठ अष्टक बनाए गए हैं. प्रत्येक अष्टक में आठ अध्याय हैं. सायण ने ये सब विभाजन दिए हैं. उनके भाष्य में अष्टकों एवं अध्यायों को ही प्रमुखता दी गई है. एक तो यह विभाजन कृत्रिम है, दूसरे इससे व्यर्थ का भ्रम होता है, इसलिए मैंने इनका उल्लेख नहीं किया है. संहिता अथवा भाष्य में प्रत्येक मंत्र के ऋषि, देवता, छंद और विनियोग का उल्लेख है. ऋषि का तात्पर्य उस मंत्र के निर्माता या द्रष्टा ऋषि से है. देवता का अर्थ है–विषय. यह देवता शब्द के वर्तमान प्रचलित अर्थ से सर्वथा भिन्न है. ऋग्वेद के देवता सपत्नी (सौत), दूयूत (जुआ), दरिद्रता, विनाश आदि भी हैं. छंद से तात्पर्य उससांचे या नाप से है जिस में वह मंत्र निर्मित है. विनियोग का तात्पर्य है–प्रयोग. जो मंत्र समयसमय पर जिस काम में आता रहा, वही उस का विनियोग रहा. वैदिक मंत्रों का अर्थ समझने में देवता (विषय) ही आवश्यक है. इसलिए मैंने केवल देवता का ही उल्लेख किया है |

कुछ लोगों का ऋग्वेद में व्यभिचारिणी स्त्री, गर्भपात, प्रेमी और प्रेयसी, कामी पुरुष, कामुकी नारी, कन्या के पिता या भाई द्वारा उत्तम वर पाने हेतु दहेज देना, अयोग्य वर का उत्तम वधू पाने हेतु मूल्य चुकाना, चोर, जुआरी, विश्वासघातक मित्र आदि का उल्लेख अनुचित लग सकता है. इन शब्दों के वे दूसरे अर्थ करेंगे एवं तत्कालीन समाज में इन बातों को कभी स्वीकार नहीं करेंगे. मैं वास्तविकता बताने के लिए उनसे क्षमा चाहूंगा, मेरा दृढ़ विश्वास है कि एक बुद्धिप्रधान एवं विचारशील विकसित समाज में ये बातें होनी स्वाभाविक हैं |

दिनभर जंगल में चरकर घरों को लौटती गाय, रस्सी से बंधे बछड़े का रंभाना, गाय का द्वूध दुहना, छाछ बिलोना, कच्चे मांस पर मक्खियों का बैठना, चिड़ियों का चहचहाना आदि पढ़कर ऐसा लगता है कि भारत के गांवों में आज भी वैदिक जीवन की झलक मिल जाती है. नागरिकता का विस्तार एवं विज्ञान की पहुंच उसे विकृत कर रही है. आर्य मुख्यतया कृषि जीवी एवं ग्रामों में रहने वाले लोग ही थे. बाद में उन्होंने नगर भी बसाए, पर ऋग्वेद में अधिकांश नगर शत्रु नगरों के रूप में वताए गए हैं |

“प्यार एक ऐसा खेल है जिसे दो व्यक्ति खेल सकते हैं और जिसमें दोनों ही जीतते हैं।” इवा गाबोर
“Love is a game that two can play and both win.” Eva Gabor

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