कुरुक्षेत्र : दिनकर द्वारा हिंदी ऑडियो बुक | Kurukshetra : by Dinkar Hindi Audiobook
पुस्तक का विवरण / Book Details | |
AudioBook Name | कुरुक्षेत्र / Kurukshetra |
Author | Ramdhari Singh Dinkar |
Category | हिंदी ऑडियोबुक्स / Hindi Audiobooks, धार्मिक / Religious |
Language | हिंदी / Hindi |
Duration | 2:39 hrs |
Source | Youtube |
Kurukshetra Hindi Audiobook का संक्षिप्त विवरण : कुरुक्षेत्र की रचना भगवान व्यास के अनुकरण पर नहीं हुईं है और न महाभारत को दुहराना ही मेरा उद्देश्य था। मुझे जो कुछ कहना था, वह युधिष्ठिर और भीष्म का प्रसंग उठाये बिना भी कहा जा सकता था, किंतु, तब यह रचना, शायद, प्रबन्ध के रूप में नहीं उतरकर मुक्तक बनकर रह गयी होती। तो भी, यह सच है कि इसे प्रबन्ध के रूप में लाने की मेरी कोई निश्चित योजना नहीं थी। बात यों हुई कि पहले मुझे अशोक के निवैंद ने आकर्षित किया और ‘कलिंग-विजय”* नामक कविता लिखते-लिखते मुझे ऐसा लगा, मानो, युद्ध की समस्या मनुष्य की सारी समस्याओं की जड़ हो। इसी क्रम में द्वापर की ओर देखते हुए मैंने युधिष्ठिर को देखा, जो ‘विजय’, इस छोटे-से शब्द को कुरुक्षेत्र में बिछी हुई लाशों से तोल रहे थे। किन्तु यहाँ भीष्म के धर्म-कथन में प्रश्न का दूसरा पक्ष भी विद्यमान था। आत्मा का संग्राम आत्मा से और देह का संग्राम देह से जीता जाता है। यह कथा युद्धान्त की है। युद्ध के आरम्भ में स्वयं भगवान ने अर्जुन से जो कुछ कहा था, उसका सारांश भी अन्याय के विरोध में तपस्या के प्रदर्शन का निवारण ही था। युद्ध निन्दित और क्रूर कर्म है; किन्तु, उसका दायित्व किस पर होना चाहिए? उस पर, जो अनीतियों का जाल बिछाकर प्रतिकार को आमंत्रण देता है? या उस पर, जो जाल को छिन्न-भिन्न कर देने के लिए आतुर है? पाण्डवों को निर्वासित करके एक प्रकार की शांति की रचना तो दुर्योधन ने भी की थी; तो क्या युधिष्ठिर महाराज को इस शांति का भंग नहीं करना चाहिए था?
ये ही कुछ मोटी बातें हैं, जिन पर सोचते-सोचते यह काव्य पूरा हो गया। भीष्म और युधिष्ठिर का आलम्बन लेकर मैंने इस पागल कर देने वाले प्रश्न को, प्राय:, उसी प्रकार उपस्थित किया है, जैसा में उसे समझ सका हूँ। इसलिए, मैं ज़रा भी दावा नहीं करता कि “कुरुक्षेत्र’ के भीष्म और युधिष्ठिर, ठीक-ठीक, महाभारत के ही युधिष्टिर और भीष्म हैं। यद्यपि मैंने सर्वत्र ही इस बात का ध्यान रखा है कि भीष्य अथवा युधिष्ठिर के मुख से कोई ऐसी बात न निकल जाय, जो द्वापर के लिए सर्वथा अस्वाभाविक हो। हाँ, इतनी स्वतन्त्रता ज़रुर ली गयी है कि जहाँ भीष्य किसी ऐसी बात का वर्णन कर रहे हों, जो हमारे युग के अनुकूल पड़ती हो, उसका वर्णन नये और विशद रूप से कर दिया जाय। कहीं-कहीं इस अनुमान पर भी काम लिया गया है कि उसी प्रश्न से मिलते-जुलते किसी अन्य प्रश्न पर भीष्म पितामह का उत्तर क्या हो सकता था। सच तो यह है कि “यन्न भारते तन्न भारते” की कहावत अब भी बिलकुल खोखली नहीं हुई है। जब से मैंने महाभारत में भीष्म द्वारा कथित राजतंत्रहीन समाज एवं ध्वंसीकरण की नीति (स्कार्च्ड अर्थ पालिसी) का वर्णन पढ़ा है, तब से मेरी यह आस्था और भी बलवती हो गयी है। जहाँ कोई भी ऐसी उड़ान आयी है, जिसका संबंध द्वापर से नहीं बैठता, उसका सारा दायित्व मैंने अपने ऊपर ले लिया है। ऐसे प्रसंग अपनी प्रक्षिप्तता के कारण, पाठकों की पहचान में आप ही आ जायेंगे। पूरा का पूरा छठा सर्ग ऐसा ही क्षेपक है, जो इस काव्य से टूटकर अलग भी जी सकता है। अन्त में, एक निवेदन और। ‘कुरुक्षेत्र’ के प्रबन्ध की एकता उसमें वर्णित विचारों को लेकर है। दर-असल, इस पुस्तक में मैं, प्राय., सोचता ही रहा हूं। भीष्म के सामने पहुँचकर कविता जैसे भूल-सी गयी हो। फिर भी, “कुरुक्षेत्र! न तो दर्शन है और न किसी ज्ञानी के प्रौढ़ मस्तिष्क का चमत्कार। यह तो अन्ततः, एक साधारण मनुष्य का शंकाकुल हृदय ही है, जो मस्तिष्क के स्तर पर चढ़कर बोल रहा है। तथास्तु।
“अपने उद्देश्य महान रखें, चाहें इसके लिए कांटों भरी डगर पर ही क्यों न चलना पड़े।” – सुसैन लोंगएकर
“Reach for the stars, even if you have to stand on a cactus.” – Susan Longacre
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