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पंख हीन : गोविन्द उपाध्याय द्वारा हिंदी पुस्तक | Pankh Heen : By Govind Upadhayay Hindi Book

पंख हीन : गोविन्द उपाध्याय द्वारा हिंदी पुस्तक | Pankh Heen : By Govind Upadhayay Hindi Book
पुस्तक का विवरण / Book Details
Book Name पंख हीन | Pankh Heen
Author
Category, , ,
Language
Pages 142
Quality Good
Download Status Not for Download

पंख हीन पुस्तक पीडीएफ के कुछ अंश : ट्रेन में बैठने के साथ ही एक बार फिर माँ का चेहरा उसकी आंखों में धरथराने लगा और आँखों के छोर स्वयं ही गीले हो गए। इस बार उसे माँ नहीं मिलेगी… मौ उसे अब कभी नहीं मिलेगी।
यह सच है कि वह यह कभी नहीं जान सका कि यों के हृदय में क्या है कभी माँ मोम-सी, जरा सी बात में पिघल जाती, तो कभी वह इतनी कठोर हो जाती… बिलकुल किसी निर्दयी तानाशाह की तरह…
नौ-दस वर्ष की अल्पायु में ही उसे मां से अलग बाबूजी के पास शहर में रहना पड़ा था। बाबूजी के चेहरे पर हंसी तो कभी आती ही नहीं थी। बहुत गुस्सैल जरा-जरा-सी बात पर चिंपाने वाले…
माँ को छोड़कर जब भी वह शहर आता, उसकी आँखें डबडबाई होती थीं। एक ऐसे पक्षी की तरह, जो डाल-डाल फुदकना चाहता हो, पर उसे पिंजड़े में डाल दिया गया हो… शायद ऐसा ही कुछ उसे तब माँ को छोड़ते हुए लगता था। वह चाहकर भी बाबूजी से कभी यह न कह सका-“मैं माँ के पास रहूँगा।”
वह मातृत्वविहीन जैसा हो गया था तीन-चार महीने में एक बार बाबूजी उसे पर लेकर आते आरम्भ के दिनों में वह माँ की निकटता के लिए व्याकुल रहता। छोटे भाई-बहनों का साथ भी कम उल्लासपूर्ण न होता, पर धीरे-धीरे यह मों से खिंचने लगा।

“खेलों के बारे में अकसर ऐसे कहा जाता है मानो यह गंभीर शिक्षा से राहत हो। लेकिन बच्चों के लिए खेल गंभीर शिक्षा ही है। खेल ही वास्तव में बचपन का काम है।” फ्रेड रोजर्स
“Play is often talked about as if it were a relief from serious learning. But for children play is serious learning. Play is really the work of childhood.” Fred Rogers

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