आनंदमठ : बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा हिंदी ऑडियो बुक | Anandamath : by Bankim Chandra Chattopadhyay Hindi Audiobook
पुस्तक का विवरण / Book Details | |
AudioBook Name | आनंदमठ/ Anandamath |
Author | Bankim Chandra |
Category | Audiobooks, उपन्यास / Novel |
Language | हिंदी / Hindi |
Duration | 4:32 hrs |
Source | Youtube |
Anandamath Hindi Audiobook का संक्षिप्त विवरण : सभी उम्र के सबसे लोकप्रिय भारतीय उपन्यासों में से एक, ‘आनंद मठ’ का भारतीय और अंग्रेजी भाषाओं में असंख्य बार अनुवाद किया गया था। लेखक के जीवनकाल के दौरान बंगाली और हिंदी में पांच संस्करण प्रकाशित हुए, पहला 1882 में। उपन्यास में बंगाल में 18वीं शताब्दी के अकाल की पृष्ठभूमि है, जो “छियात्तोरर मन्वन्तर” (76वें बंगाली वर्ष, 1276 का अकाल) के रूप में कुख्यात है। ईस्ट इंडिया कंपनी के शासकों की लूट के खिलाफ तपस्वियों और उनके शिष्यों के सशस्त्र विद्रोह की गाथा। विद्रोह को ऐतिहासिक रूप से ‘संतान विद्रोह’ के रूप में जाना जाता है, तपस्वी देवी जगदम्बे की संतान हैं। ‘आनंद मठ’ की गाथा रोमांचकारी है और देशभक्ति के गीत ‘वंदे मातरम’ (‘जय हो, ओ माई मदरलैंड’) में सबसे अच्छा प्रतीक है। यह गीत आज भी एक ऐसा मंत्र है जो लाखों हिंदुओं की कल्पना को झकझोर देता है। तपस्वियों ने लोगों की पीड़ा को लूट लिया – ब्रिटिश शासकों और लालची जमींदारों – ने लूटी गई संपत्ति को गरीबी से पीड़ित लोगों में बांट दिया लेकिन अपने लिए कुछ भी नहीं रखा। उनके लक्ष्य ज्यादातर कंपनी के शस्त्रागार और आपूर्ति थे। उनके पास एक उच्च संगठित व्यवस्था थी, जो पूरे बंगाल में फैली हुई थी। यह भारत की आजादी की पहली लड़ाई भी थी, न कि 1857 का सिपाही विद्रोह। दूर-दूर तक फैला हुआ जंगल। जंगल में ज्यादातर पेड़ शाल के थे, लेकिन इनके अलावा और भी कई तरह के पेड़ थे। शाखाओं और पत्तो से जुडे हुए पेड़ों की अनंत श्रेणी दूर तक चली गयी थी। विच्छेद-शूय, छिद्र-शूत्य, रोशनी के आते के जरा से मार्ग से भी विहोन ऐसे घतीमूत पत्तों का अनंत समुद्र कोस दर कोस, कोस दर कोस पवन की तरों पर तंग छोड़ता हुआ सर्वत्र व्याप्त था। नीचे अंधकार। दोपह में मी रोशनी का अमाव था। भयानक वातावरण। इस जंगल के अन्दर से कभी कोई आदमी नहीं गुजरता। पत्तों की निरंतर मरमर तथा जंगली पशुपक्षियों के स्वर के अलावा कोई और आवाज इस ज॑गल के अंदर नहीं सुनाई देती। एक तो यह विस्तृत अत्यंत निविड़ अंधकारमय जंगल, उस पररात का समय। रात का दूसरा पहर था। रात बेहद काली थी। जंगल के बाहर भी अंधकार था, कुछ नजर नहीं आ रहा था। जंगल के भीतर का अंधकार पाताल जैसे अंधकार की तरह था। पशु-पक्षी बिल्कुल निस्तब्ध थे। जंगल में लाखों-करड़ों पशु-पक्षी, कीट-पतंग रहते थे। कोई भी आवाज नहीं कर रहा था। बल्कि उस अंधकार को अनुभव किया जा सकता था, शब्दमयी पृथ्वी का वह निस्तब्ध भाव अनुभव नहीं किया जा सकता। उस असीम जंगल में, उस सूचीमेद्य अंधकारमय रात में, उस अनुमवहीन निस्तब्घता में ‘एकाएक आवाज हुई, “मेरी मनोकामना क्या सिद्ध नहीं होगी?” आवाज गुँजकर फिर उस जंगल की तिस्तब्घता मं दूब गई। कौन कहेगा कि उस ज॑गल में किसी आदमी की आवाज सुनाई दी थी? कुछ देरके बाद फिर आवाज हुई, फिर उस निस्तब्यता को चौरती आदमी की आवाज सुनाई दी, “मेरी मनोकामना क्या सिद्ध नहीं होगी?” ‘इस प्रकार तीन बार वह अंधकार समुद्र आलोडित हुआ, तब जवाब मिला,
“तु प्रण क्या कह
“मेरा जीवन-सर्वस्व। ”
“जीवन तो तुच्छ है, सभी त्याग सकते हैं।”
“और क्या है? औरक्या दूँ?”
जवाब मिला, “भक्ति।”
“उन लोगों से दूर रहें जो आप आपकी महत्त्वकांक्षाओं को तुच्छ बनाने का प्रयास करते हैं। छोटे लोग हमेशा ऐसा करते हैं, लेकिन महान लोग आपको इस बात की अनुभूति करवाते हैं कि आप भी वास्तव में महान बन सकते हैं।” ‐ मार्क ट्वेन
“Keep away from people who try to belittle your ambitions. Small people always do that, but the really great make you feel that you, too, can become great.” ‐ Mark Twain
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