चौरी चौरा विद्रोह और स्वाधीनता आंदोलन : सुभाष चंद्र कुशवाहा द्वारा हिंदी ऑडियोबुक | Chauri Chaura Vidroh Aur Svadhinata Andolan : by Subhash Chandra Kushwaha Hindi Audiobook
Chauri Chaura Vidroh Aur Svadhinata Andolan Hindi Audiobook का संक्षिप्त विवरण : नए दस्तावेजों, तथ्यों और स्थानीय निवासियों से बातचीत के आधार पर, चौरी चौरा इस घटना पर हिंदी में पहली व्यापक और प्रामाणिक पुस्तक है। 4 फरवरी 1922 को शाम 4 बजे के आसपास 2000 से अधिक गाँव के लोगों ने किसानों के नेतृत्व में चौरी-चौरा पुलिस चौकी का घेराव किया। लंबे शोषण और ब्रिटिश शासन के अपमान से तंग आकर उन्होंने पुलिस चौकी को आग के हवाले कर दिया जिसमें अंदर फंसे 24 पुलिसकर्मी जलकर मर गए।
हिंसा और अहिंसा की बहस से परे जाकर यह पुस्तक उस सामाजिक-राजनीतिक परिवेश के मूल कारणों की पड़ताल करती है जिसने दलित, गरीब लोगों को यह कदम उठाने के लिए मजबूर किया। यह पुस्तक आपको 1922 के चौरी-चौरा के गुमनाम गांव में ले जाएगी जो आने वाले वर्षों में देश के स्वतंत्रता आंदोलन को आकार देने वाला था। चौरी चौरा एक मजबूत अकादमिक कृति है जिसे हमारे समय के एक उस्ताद कथाकार ने कथा की कोमलता के साथ कहा है | चौरी चौरा का विद्रोह, भारतीय स्वतंत्रता समर की वह अभूतपूर्व घटना है, जिसने सत्याग्रह आंदोलन के दूसरे चरण में किसान विद्रोह के क्रांतिकारी पक्ष को उभारा है और स्वराज प्राप्ति के लिए चलाए गए मुक्ति संघर्ष के उस छद्य का पर्दाफाश किया है, जिसमें पेंच ही पेंच थे।सत्याग्रह का पहला चरण, बंबई के मज़दूर विद्रोह को कलंकित कर समेट लिया गया था तो दूसरा चरण, चौरी चौरा विद्रोह के माथे पर घब्बा लगा कर। इतिहास में इन विद्रोहों को कलंकित करने वाली शक्तियों के सिद्धांतों से एम.एन. रॉय, देशबंधु चितरंजन दास, सुभाष चंद्र बोस से लेकर भगत सिंह तक का नकार दर्ज है। ऐसी शक्तियों का नाभि-नाल, सामंती गठजोड़ के साथ-साथ, किसानों की रहनुमाई की चालाकी से भी जुड़ा हुआ है। इतिहास की ऐसी चालाकियां, अमूमन अभिजात्यवर्गीय ताकतों द्वारा, समाज के हाशिए के लोगों के अंदर की बेचैनी और विद्रोह को हतोत्साहित करने का औजार रही हैं । मेरे ज़ेहन में जब भी चौरी चौरा विद्रोह स्मरण आता, तो सोचता कि आज़ादी की लड़ाई में ब्रिटिश सत्ता को नेस्तनाबूद करने वाले इस इकलौते कृत्य को गौरवान्वित करने के बजाए,उपेक्षित करने का कारण, भारतीय सामंती समाज के उस वर्ग चरित्र का हिस्सा तो नहीं, जहां गरीब किसानों, मुसलमानों और कथित निम्न जातियों को हमेशा उपेक्षित और तिरस्कृत किया गया है। मैं यह भी सोचता कि ब्रिटिश दासता से मुक्ति के लिए जिस लड़ाई को कांग्रेस संचालित कर रही थी, वह कहां तक शोषकों के विरूद्ध थी और किस हद तक गरीब, अनपढ़, मेहनकश जनता के अनुकूल थी या उसमें आज़ादी की वास्तविक लड़ाई का अंश कितना था और कितनी चालाकी बरतने का निहितार्थ छिपा हुआ था?
असहयोग आंदोलन के अंतर्गत जनविद्रोह का ज्वार, खिलाफत और कांग्रेस वॉलंटियर्स के बजाए, नेशनल वॉलंटियर्स की परिकल्पना और अवधारणा के बाद आता है। बाद में इसी परिकल्पना से उपजे विद्रोहों की सघनता से आतंकित बुर्जुआ नेतृत्व, जब अपने कदम पीछे खींचता है तब न केवल मुस्लिम नेतृत्व आशंकित होता है बल्कि सामंतों के अंतर्मन में यह घारणा बैठ जाती है कि दमन की आंधी में जन-ज्वार का दावानल, ब्रिटिश सत्ता के साथ-साथ, उनको भी झुलसा सकता है, लिहाजा वे उसे नियंत्रित करे के बारे में सोचने लगते हैं। इसके लिए वे अहिंसा के अमोघ अस्त्र का इस्तेमाल करते हैं। वह अस्त्रर, घर्ममीरू जनता को “अतीत के गौरव’ या ‘स्वर्णिम युग’ की फंतासियों की ओर ले जाती थी। वह उन्हें दुख सहन करे, ज़ालिम से घृणा न कलने, अत्याचार पर हिंसक न होने जैसी संत वाणियों में उलझा देती थी…………
| पुस्तक का विवरण / Book Details | |
| AudioBook Name | चौरी चौरा विद्रोह और स्वाधीनता आंदोलन / Chauri Chaura Vidroh Aur Svadhinata Andolan |
| Author | Subhash Chandra Kushwaha |
| Category | Hindi Audiobooks History Book in Hindi |
| Language | हिंदी / Hindi |
| Duration | 2:03:33 hrs |
| Source | Youtube |
“ऐसे कानून व्यर्थ हैं जिनके अमल की व्यवस्था ही न हो।” ‐ इटली की कहावत
“Better no law than laws that are not enforced.” ‐ Italian proverb
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