शेखचिल्ली और कुएं की परियां : हिंदी ऑडियो बुक | Shekhchilli Aur Kuyen Ki Pariyan : Hindi Audiobook
पुस्तक का विवरण / Book Details | |
AudioBook Name | शेखचिल्ली और कुएं की परियां / Shekhchilli Aur Kuyen Ki Pariyan |
Author | Unknown |
Category | Audiobooks, shekh chilli |
Language | हिंदी / Hindi |
Duration | 10:53 mins |
Source | Youtube |
Shekhchilli Aur Kuyen Ki Pariyan Hindi Audiobook का संक्षिप्त विवरण : एक गांव में एक सुस्त और कामचोर आदमी रहता था। लोग उसे शेखचिल्ली के नाम से बुलाते थे। शेखचिल्ली के घर की हालत बहुत खराब थी। शेखचिल्ली की बेवकूफी और सुस्ती की सजा उसकी बीवी को भी भुगतनी पड़ती और भूखे रहना पड़ता। एक दिन शेखचिल्ली की बीवी को बड़ा गुस्सा आया। वह बहुत बिगड़ गुस्से में बोली,”अब मैं तुम्हारी कोई भी बात नहीं सुनना चाहती। चाहे जो कुछ करो, लेकिन मुझे तो पैसा चाहिए। जब तक तुम कोई कमाई करके नहीं लाओगे, मैं घर में नहीं, घुसने दूंगी।”यह कहकर बीवी ने शेखचिल्ली को नौकरी की खोज में जाने को मजबूर कर दिया। साथ में, रास्ते के लिए चार रूखी – सूखी रोटियां भी बांध दीं। इस प्रकार शेखचिल्ली को न चाहते हुए भी काम की खोज में निकलना पड़ा।
शेखचिल्ली सबसे पहले अपने गांव के साहूकार के यहाँ गए। सोचा कि शायद साहूकार कोई छोटी – मोटी नौकरी दे दे। लेकिन निराश होना पड़ा। साहूकार के कारिन्दों ने ड्योढ़ी पर से ही डांट – डपटकर भगा दिया। अब शेखचिल्ली के सामने कोई रास्ता नहीं था। फिर भी एक गांव से दूसरे गांव तक दिन भर भटकते रहे। घर लौट नहीं सकते थे, क्योंकि बीवी ने सख्त हिदायत दे रखी थी कि जब तक नौकरी न मिल जाए, घर में पैर न रखना। दिन भर चलते – चलते जब शेखचिल्ली थककर चूर हो गए तो सोचा कि कुछ देर सुस्ता लिया जाए। भूख भी जोरों की लगी थी, इसलिए खाना खाने की बात भी उनके मन में थी। तभी कुछ दूर पर एक कुआं दिखाई दिया। शेखचिल्ली को हिम्मत बंधी और उसी की ओर बढ़ चले। कुएं के चबूतरे पर बैठकर शेखचिल्ली ने बीवी की दी हुई रोटियों की पोटली खोली। उसमें चार रूखी – सूखी रोटियां थीं। भूख तो इतनी जोर की लगी थी कि उन चारों से भी पूरी तरह न बुझ पाती। लेकिन समस्या यह भी थी कि अगर चारों रोटियों आज ही खा डालीं तो कल – परसों या उससे अगले दिन क्या करूंगा, क्योंकि नौकरी खोजे बिना घर घुसना नामुमकिन था। इसी सोच-विचार में शेखचिल्ली बार – बार रोटियां गिनते और बारबार रख देते। समझ में नहीं आता कि क्या किया जाए। जब शेखचिल्ली से अपने आप कोई फैसला न हो पाया तो कुएं के देव की मदद लेनी चाही। वह हाथ जोड़कर खड़े हो गए और बोले,”हे बाबा, अब तुम्हीं हमें आगे रास्ता दिखाओ। दिन भर कुछ भी नहीं खाया है। भूख तो इतनी लगी है कि चारों को खा जाने के बाद भी शायद ही मिट पाए। लेकिन अगर चारों को खा लेता हूँ तो आगे क्या करूंगा? मुझे अभी कई दिनों यहीं आसपास भटकना है। इसलिए हे कुआं बाबा, अब तुम्हीं बताओ कि मैं क्या करूं! एक खाऊं, दो खाऊं, तीन खाऊं चारों खा जाऊं?”लेकिन कुएं की ओर से कोई जवाब नहीं मिला। वह बोल तो सकता नहीं था, इसलिए कैसे जवाब देता!
उस कुएं के अन्दर चार परियां रहती थीं। उन्होंने जब शेखचिल्ली की बात सुनी तो सोचा कि कोई दानव आया है जो उन्हीं चारों को खाने की बात सोच रहा है। इसलिए तय किया कि चारों को कुएं से बाहर निकालकर उस दानव की विनती करनी चाहिए, ताकि वह उन्हें न खाए। यह सोचकर चारों परियां कुएं से बाहर निकल आई। हाथ जोड़कर वे शेखचिल्ली से बोलीं,”हे दानवराज, आप तो बड़े बलशाली हैं! आप व्यर्थ ही हम चारों को खाने की बात सोच रहे हैं। अगर आप हमें छोड़ दें तो हम कुछ ऐसी चीजें आपको दे सकती हैं जो आपके बड़े काम आएंगी।”परियों को देखकर व उनकी बातें सुनकर शेखचिल्ली हक्के – बक्के रह गए। समझ में न आया कि क्या जवाब दे। लेकिन परियों ने इस चुप्पी का यह मतलब निकाला कि उनकी बात मान ली गई। इसलिए उन्होंने एक कठपुतला व एक कटोरा शेखचिल्ली को देते हुए कहा,”हे दानवराज, आप ने हमारी बात मान ली, इसलिए हम सब आपका बहुत – बहुत उपकार मानती हैं। साथ ही अपनी यह दो तुच्छ भेंटें आपको दे रही हैं। यह कठपुतला हर समय आपकी नौकरी बजाएगा। आप जो कुछ कहेंगे, करेगा। और यह कटोरा वह हर एक खाने की चीज आपके सामने पेश करेगा, जो आप इससे मांगेंगे।”इसके बाद परियां फिर कुएं के अन्दर चली गई।
इस सबसे शेखचिल्ली की खुशी की सीमा न रही। उसने सोचा कि अब घर लौट चलना चाहिए। क्योंकि बीवी जब इन दोनों चीजों के करतब देखेगी तो फूली न समाएगी। लेकिन सूरज डूब चुका था और रात घिर आई थी, इसलिए शेखचिल्ली पास के एक गांव में चले गए और एक आदमी से रात भर के लिए अपने यहाँ ठहरा लेने को कहा। यह भी वादा किया कि इसके बदले में वह घर के सारे लोगों को अच्छे – अच्छे पकवान व मिठाइयां खिलाएंगे। वह आदमी तैयार हो गया और शेखचिल्ली को अपनी बैठक में ठहरा लिया। शेखचिल्ली ने भी अपने कटोरे को निकाला और उसने अपने करतब दिखाने को कहा। बात की बात में खाने की अच्छी – अच्छी चीजों के ढेर लग गए। जब सारे लोग खा – पी चुके तो उस आदमी की घरवाली जूठे बरतनों को लेकर नाली की ओर चली। यह देखकर शेखचिल्ली ने उसे रोक दिया और कहा कि मेरा कठपुतला बर्तन साफ कर देगा। शेखचिल्ली के कहने भर की देर थी कि कठपुतले ने सारे के सारे बर्तन पल भर में निपटा डाले। शेखचिल्ली के कठपुतले और कटोरे के यह अजीबोगरीब करतब देखकर गांव के उस आदमी और उसकी बीवी के मन में लालच आ गया शेखचिल्ली जब सो गए तो वह दोनों चुपके से उठे और शेखचिल्ली के कटोरे व कठपुतले को चुराकर उनकी जगह एक नकली कठपुतला और नकली ही कटोरा रख दिया। शेखचिल्ली को यह बात पता न चली। सबेरे उठकर उन्होंने हाथ – मुंह धोया और दोनों नकली चीजें लेकर घर की ओर चल दिए।
“जब मैं चौदह साल का लड़का था, तब मेरे पिता इतने अज्ञानी थे कि मुझे उनका आसपास होना बिल्कुल नहीं पसंद था। लेकिन जब मैं इक्कीस का हुआ, तो मुझे बेहद आश्चर्य हुआ कि सात वर्षों में उन्होंने कितना कुछ सीख डाला था।” ‐ मार्क ट्वैन
“When I was a boy of fourteen, my father was so ignorant I could hardly stand to have the old man around. But when I got to be twenty-one, I was astonished at how much the old man had learned in seven years.” ‐ Mark Twain
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