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द वन मिनट मैनेजर : केन ब्लैंचर्ड द्वारा हिंदी ऑडियोबुक | The One Minute Manager : by Ken Blanchard Hindi Audiobook

द वन मिनट मैनेजर : केन ब्लैंचर्ड द्वारा हिंदी ऑडियोबुक | The One Minute Manager : by Ken Blanchard Hindi Audiobook
पुस्तक का विवरण / Book Details
AudioBook Name द वन मिनट मैनेजर / The One Minute Manager
Author
Category,
Language
Duration 1:47 hrs
Source Youtube

The One Minute Manager Hindi Audiobook का संक्षिप्त विवरण : मूल वन मिनट मैनेजर के प्रकाशन के बाद से संसार बदल चुका है। आज हमेशा बदलती प्रौद्योगिकी और वैश्वीकरण से तालमेल बैठाने के लिए कंपनियों को कम संसाधनों के साथ ज़्यादा तेज़ी से प्रतिक्रिया करनी होती है। इस बदलते संसार में नेतृत्व करने, प्रबंधन करने और सफलता पाने में आपकी मदद के लिए हमें द न्यू वन मिनट मैनेजर पेश करते हुए ख़ुशी हो रही है। इस पुस्तक में भी इस बेहद लोकप्रिय कहानी के अंतर्निहित सिद्धांत वही हैं – जिनहोंने संसार भर के करोड़ों लोगों की मदद की है – इसलिए इस कहानी का काफ़ी हिस्सा एक जैसा है। लेकिन जिस तरह संसार बदला है, उसी तरह वन मिनट मैनेजर भी बदल गए हैं । अब उनके पास नेतृत्व करने और लोगों को प्रोत्साहित करने की एक नई और ज़्यादा सहयोगपूर्ण नीति है। पहली बार जब उन्होंने अपने तीन रहस्य सिखाए थे, तब अर्श-से-फ़र्श तक होने वाला नेतृत्व प्रचलित और लोकप्रिय था। आजकल प्रभावी नेतृत्व का मतलब सहयोगपूर्ण संबंध हो गया है। आप द न्यू वन मिनट मैनेजर में इसकी झलक देखेंगे। आज लोग अपनी नौकरी और ज़िंदगी में ज़्यादा संतुष्टि की तलाश कर रहे हैं। वे जुड़ाव महसूस करना चाहते हैं और सार्थक योगदान देना चाहते हैं। वे अब व्यक्तिगत ज़रूरतें पूरी करने के लिए नौकरी में सिर्फ़ अपना समय नहीं बेचना चाहते हैं; वे इससे ज़्यादा चाहते हैं। न्यू वन मिनट मैनेजर इस बात को समझते हैं और कर्मचारियों के साथ इसी अनुसार व्यवहार करते हैं – वे अच्छी तरह जानते हैं कि कर्मचारी ही किसी संगठन की सफलता में सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। उन्हें इस बात का अहसास है कि प्रतिभावान कर्मचारियों को कंपनी में आकर्षित करना और बनाए रखना एक शीर्ष प्राथमिकता है। कुंजी इस नई नीति के इस्तेमाल में है। जैसी कि प्राचीन दार्शनिक कनफ़्यूशियस की सलाह है, “ज्ञान का सार यह है कि इसे पाने के बाद इसका इस्तेमाल करें।” हमें यक़ीन है कि आप द न्यू वनमिनट मैनेजर में दिए गए तीनों रहस्यों का इस्तेमाल करेंगे और अपने बदलते हुए संसार में सफल हो जाएँगे – न सिर्फ़ ऑफ़िस में सहकर्मियों और सहयोगियों के साथ, बल्कि अपने परिवार वालों और मित्रेंके साथ भी। अगर आप ऐसा करते हैं, तो हमें विश्वास है कि आप और आपके साथ काम करने तथा रहने वाले लोग ज़्यादा स्वस्थ, ज़्यादा ख़ुश और ज़्यादा उत्पादक जीवन का आनंद
लेंगे।

द वन मिनट मैनेजर खोज

एक बार एक प्रतिभाशाली युवक एक ख़ास क़िस्म के मैनेजर की तलाश कर रहा था, जो आज के बदलते हुए संसार में नेतृत्व और प्रबंधन कर सके। उसे एक ऐसे मैनेजर की तलाश थी, जो लोगों को अपने कामकाज और जीवन में संतुलन लाने के लिए प्रोत्साहित करता हो, ताकि दोनों ही ज़्यादा सार्थक और आनंददायक बन जाएँ। वह ऐसे मैनेजर के अधीन काम करना चाहता था और बाद में ऐसा ही मैनेजर बनना चाहता था। अपनी तलाश में वह कई वर्षों तक संसार के दूर-दराज़ के कोनों तक गया। वह छोटे कस्बों में गया और वह शक्तिशाली देशों की राजधानियों में गया। उसने कई मैनेजरों से बात की, जो तेज़ी से बदलते संसार से जूझने की कोशिश कर रहे थे: एक्ज़ीक्यूटिव्ज़ और उद्यमी, सरकारी अधिकारी और सैनिक, विश्वविद्यालय के प्रेसिडेंट और फ़ाउंडेशन के संचालक, दुकानों और स्टोर्स, रेस्तराँओं, बैंकों और होटलों के मैनेजर; स्त्री और पुरुष – युवा और वृद्ध। वह हर तरह के ऑफ़िस में गया था – बड़े और छोटे, वैभवपूर्ण और सादगीपूर्ण, खिड़कियों वाले और बिना खिड़कियों वाले। अब उसे यह विहंगम दृश्य दिखना शुरू हुआ कि लोग कर्मचारियों का प्रबंधन कैसे करते हैं। लेकिन उसे जो दिखा, उससे वह विशेष ख़ुश नहीं हुआ। उसने कई “सख़्त” मैनेजर देखे, जिनकी कंपनियाँ तो जीत रही थीं, लेकिन वहाँ काम करने वाले कर्मचारी हार रहे थे। कुछ लोग सोचते थे कि वे अच्छे मैनेजर हैं। ज़्यादातर लोग इसका विपरीत सोचते थे। जब वह युवक इन “सख़्त” मैनेजरों में से प्रत्येक के ऑफ़िस में बैठा, तो उसने पूछा, “आपख़ुद को किस तरह का मैनेजर कहेंगे?” उनके जवाबों में बस थोड़ा सा ही अंतर होता था। “मैं मुनाफ़ापसंद मैनेजर हूँ – मैं किसी भी स्थिति पर हावी हो जाता हूँ.” उसे बताया गया। “सख़्त।” “यथार्थवादी।” “मुनाफ़े की मानसिकता वाला।” उन्होंने कहा कि उन्होंने हमेशा इसी तरह से प्रबंधन किया था और उन्हें अपनी शैली बदलने का कोई कारण नज़र नहीं आता था। उसने उनकी आवाज़ों में गर्व की खनक सुनी और परिणामों में उनकी रुचि देखी। युवक कई “भले” मैनेजरों से भी मिला, जिनके कर्मचारी जीत रहे थे, जबकि उनकी कंपनियाँ हारती नज़र आ रही थीं। उनके कई कर्मचारियों का विचार था कि वे अच्छे मैनेजर हैं। उन मैनेजरों के ऊपर बैठे वरिष्ठ अधिकारियों को इस बारे में शंका थी। जब युवक ने बैठकर इन “भले” लोगों से वही सवाल पूछा, तो उसे इस तरह के जवाब मिले: “मैं सबको साथ लेकर चलने वाला मैनेजर हूँ।” “समर्थनकारी।” “दूसरों का ध्यान रखने वाला।” “मानवतावादी।” उन्होंने यह भी कहा कि वे हमेशा इसी तरह से प्रबंधन करते थे और उन्हें अपनी शैली बदलने का कोई कारण नज़र नहीं आता था। उसने उनकी आवाज़ों में गर्व की खनक सुनी और लोगों में उनकी रुचि देखी। लेकिन वह विचलित था। ऐसा लगता था, मानो संसार के ज़्यादातर मैनेजर अब भी उसी तरह से प्रबंधन कर रहे थे, जैसा वे हमेशा से करते आए थे और मूलतः उनकी रुचि या तो परिणामों में थी या फिर कर्मचारियों में। जो मैनेजर परिणामों में रुचि लेते थे, उन पर अक्सर “तानाशाह” का लेबल लगा दिया जाता था, जबकि कर्मचारियों में रुचि रखने वाले मैनेजरों पर अक्सर “प्रजातांत्रिक” का लेबल लगाया जाता था। युवक ने सोचा कि ये दोनों ही – “सख़्त” तानाशाह और “भले” प्रजातांत्रिक – सिर्फ़ आंशिक रूप से प्रभावी थे। उसने सोचा, यह तो आधे मैनेजर होने जैसा है।
वह थका और हताश घर लौटा। उसने अपनी तलाश काफ़ी समय पहले ही छोड़ दी होती, लेकिन उसे एक बहुत बड़ा लाभ हुआ। वह सटीकता से जानता था कि वह किसकी तलाश कर रहा था। उसने सोचा; इस बदलते युग में सबसे प्रभावी गैनेजरों को खुद का और अपने साथ काम करने वाले लोगों का इस तरह प्रबंधन करना चाहिए. ताकि उनके रहने से कर्मचारियों और कंपनी दोनों को ही लाभ हो। युवक ने प्रभावी मैनेजर की तलाश हर जगह की थी, लेकिन उसे ऐसे मैनेजर इक्के-दुक्के हीठी मिले। जो मिले, वे उसे अपने रहस्य नहीं बताना चाहते थे। वह सोचने लगा कि वह जिस क़िस्म के मैनेजर की तलाश कर रहा है, वह उसे शायद कभी नहीं मिलेगा। लेकिन तभी उसे एक ख़ास मैनेजर के अदभुत क़िस्से सुनाई दिए, जो पास वाले शहर में? ही रहते थे। उसने सुना कि कर्मचारी इस मैनेजर के साथ काम करना पसंद करते थे और वे मिलकर बेहतरीन परिणाम भी देते थे। उसने यह भी सुना कि जब लोग उस मैनेजर के सिद्धांतों को अपनी निजी ज़िंदगी में उतारते थे, तब भी उन्हें बेहतरीन परिणाम मिलते थे। जिज्ञासावश उसने इस ख़ास मैनेजर की सहायक को फ़ोन किया, ताकि अपॉइंटमेंट के बारे में मालूम कर सके। उसे हैरानी हुई, जब सहायक ने तुरंत मैनेजर से उसकी बात करा दी। युवक ने पूछा कि वह उनसे कब मिल सकता है, जिस पर मैनेजर ने कहा, “सप्ताह में कोई भी दिन अच्छा है, बस बुधवार सुबह को छोड़ दें। समय आप ख़ुद चुन लें।” युवक चकरा गया। भला ऐसा कौन सा मैनेजर होगा, जिसके पास इतना सारा ख़ाली समय मौजूद हो सकता है? लेकिन वह मंत्रमुग्ध भी था, इसलिए वह उनसे मिलने चल दिया।
“हमारे संगठन में पहले अर्श-से-फ़र्श की प्रबंधन शैली थी, जो अपने युग में कारगर थी। लेकिन आज यह शैली बहुत ज़्यादा धीमी हो गई है। यह कर्मचारियों को प्रेरित नहीं करती है और उनका दम घोंट देती है। ग्राहक ज़्यादा तेज़ सेवा और बेहतर सामान की माँग करते हैं, इसलिए हमें इस बात की ज़रूरत है कि हर कर्मचारी अपनी योग्यता के अनुरूप भरसक योगदान दे। हमारा मानना है कि दिमाग् सिर्फ़ एक्ज़ीक्यूटिव ऑफ़िस के लोगों के पास ही नहीं होता है – यह पूरे संगठन के सभी कर्मचारियों के पास होता है।”

“स्वास्थ्य और बुद्धिमत्ता जीवन के दो आशीर्वाद हैं।” मेनान्डेर
“Health and intellect are the two blessings of life.” Menander

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