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शक्ति के 48 नियम : रॉबर्ट ग्रीन द्वारा हिंदी ऑडियो बुक | The 48 Laws Of Power : by Robert Greene Hindi Audiobook

शक्ति के 48 नियम : रॉबर्ट ग्रीन द्वारा हिंदी ऑडियो बुक | The 48 Laws Of Power : by Robert Greene Hindi Audiobook
पुस्तक का विवरण / Book Details
AudioBook Name शक्ति के 48 नियम / The 48 Laws Of Power
Author
Category,
Language
Duration 24:56 mins
Source Youtube

The 48 Laws Of Power Hindi Audiobook का संक्षिप्त विवरण : ‘शक्तिहीन होना हममें से किसी को भी पसंद नहीं होता है। असहाय या अशक्त होने पर हम दुखी हो जाते हैं। कोई भी अपनी शक्ति घटाना नहीं चाहता है; सभी अपनी शक्ति बढ़ाना चाहते हैं। बहरहाल, लोगों को यह नहीं लगना चाहिए कि हम शक्ति के भूखे हैं। ‘शक्ति पाने के हमारे दाँव-पेंच किसी को नज़र नहीं आने चाहिए। हमें हमेशा न्यायपूर्ण और नेक दिखना चाहिए ) इसीलिए हमें शक्ति पाने के सूक्ष्म दाँव-पेंचों की ज़रूरत होती है। सफलता का सूत्र यह है कि चालाक होने के बावजूद हम नेक और प्रजातांत्रिक दिखें । सतत छल-कपट का यह खेल शक्ति के उसी खेल की तरह है, जो पुराने जमाने के सामंती दरबारों में खेला जाता था। पूरे इतिहास में शक्तिशाली व्यक्ति-महाराजा, महारानी या सम्राट-के चारों तरफ़ हमेशा एक दरबार लगा रहता था। दरबारी अपने स्वामी के निकट आने की कोशिश तो करते थे, लेकिन वे जानते थे कि अगर वे खुलकर चापलूसी करेंगे या शक्ति पाने की कोशिश करेंगे, तो बाकी दरबारियों का ध्यान उनकी तरफ़ चला जाएगा और वे उनके इरादों को नाकामयाब कर देंगे। यही वजह थी कि वे सूक्ष्म तरीकों से अपने स्वामी का दिल जीतने की कोशिश करते थे। जो दरबारी इस सूक्ष्मकला में समर्थ और कुशल थे, उन्हें भी अपने साथी दरबारियों से सतर्क रहना पड़ता था, क्योंकि वे उन्हें दरकिनार करने की योजनाएं बनाते रहते थे।

दरबार सभ्यता और सुसंस्कृति की पराकाष्ठा माना जाता था, इसलिए वहाँ शक्ति की हिंसक या खुली चालों को पसंद नहीं किया जाता था। जो दरबारी शक्ति का खुला प्रयोग करते दिखते थे, दूसरे दरबारी गोपनीय रूप से उनके ख़िलाफ़ काम करने लगते थे। यह दरबारी की दुविधा थी। एक तरफ़ तो उसे शालीनता की मूर्ति दिखना था और दूसरी तरफ़ उसे अपने विरोधियों को दबाकर आगे निकलना था। सफल दरबारी ने समय के साथ अपनी चालों को छिपाना सीख लिया। अपने विरोधी की पीठ में छुरा भोंकते समय भी उसके हाथ पर मखमल का दस्ताना और उसके चेहरे पर मधुर मुस्कान होती थी। खुले विश्वासघात या बल-प्रयोग के बजाय आदर्श दरबारी प्रलोभन, सम्मोहन, धोखे और सूक्ष्म रणनीति से अपना उल्लू सीधा करता था। वह हमेशा कई कदम आगे तक की योजना बनाता था। दरबारी जीवन एक अंतहीन खेल था, जिसमें सतत सावधानी और रणनीतिक चिंतन की ज़रूरत होती थी। यह सभ्य युद्ध था। आज हम भी दरबारियों जैसे ही विरोधाभास का सामना कर रहे हैं। हर चीज़ सभ्य, नेक, प्रजातांत्रिक और न्यायपूर्ण दिखनी चाहिए। लेकिन अगर हम सचमुच इन गुणों के हिसाब से चलेंगे, तो हमारे आस-पास के ज़्यादा समझदार लोग हमें कुचल देंगे। जैसा पुन जागरण काल के कूटनीतिज्ञ और दरबारी निकोलो मैकियावली ने लिखा है, जो व्यक्ति हमेशा अच्छा बनने की कोशिश करता है, बहुसंख्यक बुरे लोगों की दुनिया में उसका विनाश तय है।

दरबार को सुसंस्कृति की पराकाष्ठा माना जाता था, लेकिन इसकी चमकती सतह के नीचे स्थाह भावनाओं ईर्ष्या, लालच, नफ़रत-का अलाव धधकता रहता था। आज हमारी दुनिया भी खुद को न्याय और सभ्यता की पराकाष्ठा मानती है, लेकिन वही निकृष्ट भावनाएं हमारे अंदर अब भी घुमड़ती हैं। खेल वही है। बाहर से तो आपको अच्छा दिखना होगा, लेकिन अंदर से आपको समझदारी सीखनी होगी और वही करना होगा, जिसकी सलाह नेपोलियन ने दी थी : अपने लोहे के हाथ को मख़मल के दस्ताने के भीतर रखें। अगर पुराने जमाने के दरबारी की तरह आप भी अप्रत्यक्ष और सूक्ष्म कलाओं में महारत हासिल कर सकें, अगर आप प्रलोभन, सम्मोहन, धोखे और चतुर योजनाओं से अपने विरोधियों को दबाना सीख सकें, तो आप शक्ति की ऊंचाइयों पर पहुंच जाएंगे। आप दूसरे लोगों को अपनी मर्जी से चलाएंगे, लेकिन उन्हें इसका एहसास तक नहीं होगा और अगर उन्हें यह एहसास ही नहीं होगा, तो वे आपसे द्वेष नहीं रखेंगे या आपका विरोध नहीं करेंगे।

“शक्ति के 48 नियम’ को अप्रत्यक्ष कलाओं की मार्गदर्शिका समझें। इस ऑडियो बुक को सुनने के बाद आप शक्ति और इसकी कुंजी को समझ जाएंगे तथा यह सीख लेंगे कि नेक छवि बनाकर स्वार्थ सिद्धि कैसे की जा सकती है। अगर आप इन सिद्धांतों पर अमल करते हैं, तो आप आधुनिक दुनिया में काफ़ी सफल हो सकते हैं।

 

“कर्म सफलता का मूल है।” ‐ पाब्लो पिकासो
“Action is the foundational key to all success.” ‐ Pablo Picasso

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