कल्पलता : डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी | Kalpalata : By Dr. Hazari Prasad Dwivedi Hindi Book
पुस्तक के कुछ अंश : द्विवेदी जी के निधों के मूल तत्व है अकुठ भावोद्रेक, अप्रस्तुतों के भावोजित स्पंजक प्रयोग, सजीव विवात्मकता और आयासहीन भाषा ली। यही कारण है कि उनके निबंधों का प्रत्येक सहृदय पाठक उनकी कल्पनाशील भावप्रवणता से एकमेक होते हुए एक सारस्वत यात्रा का आनंद प्राप्त करता है और उस ज्ञान कोश की उपलब्धि भी, जो उन जैसे सहृदय सर्जक के अनुभावित मणिमाणिक्यों से परिपूर्ण है। द्विवेदी जी के निबंधकार के बारे में लिखते हुए पं. विद्यानिवास मिश्र ने कहा है कि उनके निबंधों में उनका बहुत और कथा- कोतुकी व्यक्तित्व वरावर अंतबंधित रहता है, जो बालकों की तरह मात्र कौतुकी ही नहीं, महाकाल की सीमा से उन्मथित भी है। उन्हीं के शब्दों, “द्विवेदी जी के निबंधों का संयोजन- तंत्र उनके इस व्यक्तित्व का ही सहज परिणाम है इसलिए वह सायास दना नहीं लगता, और इसी के सहारे साधारण सा दिव (भी) जाने कितनी वस्तुओं को, कितनी विचार- धाराओं को जोड़ने का माध्यम बन जाता है।” निश्चय ही द्विवेदी जी की यह कृति शास्त्र को लोक से जोड़नेवाली उनकी विदग्ध रचना- त्मकता का अप्रतिम साध्य है।
| पुस्तक का विवरण / Book Details | |
| Book Name | कल्पलता | Kalpalata |
| Author | Acharya Hazariprasad Dwivedi / आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी |
| Category | Essay On Books In Hindi | निबन्ध |
| Language | हिंदी / Hindi |
| Pages | 216 |
| Quality | Good |
| Download Status | Not for Download |
“अगर सफलता आपके आदर्शों से मेल नहीं खाती – यदि यह दुनिया को अच्छी लगती हो लेकिन आपको अपने मन में नहीं अच्छी लगती – तो यह सफलता नहीं है।” ‐ एना क्विन्ड्लेन
“If success is not on your terms – if it looks good to the world but does not feel good in your own heart – it is no success at all.” ‐ Anna Quindlen
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