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Dharati Se Sagar Tak : By Vineeta Singhal Hindi Book | धरती से सागर तक : विनीता सिंघल द्वारा हिंदी पुस्तक

Dharati Se Sagar Tak : By Vineeta Singhal Hindi Book | धरती से सागर तक : विनीता सिंघल द्वारा हिंदी पुस्तक
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धरती से सागर तक पुस्तक पीडीएफ के कुछ अंश : आज भी अंशु समुद्र के किनारे भाग- भागकर आती-जाती लहरों के साथ शंख और सीपियां बीन रहा था। कभी कोई लहर जब किसी मछली को भी वहां छोड़ जाती तो अंशु उसे उठाकर वापस पानी में फेंक देता। उसका तड़पना उससे देखा नहीं जाता था। यही क्रम बहुत देर से जारी था। अब धूप काफी तेज हो गयी थी। दादा जी दूर बैठे अंशु की यह भाग-दौड़ देख रहे थे। जब उन्होंने देखा कि अंशु वापस आने का नाम ही नहीं ले रहा तो उन्होंने उठते हुए उसे आवाज दी, “अंशु… अंशु बेटे ! चलो…बहुत देर हो रही है…।”
अंशु पर अभी भी उनकी आवाज का कोई असर नहीं हुआ था और वह पहले की तरह भागते । हुए कभी कुछ उठाता तो कभी लहरों के साथ खिलवाड़ करता दूर चला जाता।
दादा जी ने पास जाकर उसका हाथ पकड़ा और जबरदस्ती खींचते हुए गाड़ी की ओर बढ़े।
“अंशु, बहुत देर हो चुकी है। …तुम्हारी मां इंतजार कर रही होंगी। …फिर वह गुस्सा करेंगी।”
“तो क्या हुआ ?” अंशु ने मुंह फुलाकर कहा और आगे बढ़कर गाड़ी का दरवाजा खोलने लगा। “ऐसा नहीं कहते बेटे,” दादा जी भी अंशु के पीछे-पीछे गाड़ी में बैठते हुए बोले ।
अंशु का मन अभी भी कहीं दूर सागर में डूबा था। दादा जी ने प्यार से उसका कंधा थपथपाया, “सागर कहीं भागा थोड़े ही जा रहा है। अगले इतवार को फिर आयेंगे। तब जी भरकर खेलना।”
“आप खेलने कहां देते हैं, बस हर बार यही कहकर वापस ले जाते हैं कि अगली बार जी भरकर खेलना,” अंशु ने गुस्सा जताया।

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पुस्तक का विवरण / Book Details
Book Name धरती से सागर तक | Dharati Se Sagar Tak
Author
CategoryHindi Children's Book PDF Story Book PDF in Hindi
Language
Pages 40
Quality Good
Download Status Not for Download
“परस्पर आदान-प्रदान के बिना समाज में जीवन का निर्वाह संभव नहीं है।” ‐ सेमुअल जॉन्सन
“Life cannot subsist in a society but by reciprocal concessions.” ‐ Samuel Johnson

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