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द फोर एग्रीमेंटस : डॉन मिग्युअल रूइज द्वारा हिंदी ऑडियो बुक | The Four Agreements : by Don Miguel Ruiz Hindi Audiobook

द फोर एग्रीमेंटस : डॉन मिग्युअल रूइज द्वारा हिंदी ऑडियो बुक | The Four Agreements : by Don Miguel Ruiz Hindi Audiobook
पुस्तक का विवरण / Book Details
AudioBook Name द फोर एग्रीमेंटस / The Four Agreements
Author
Category,
Language
Duration 2:34 hrs
Source Youtube

The Four Agreements Hindi Audiobook का संक्षिप्त विवरण : तीन हज़ार वर्ष पूर्व आपके और मेरे जैसा एक इंसान था, जो पहाड़ों से घिरे एक नगर के पास रहता था। वह इंसान एक ओझा (जादूगर) बनने के लिए अध्ययन कर रहा था, वह अपने पुरखों का ज्ञान पाना चाहता था लेकिन वह उनके द्वारा दिए जा रहे सारे ज्ञान से सहमत नहीं था। उसे मन ही मन ऐसा लगता था कि इसके अलावा कुछ और भी होना चाहिए। एक दिन, जब वह गुफा में सो रहा था तो उसने सपने में देखा कि उसका अपना शरीर सो रहा है। वह पूर्णिमा की रात को अपनी गुफा से बाहर आ गया। आकाश साफ था, जिसमें असंख्य सितारे टिमटिमाते हुए देखे जा सकते थे। तभी उसके भीतर कुछ ऐसा घटा, जिसने हमेशा के लिए उसके जीवन को रूपांतरित कर दिया। उसने अपने हाथों को देखा, अपने शरीर को महसूस किया और उसने अपना ही स्वर सुना, “मैं तो प्रकाश सेबना हूँ, मैं तो सितारों के मेल से बना हूँ।’ उसने आकाश के सितारों को एक बार फिर से देखा और उसे एहसास हुआ कि सितारों से प्र; काश नहीं निकल रहा था बल्कि प्रकाश ही सितारों को रच रहा था। उसने कहा, ‘सब कुछ प्रकाश से बना है और किसी भी दो वस्तुओं के बीच का रिक्त स्थान भी प्रकाशमय ही है।’ अब वह जानता था कि जो कुछ भी अस्तित्व में था, वह सब एकरूप ही था। यह प्रकाश जीवन का संदेशवाहक है क्योंकि यह जीवंत तथा सभी सूचनाओं से भरपूर है। इसके बाद उस इंसान को एहसास हुआ कि हालाँकि वह सितारों से बना था, पर वह उन सितारों में से एक नहीं था। उसने सोचा कि “मैं इन सितारों के बीच कहीं हूँ।’ इसलिए उसने उन सितारों को ‘टोनल’ और उन सितारों के बीच की रोशनी को ‘नगुअल’ का नाम दिया। इन दोनों के बीच जो भी सामंजस्य और स्थान को रचता है, वही जीवन है। जीवन के बिना टोनल और नगुअल का अस्तित्व ही नहीं हो सकता। उसे विश्वास हुआ कि जीवन ही सबका निर्माता है, वही हर चीज़ को रचता है। उसने यही पता लगाया कि इस अस्तित्व में जो भी प्रकट हो रहा है, वह उस सजीव का ही रूप है, जिसे हम ईश्वर कहते हैं। सब कुछ गॉड है, ईश्वर है। वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि मनुष्य की धारणा केवल यही है कि प्रकाश, प्रकाश को खोज रहा है। उसने यह भी देखा कि पदार्थ एक दर्पण है। हर चीज़ एक दर्पण है, जो प्रकाश को प्रतिबिंबित करते हुए प्रकाश की छवि को, माया के संसार को और एक स्वप्न को रचती है। यह उस धुएँ की तरह है जो हमें चीज़ों का वास्तविक रूप नहीं देखने देता। उसने कहा, ‘हमारा वास्तविक रूप विशुद्ध प्रेम और प्रकाश है।’
जीवन परिवर्तन
इस समझ ने उसका जीवन बदल दिया। जब उसे यह पता चल गया कि वह असल में कौन था तो उसने अपने आसपास के दूसरे मनुष्यों व प्रकृति को देखा और उसे वह सब देखकर बहुत आश्चर्य हुआ। उसने हर चीज़ में स्वयं को देखा – हर मनुष्य, हर जीव, हर वृक्ष, जल, वर्षा, मेघ, धरती आदि में स्वयं को देखा। उसने देखा कि जीवन ने टोनल (सितारे) और नगुअल (रोशनी) को मिलाकर ही जीवन के प्रकटीकरण के अरबों रूप रच दिए थे। उन कुछ क्षणों में उसने सब कुछ जान और समझ लिया। वह बहुत उत्सुक था और उसका हृदय शांति से भरपूर था। वह अपने लोगों को शीघ्र बताना चाहता था कि उसने क्या पा लिया है। लेकिन उसके पास इन बातों को प्रकट करने के लिए शब्द नहीं थे। उसने दूसरे लोगों को बताना चाहा लेकिन वे उसकी बात नहीं समझ सके। वे देख सकते थे कि यह इंसान बदल गया था। उसकी आँखों और वाणी से बहुत ही सुंदर तेज झलकने लगा था। अपने भीतर हुए इस अनोखे परिवर्तन के बाद वह इंसान, किसी भी व्यक्ति या वस्तु को बिना किसी धारणा अथवा मान्यता के उसके मल रूप में देखने लगा। अब वह इंसान बिना किसी धारणा अथवा मान्यता के उसके मूल रूप में देखने लगा। अब वह इंसान बाकी लोगों से अलग हो चुका था। वह सभी को बहुत अच्छी तरह समझ सकता था लेकिन कोई दूसरा उसे नहीं समझ पा रहा था। लोगों का मानना था कि वह ईश्वर का अवतार है और जब उसने यह सुना तो वह मुस्कुराकर बोला, ‘यह सच है। मैं ईश्वर हूँ, पर तुम भी तो ईश्वर हो। हम सब एक से हैं। हम सभी प्रकाश की छवियाँ हैं। हम सभी ईश्वर हैं। लेकिन अब भी लोगों ने उसे नहीं समझा। उसने यह जान लिया था कि वह बाकी लोगों के लिए दर्पण बन गया है, एक ऐसा दर्पण जिसमें वे सब स्वयं को देख सकते थे। उसने कहा, प्रत्येक इंसान एक दर्पण है।’ वह इंसान सामनेवाले को दर्पण समझकर उसके भीतर स्वयं के सच्चे स्वरूप को देख सकता था। लेकिन कोई भी उसे दर्पण समझकर उसके भीतर अपने सच्चे स्वरूप का दर्शन नहीं कर पा रहा था। लोगों को देखकर उसे यह एहसास हुआ कि वे सब एक सपना देख रहे थे लेकिन वे सजग नहीं थे। उन्हें पता नहीं था कि वे क्या देख रहे थे। दरअसल लोग उस इंसान को आइने की भाँति देख नहीं पा रहे थे। उनके और आइने के बीच एक कोहरा (धुआँ, परदा) सा छाया था। वह कोहरा, लोगों के सपनों की अलग-अलग धारणाओं से बना परदा) सा छाया था। वह कोहरा, लोगों के सपनों की अलग-अलग धारणाओं से बना हुआ था। फिर वह इंसान जान गया कि यदि वह भी इन लोगों के बीच रहा तो उसने जो भी सीखा वह उसे जल्दी ही भूल जाएगा। इस समस्या को टालने के लिए और सतत उस अनुभव की याद बनाए रखने के लिए उस इंसान ने स्वयं को एक धुँधला दर्पण कहना शुरू किया। उसे यह विश्वास था कि इस नाम की वजह से वह हमेशा यह याद रखेगा कि पदार्थ यानी वस्तु एक दर्पण है और बीच का धुआँ हमें यह जानने नहीं देता कि हम असल में कौन हैं। वह इंसान कहता था कि “मैं धुँधला दर्पण हूँ क्योंकि मैं स्वयं को आप सब में देख रहा हूँ। मगर हम सब एक-दूसरे को नहीं पहचानते क्योंकि हमारे बीच धुआँ छाया है। यही धुआँ स्वप्न है और दर्पण यानी स्वप्न देखने वाले आप स्वयं हैं !

“आप जितना कम बोलेंगे, आपकी उतनी ही सुनी जाएगी।” ‐ एबिगैल वैन ब्यूरेन
“The less you talk, the more you’re listened to.” ‐ Abigail Van Buren

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