Amulya Upahar : By Veena Bansal Hindi Book | अमूल्य उपहार : वीना बंसल द्वारा हिंदी पुस्तक
अमूल्य उपहार पुस्तक पीडीएफ के कुछ अंश : उन दिनों में कान्वेंट स्कूल में ‘हिन्दी विभाग अध्यक्षा” के रूप में कार्यरत थी, तथा स्कूल की पत्रिका का सम्पादन कर रही थी। ईश्वर प्रदत्त प्रतिभा तथा रुचि के फलस्वरूप में लेख, कहानियां, कविताएं आदि लिखती रहती थी जिनमें अधिकांश विद्यालय-पत्रिका में प्रकाशित होते रहते थे। स्थानीय पत्रिकाओं में मेरे लेख, कहानियां व कविताएं प्रकाशित हो चुके थे।
उन्हीं दिनों मेरे पति के मित्र व हिन्दी के जाने-माने लेखक राजन पाराशर जी, हमारे घर आए और उन्होंने मेरी कहानियां व कविताएं पढ़ी। उन्होंने मुझे परामर्श दिया कि मैं “चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट” के लिए कहानियां लिखूं। उन्होंने मेरे भीतर सोई लेखकीय प्रतिभा को झकझोर डाला, तथा मुझे लिखने की प्रेरणा दी। और उनकी प्रेरणा से प्रेरित हो कर “बाल दर्पण” कहानियां लिखी गई।
मेरे इर्द-गिर्द बच्चों की समस्याओं से जूझती अनेकों घटनाएं घटित होती रहती थीं। मेरे मन में विचार आया कि आखिर कब तक हम “परियों” भूत-प्रेतों, “तोता-मैना” आदि की कहानियों से बच्चों का मन बहलाते रहेंगे। आज बच्चों के सम्मुख अनेकों समस्याएं हैं, जैसे- गरीबी, बाल-श्रम, अशिक्षा, उपहरण, आतंकवाद आदि। बाल कहानियां ऐसी हों कि उनसे न केवल बच्चों का मनोरंजन हो, अपितु इन कहानियों में वे अपनी वेदना तथा वास्तविक सत्य-असत्य का साक्षात्कार कर सकें। वे मानव के उस व्यवहार को पहचान सकें जो प्रेम के अभाव में कितना कटु व निर्मम हो जाता है।
“बाल-दर्पण” में संग्रहीत कहानियां बच्चों के पशुओं के प्रति प्रेम, पर्यावरण, परिस्थितियों से जूझने के अदम्य साहस को दर्शाती है। इन कहानियों में बच्चों के उस निर्मल व पवित्र प्रेम की धारा बह रही है जो राग-द्वेष व छल-कपट से सर्वथा दूर होता है।
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| पुस्तक का विवरण / Book Details | |
| Book Name | अमूल्य उपहार | Amulya Upahar |
| Author | Veena Bansal |
| Category | Hindi Children's Book PDF Story Book PDF in Hindi |
| Language | हिंदी / Hindi |
| Pages | 56 |
| Download Status | Not for Download |
“जीवन के बारे में एक मजेदार बात यह है कि यदि आप सर्वश्रेष्ठ वस्तु से कुछ भी कम स्वीकार करने से इंकार करते हैं तो अकसर आप उसको प्राप्त कर ही लेते हैं।” – डब्ल्यू. सोमरसेट मोघम
“It’s a funny thing about life; if you refuse to accept anything but the best, you very often get it.” – W. Somerset Maugham
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