दलित दुनिया : डॉ. कालीचरण स्नेही द्वारा हिंदी पुस्तक | Dalit Duniya : By Dr. Kalicharan Snehi Hindi Book
पुस्तक का विवरण / Book Details | |
Book Name | दलित दुनिया | Dalit Duniya |
Author | डॉ. कालीचरण स्नेही / Dr. Kalicharan Snehi |
Category | इतिहास / History, कहानी संग्रह / Story Collections, Historical, Kahani Sangrah |
Language | हिंदी / Hindi |
Pages | 336 |
Quality | Good |
Download Status | Not for Download |
दलित दुनिया पुस्तक पीडीएफ के कुछ अंश : भारतरत्न बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की विरासत और उनके विचारों की उष्मा को जन-जन तक पहुँचाने में जिन भारतीय दलित चिंतकों का दल सक्रिय है, उनमें प्रो. कालीचरण ‘स्नेही’ की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। दलित साहित्य का उत्स बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर की विचारधारा को माना जाता है। उनके अनवरत संघर्ष का ही परिणाम है, कि मराठी में दलित साहित्य का सबसे पहले प्रस्फुटन हुआ था। बाद में हिन्दी प्रदेशों में दलित साहित्य का जोर-शोर से सशक्त लेखन आरम्भ हुआ। उत्तर भारत की हिन्दी पट्टी में जिन दलित साहित्यकारों ने आरम्भिक दौर में लेखन आरम्भ किया था, उनमें आठ-दस प्रख्यात लेखकों का उल्लेख ही होता है, उनमें प्रो. ‘स्नेही’ भी सम्मिलित हैं। प्रथमतः एक उत्तेजक दलित कवि के रूप में इन्होंने अपनी पृथक् पहचान बनाई है। ‘आरक्षण अपना-अपना’ तथा ‘बाबा खूब उजीतो कर गए, घर-घर सूरज घर गए, के रचयिता के रूप में प्रो. स्नेही को राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है। सन् 1987-88 से मेरा प्रो. स्नेही से एक कवि के रूप में परिचय हुआ था, जो अब साहित्यिक मैत्री में बदल गया है। मेरे कई संकलनों और साहित्यिक कार्यों में इनका भरपूर सहयोग रहा है। तब से आज तक आप निरन्तर दलित लेखन कार्य में जुटे हुए हैं। आप अखिल भारतीय स्तर पर कवि सम्मेलनों में वाहवाही लूटने वालों में भी अग्रणी रहे हैं। दलित साहित्य पर केन्द्रित राष्ट्रीय स्तर के जितने भी आयोजन होते हैं, उनमें प्रो. स्नेही की उपस्थिति संगोष्ठियों को सार्थकता प्रदान करती आई है। एक कवि के रूप में जितनी ख्याति आपको मिली है, उतनी ही ख्याति एक समर्थ आलोचक के रूप में भी प्राप्त है। इनकी कुछ आलोचनात्मक कृतियाँ राष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चित हैं। विगत जुलाई माह में आठवें विश्व हिन्दी सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर अमेरिका के न्यूयार्क शहर में प्रो. स्नेही की तीन कृतियों का लोकार्पण हुआ था, जो कि हिन्दी साहित्य के साथ-साथ दलित साहित्य के लिए भी महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।
“अपना जीवन जीने के केवल दो ही तरीके हैं। पहला यह मानना कि कोई चमत्कार नहीं होता है। दूसरा है कि हर वस्तु एक चमत्कार है।” ‐ अल्बर्ट आईन्सटीन
“There are only two ways to live your life. One is as though nothing is a miracle. The other is as though everything is a miracle.” ‐ Albert Einstein
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