इंदिरा : बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय | Indira : By Bankimchandra Chattopadhyay Hindi Book
इंदिरा पुस्तक पीडीएफ के कुछ अंश : बहुत दिन व्यतीत हो गए थे और अब में अपनी ससुराल जा रही थी। अब मुझे उन्नीसवाँ वर्ष लग चुका था। वहाँ न जाने का कारण यह था कि पहले तो मैं अब तक विद्या अध्ययन ही करती रही, फिर जब कभी मेरे ससुर ने मुझे लाने के लिए आदमी भेजे भी तो मेरे पिता ने यूँ कह दिया- “समधी से कहना कि जब दामाद दो पैसे कमाने के योग्य हो जाए तो बहू को आकर ले जाएँ। नहीं तो इस तरह वह मेरी लड़की को क्या खिलाएँगे।”
यह बात मेरे पति के दिल को लग गई। उन्होंने स्वयं पैसा कमाकर पेट पालने का निश्चय कर लिया। इसी विचार से वे बीस साल की अल्पआयु में ही नौकरी की तलाश में चल दिए। वे घर से पश्चिम की ओर चल पड़े। उन दिनों रेल न थी इसलिए यात्रा करना कठिन था। फिर मन में दृढ़ संकल्प लिए हुए वह खाली जेब पैदल ही यात्रा करते हुए पंजाब जा पहुँचे। जो मुसीबतों तथा कठिनाइयों का सामना प्रसन्नतापूर्वक करता है तो फिर सफलता उसके पाँव क्यों न चूमे। ठीक यही दशा हमारे स्वामी की भी हुई। वह भी रुपया कमाने लगे। आठ वर्ष तक घर की ओर मुँह न किया और न ही कभी मेरी सुध ली। केवल घर पर रुपया भेजते रहे। इस बात पर मुझे बहुत क्रोध आता। आता तो अपने पिताजी पर भी उन्होंने रुपयों की बात क्यों कहीं? क्या उनके पास रुपयों की कमी थी? यह सोचकर मेरा शरीर जल-जल कर राख हो जाता।
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| पुस्तक का विवरण / Book Details | |
| Book Name | इंदिरा | Indira |
| Author | Bankim Chandra |
| Category | Novel Book in Hindi PDF |
| Language | हिंदी / Hindi |
| Pages | 60 |
| Quality | Good |
| Download Status | Not for Download |
“जब मैं चौदह साल का लड़का था, तब मेरे पिता इतने अज्ञानी थे कि मुझे उनका आसपास होना बिल्कुल नहीं पसंद था। लेकिन जब मैं इक्कीस का हुआ, तो मुझे बेहद आश्चर्य हुआ कि सात वर्षों में उन्होंने कितना कुछ सीख डाला था।” ‐ मार्क ट्वैन
“When I was a boy of fourteen, my father was so ignorant I could hardly stand to have the old man around. But when I got to be twenty-one, I was astonished at how much the old man had learned in seven years.” ‐ Mark Twain
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