अहंकार / Ahankar

पुस्तक का विवरण : उन दिनों चील नदी के दट पर वहुत से तपस्वी रह्य करते थे। दोनों ही किनारों पर कितनी ही कोपड़ियाँ थोड़ी-थोड़ी दूर पर बनी हुई भी । तपस्वी लोग इन्ही में एकान्तवास करते थे और ज़रूरत पड़ने पर एक दूसरे की सद्दायता करते थे । इन्हीं झोंपड़ियों के बीच मे जहाँ तहाँ गिरजे बने हुए थे। प्रायः सभी गिरजाघरों पर सजीव का आकार दिखाई देता था। धर्मोत्सवों पर साधु-सन्त दूर-दूर से यहाँ आ जाते थे। नदी के किनारे जहाँ तहाँ मठ भी थे जहाँ तपस्वी लोग अकेले छोटी-छोटी गुफ्राओं मे सिद्धि-प्राप्ति करने का यत्न करते थे ।
यहाँ सभी तपस्वी बड़े-बड़े कठिनवृत धारण करते थे, केवल सूर्यास्त के वाद एक वार सूक्ष्म आहार करते । रोटी और नमक के सिवाय और किसी वस्तु का सेवन न करते ये। कितने ही तो समाधियों या कन्दराओं मे पड़े रहते थे। सभी ब्रमह्यचारी थे, सभी मिताहारी थे वह ऊन का एक कुरता और कन्टोप पहनते थे…………
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Here all the ascetics used to wear big hard-wearing, only after sunset they used to eat subtle food once in a while. They do not consume anything other than bread and salt. Some used to lie in samadhis or caves. All were brahmacharis, all were reticent, they used to wear a woolen kurta and a cape………..
| पुस्तक का विवरण / Book Details | |
| Book Name | अहंकार / Ahankar |
| Author | Munshi Premchand |
| Category | Kahani Kahaniyan Book in Hindi PDF Story Book PDF in Hindi Uncategorized Hindi Books | अवर्गीकृत |
| Language | हिंदी / Hindi |
| Pages | 256 |
| Quality | Good |
| Size | 8.2 MB |
| Download Status | Available |
“परस्पर आदान-प्रदान के बिना समाज में जीवन का निर्वाह संभव नहीं है।” ‐ सेमुअल जॉन्सन
“Life cannot subsist in a society but by reciprocal concessions.” ‐ Samuel Johnson
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