संस्कृत पुस्तकें ગુજરાતી પુસ્તકો मराठी पुस्तके বাংলা বই

अलंकार : मुंशी प्रेमचन्द द्वारा हिंदी ऑडियो बुक | Alankar : by Munshi Premchand Hindi Audiobook

अलंकार : मुंशी प्रेमचन्द द्वारा हिंदी ऑडियो बुक | Alankar : by Munshi Premchand Hindi Audiobook
PDF डाउनलोड करने के लिए लिंक नीचे दिया गया है

Alankar Hindi Audiobook का संक्षिप्त विवरण : प्रेमचंद भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे मशहूर लेखकों में से एक हैं, और बीसवीं सदी के सबसे महत्वपूर्ण हिन्दुस्तानी लेखकों में से एक के रूप में जाना जाता है। उनकी रचनाओं में एक दर्जन उपन्यास, लगभग 250 लघु कथाएँ, कई निबंध और अनेकों विदेशी साहित्यिक कृतियों का हिंदी में अनुवाद शामिल है। प्रेमचंद को पहला हिंदी लेखक माना जाता है जिनका लेखन प्रमुखता यथार्थवाद पर आधारित था। उनके उपन्यास गरीबों और शहरी मध्यम वर्ग की समस्याओं का वर्णन करते हैं। उन्होंने राष्ट्रीय और सामाजिक मुद्दों के बारे में जनता में जागरूकता लाने के लिए साहित्य का उपयोग किया और भ्रष्टाचार, बाल विधवापन, वेश्यावृत्ति, सामंती व्यवस्था, गरीबी, उपनिवेशवाद के लिए और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन से संबंधित विषयों के बारे में लिखा।

प्रेमचंद ने 1900 के दशक के अंत में कानपुर में राजनीतिक मामलों में रुचि लेना शुरू किया था, और यह उनके शुरुआती काम में दिखाई देता है, जिनमें देशभक्ति का रंग था। शुरू में उनके राजनीतिक विचार मध्यम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस नेता गोपाल कृष्ण गोखले से प्रभावित थे, पर बाद में, उनका झुकाव और अधिक कट्टरपंथी बाल गंगाधर तिलक की ओर हो गया। उन्होंने सख्त सरकारी सेंसरशिप के कारण, उन्होंने अपनी कुछ कहानियों में विशेषकर ब्रिटिश सरकार का उल्लेख नहीं किया, पर लेकिन मध्यकालीन युग और विदेशी इतिहास की सेटिंग में अपने विरोध को छिपा कर व्यक्त किया।

Dive into more stories by Premchand with one click.

उन दिनों नील नदी के तट पर बहुतसे तपस्वी रहा करते थे। दोनों ही किनारों पर कितनी ही झॉपड़ियां थोड़ीथोड़ी दूर पर बनी हुई थीं। तपस्वी लोग इन्हीं में एकान्तवास करते थे और जरूरत पड़ने पर एकदूसरे की सहायता करते थे। इन्हीं झोंपड़ियों के बीच में जहांतहां गिरजे बने हुए थे। ‘पराय: सभी गिरजाघरों पर सलीब का आकार दिखाई देता था। धमोर्त्सवों पर साधुसन्त दूरदूर से वहां आ जाते थे। नदी के किनारे जहांतहाँ मठ भी थे। जहां तपस्वी लोग अकेले छोटीछोटी गुफाओं में सिद्धि पराप्त करने का यल करते थे।

यह सभी तपस्वी बड़ेबड़े कठिन वरत घारण करते थे, केवल सूयार्स्त के बाद एक बार सूक्ष्म आहार ‘करते। रोटी और नमक के सिवाय और किसी वस्तु का सेवन न करते थे। कितने ही तो समाधियों या कन्दराओं में पढ़े रहते थे। सभी बरह्मचारी थे, सभी मिताहारी थे। वह ऊन का एक कुरता और ‘कनटोप पहनते थे; रात को बहुत देर तक जागते और भजन कले के पीछे भूमि पर सो जाते थे। अपने पूर्वपुरुष के पापों का परायश्चित करने के लिए वह अपनी देह को भोगविलास ही से दूर नहीं रखते थे, वर उसकी इतनी रक्षा भी न करते थे जो वर्तमानकाल में अनिवार्य समझी जाती है। उनका विश्वास था कि देह को जितना कष्ट दिया जाए, वह जितनी रूणावस्था में हो, उतनी ही आत्मा पवित्र होती है। उनके लिए को और फोड़ों से उत्तम श्रृंगार की कोई वस्तु न थी।

इस तपोभूमि में कुछ लोग तो ध्यान और तप में जीवन को सफल करते थे, पर कुछ ऐसे लोग भी थे जो ताड़ की जटाओं को बटकर किसानों के लिए रस्सियां बनाते या फल के दिनों में कृषकों की सहायता करते थे। शहर के रहने वाले समझते थे कि यह चोरों और डाकुओं का गिरोह है, यह सब अख के लुटेरों से मिलकरा काफिलों को लूट लेते हैं। किन्तु यह भरम था। तपस्वी घन को तुच्छ समझते थे, आत्मोद्धार ही उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य था। उनके तेज की ज्योति आकाश को भी आलोकित कर देती थी।

स्वर्ग के दूत युवकों या यात्रियों का वेश रहकर इन मठों में आते थे। इसी परकार राक्षस और दैत्य हब्शियों या पशुओं का रूप घरकर इस घमाश््रम में तपस्वियों के बहकाने के लिए विचरा करते थे। जब ये भक्त गण अपनेअपने घड़े लेकर परातःकाल सागर की ओर पानी भले जाते थे तो उन्हें राक्षसों और दैत्यों के पदचिह्न दिखाई देते थे। यह धमार्श्रम वास्तव में एक समरक्षेत्र था जहां नित्य और विशेषत: रात को स्वर्ग और नरक, घर्म और अधर्म में भीषण संगराम होता रहता था। तपस्वी लोग स्वर्गदूतों तथा ईश्वर की सहायता से वरत, ध्यान और तप से इन पिशाचसेनाओं के आधघातों का निवारण करते थे। कभी इन्द्रियजनित वासनाएं उनके मर्मस्थल पर ऐसा अंकुश लगाती थीं कि वे पीड़ा से विकल होकर चौखने लगते थे और उनकी आर्॑ध्वनि वनपशुओं की ‘गरज के साथ मिलकर तां से भूषित आकाश तक गूंजने लगती थी। तब वही राक्षस और दैत्य मनोहर वेश घारण कर लेते थे, क्योंकि यद्यपि उनकी सूरत बहुत भयंकर होती है परवह कभी कभी सुन्दर रूप घर लिया करते हैं जिसमें उनकी पहचान न हो सके। तपस्वियों को अपनी कुटियों में वासनाओं के ऐसे दृश्य देखकर विस्मय होता था जिन पर उस समय धुरंधर विलासियों का चित्त…..

 

पुस्तक का विवरण / Book Details
AudioBook Name अलंकार / Alankar
Author
CategoryHindi Audiobooks Literature Book in Hindi Novel Book in Hindi PDF
Language
Duration 6:20:31 hrs
Source Youtube
“काम को सही करने से अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि सही काम ही किये जावें।” पीटर ड्रकर
“It is more important to do right thing than to do things right.” Peter Drucker

हमारे टेलीग्राम चैनल से यहाँ क्लिक करके जुड़ें

Leave a Comment