प्रेमा : मुंशी प्रेमचंद द्वारा हिंदी ऑडियोबुक | Prema : by Munshi Premchand Hindi Audiobook
पुस्तक का विवरण / Book Details | |
AudioBook Name | प्रेमा / Prema |
Author | Munshi Premchand |
Category | हिंदी ऑडियोबुक्स / Hindi Audiobooks, उपन्यास / Novel |
Language | हिंदी / Hindi |
Duration | 3:56 hrs |
Source | Youtube |
संध्या का समय है | डूबने वाले सूर्य की सुनहरी किरणें रंगीन शीशों की आड़ से, एक अंग्रेज़ी ढंग पर सजे हुए कमरे में झांक रही हैं, जिससे सारा कमरा रंगीन हो रहा है । अंग्रेज़ी ढंग की मनोहर तसवीरें, जो दीवारों से लटक रही हैं, इस समय रंगीन वस्त्र धारण करके और भी सुंदर मालूम होती हैं। कमरे के बीचोंबीच एक गोल मेज़ है, जिसके चारों तरफ़ नर्म मख़मली गददों की रंगीन कुर्सियां बिछी हुई हैं। इनमें से एक कुर्सी पर एक युवा पुरुष सर नीचा किए हुए बैठा कुछ सोच रहा है। वह अति सुंदर और रूपवान पुरुष है, जिस पर अंग्रेज़ी काट के कपड़े बहुत भले मालूम होते हैं । उसके सामने मेज पर एक कागज़ है, जिसको
वह बार-बार देखता है। उसके चेहरे से ऐसा लगता है कि इस समय वह किसी गहरे सोच में डूबा हुआ है। थोड़ी देर तक वह इसी तरह पहलू बदलता रहा, फिर वह एकाएका उठा और कमरे से बाहर निकलकर बरांडे में टहलने लगा, जिसमें मनोहर फूलों और पत्तों के गमले सजाकर धरे हुए थे। वह बरांडे से फिर कमरे में आया और कागज़ का टुकड़ा उठाकर बड़ी बेचैनी के साथ इधर-उधर टहलने लगा। समय बहुत सोहावना था। माली फूलों की क्यारियों में पानी दे रहा
था। एक तरफ़ साइस घोड़े को टहला रहा था। ठंडी-ठंडी और सुगंध से भरी हुई हवा चल रही थी। आकाश पर लालिमा छाई हुई थी। समय और स्थान दोनों ही बहुत रमणीक थे। परंतु वह अपने विचार में ऐसा लवलीन हो रहा था कि उसे इन बातों को बिलकुल सुधि न थी। हां, उसकी गर्दन आप ही आप हिलती थी और हाथ भी आप ही आप इशारे करते थे-जैसे वह किसी से बातें कर रहा हो। इसी बीच में एक बाइसिकिल फाटक के अंदर आती हुई दिखाई दी और एक गोरा-चिट्टा आदमी कोट-पतलून पहने, ऐनक लगाए, सिगार पीता, जूते चरमर करता, उतर पड़ा और बोला–‘“गुड ईवनिंग अमृतराय ।”! अमृतराय ने चौंककर सर उठाया और बोले–”ओ…! आप हैं मिस्टर दाननाथ। आइए बैठिए, आप आज जललसे में नहीं दिखाई दिए।”” दाननाथ–” कैसा जलसा? मुझे तो इसकी खबर भी नहीं !”! अमृतराय (आश्चर्य से)–”ऐं! आपको ख़बर ही नहीं। आज आगरे के लाला धनुषधारीलाल ने बहुत अच्छा व्याख्यान दिया और विरोधियों के दांत खट्टे कर दिए।”” दाननाथ–” ईश्वर जानता है, मुझे ज़रा भी ख़बर नहीं थी, नहीं तो मैं अवश्य आता। मुझे तो लाला साहब के व्याख्यानों के सुनने का बहुत दिनों से शौक़ है। मेरा अभाग्य था कि ऐसा अच्छा समय हाथ से निकल ‘गया। किस बात पर व्याख्यान था?” अमृतराय–““जाति की उन्नति के सिवा दूसरी कौन सी बात हो सकती थी ? लाला साहब ने अपना जीवन इसी काम के हेतु अर्पण कर दिया है। आज ऐसा सच्चा देशभक्त और निष्काम जाति-सेवक इस देशमें नहीं है। यह दूसरी बात है कि कोई उनके सिद्धांतों को माने या न माने |
वह बार-बार देखता है। उसके चेहरे से ऐसा लगता है कि इस समय वह किसी गहरे सोच में डूबा हुआ है। थोड़ी देर तक वह इसी तरह पहलू बदलता रहा, फिर वह एकाएका उठा और कमरे से बाहर निकलकर बरांडे में टहलने लगा, जिसमें मनोहर फूलों और पत्तों के गमले सजाकर धरे हुए थे। वह बरांडे से फिर कमरे में आया और कागज़ का टुकड़ा उठाकर बड़ी बेचैनी के साथ इधर-उधर टहलने लगा। समय बहुत सोहावना था। माली फूलों की क्यारियों में पानी दे रहा
था। एक तरफ़ साइस घोड़े को टहला रहा था। ठंडी-ठंडी और सुगंध से भरी हुई हवा चल रही थी। आकाश पर लालिमा छाई हुई थी। समय और स्थान दोनों ही बहुत रमणीक थे। परंतु वह अपने विचार में ऐसा लवलीन हो रहा था कि उसे इन बातों को बिलकुल सुधि न थी। हां, उसकी गर्दन आप ही आप हिलती थी और हाथ भी आप ही आप इशारे करते थे-जैसे वह किसी से बातें कर रहा हो। इसी बीच में एक बाइसिकिल फाटक के अंदर आती हुई दिखाई दी और एक गोरा-चिट्टा आदमी कोट-पतलून पहने, ऐनक लगाए, सिगार पीता, जूते चरमर करता, उतर पड़ा और बोला–‘“गुड ईवनिंग अमृतराय ।”! अमृतराय ने चौंककर सर उठाया और बोले–”ओ…! आप हैं मिस्टर दाननाथ। आइए बैठिए, आप आज जललसे में नहीं दिखाई दिए।”” दाननाथ–” कैसा जलसा? मुझे तो इसकी खबर भी नहीं !”! अमृतराय (आश्चर्य से)–”ऐं! आपको ख़बर ही नहीं। आज आगरे के लाला धनुषधारीलाल ने बहुत अच्छा व्याख्यान दिया और विरोधियों के दांत खट्टे कर दिए।”” दाननाथ–” ईश्वर जानता है, मुझे ज़रा भी ख़बर नहीं थी, नहीं तो मैं अवश्य आता। मुझे तो लाला साहब के व्याख्यानों के सुनने का बहुत दिनों से शौक़ है। मेरा अभाग्य था कि ऐसा अच्छा समय हाथ से निकल ‘गया। किस बात पर व्याख्यान था?” अमृतराय–““जाति की उन्नति के सिवा दूसरी कौन सी बात हो सकती थी ? लाला साहब ने अपना जीवन इसी काम के हेतु अर्पण कर दिया है। आज ऐसा सच्चा देशभक्त और निष्काम जाति-सेवक इस देशमें नहीं है। यह दूसरी बात है कि कोई उनके सिद्धांतों को माने या न माने |
“बच्चों को सीख देने का जो श्रेष्ठ तरीका मुझे पता चला है वह यह है कि बच्चों की चाह का पता लगाया जाए और फिर उन्हें वही करने की सलाह दी जाए” ‐ हैरी ट्रूमेन
“I have found the best way to give advice to your children is to find what they want and then advise them to do it.” ‐ Harry Truman
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