सम्पूर्ण भगवद्गीता : हिंदी ऑडियो बुक | Sampurn Bhagavad Gita : Hindi Audiobook
पुस्तक का विवरण / Book Details | |
AudioBook Name | सम्पूर्ण भगवद्गीता / Sampurn Bhagavad Gita |
Author | Unknown |
Category | Audiobooks, धार्मिक / Religious, Granth |
Language | हिंदी / Hindi |
Duration | 14:17 hrs |
Source | Youtube |
Sampurn Bhagavad Gita Hindi Audiobook का संक्षिप्त विवरण : भगवद्गीता इस संसार में ईश्वरवाद संबंधी विज्ञान का सबसे पुराना एवं सबसे व्यापक रूप से पढ़ा जाने वाला ग्रन्थ है। गीतोपनिषद् के नाम से प्रख्यात भगवद्वीता, पिछले ५,००० वर्षों से भी पूर्व से योग के विषय पर सबसे मुख्य पुस्तक रहा है। वर्तमान समय के अनेक सांसारिक साहित्यों के विपरीत में, भगवद्गीता में किसी भी तरह की कोई भी मानसिक परिकल्पना नहीं है, और यह आत्मा, भक्ति-योग की प्रक्रिया, और परम-सत्य श्री कृष्ण के स्वभाव एवं पहचान के ज्ञान से परिपूर्ण है। इस रूप में, भगवद्गीता दुनिया का सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है, जो प्रज्ञता और प्रबोधन में सभी अन्य ग्रन्थों से ऊँचा है। भगवद्गीता का पहला शब्द ‘धर्म’ है। कभी कभी धर्म को गलत रूप से मजहब या मान्यता समझा जाता है, किंतु यह उचित नहीं है। धर्म वह सर्वोत्कृष्ट कर्तव्य या ज्ञान है जो हमारी चेतना को उच्च स्तर की ओर ले जाता है ताकि वह परम-सत्य के साथ सीधा सम्बन्ध स्थापित कर सके। इसे सनातन धर्म भी कहा जाता है, जो सभी जीवों की स्वाभाविक प्रकृती है। भगवद्गीता धर्म शब्द से प्रारंभ होता है – अत: हम शुरुआत से ही समझ सकते हैं कि भगवद्गीता किसी हठधर्मिता या कट्टरपंथी विचारधारा के बारे में नहीं है। वास्तव में, भगवद्गीता परम-सत्य की अनुभूति करने लिए एक सम्पूर्ण विज्ञान है।
इस संसार में युद्ध कोई नई बात नहीं है। हज़ारो वर्ष पहले भी कुरुक्षेत्र जैसा युद्ध, सही और गलत के बीच की असहमति का निश्चय करने एवं लौकिक धन-सम्पत्ति के लाभ हेतु होते थे। प्राचीन काल से लेकर आधुनिक समय तक, इस धरती पर एक भी दिन ऐसा नहीं बीता है की कहीं पर किसी कारण से युद्ध न हो रहा हो। यदी हम इतिहास में देखें तो लोग धन-सम्पत्ति के लोभ एवं कीर्ति हेतु, कभी कभी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए एकत्रित हुए हैं, लेकिन अधिकतर नीचता से ही हुए हैं। यही श्रृंखला अब इस इक्कीसवी सदी में स्वयं को दोहरा रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि युद्ध मानव सभ्यता में उनके कर्मों के भाग्य का एक अपरिहार्य नियति है। दूसरी ओर, शांति प्राप्त करना कठिन है। शांति पर चर्चा तो होती है, उसके लिए प्रार्थना भी की जाती है, किंतु कदाचित ही क्षणभर से अधिक समय के लिए उसके दर्शन होते हैं। सभी का अधिकतम जीवनकाल, भले ही वह कितने ही सरल क्यों न हो या तो अपने सामाजिक, या राजनैतिक, या आर्थिक, या मानसिक, या शारीरिक अस्तित्व को बनाए रखने के संघर्ष में ही कट जाता है। लगभग सभी के लिए, किसी भी बड़े संकटकाल की अल्पकालिक अभाव ही शांति कहलाती है। परन्तु शांति तो प्रज्ञा की एक अवस्था है, ना कि इस भौतिक जगत के बाहरी मामलों से संबंधित कोई दशा। शांति तो एक आंतरिक अनुभूति होती है। वेद-शास्त्रों की प्रज्ञता – श्रीमद् भागवतम् में कहा गया है, जीवो- जीवस्य- जीवनं- एक जीव दूसरे जीव का आहार बनता है। अत्यंत आणविक जीव-राशियों से लेकर सबसे विकसित जीव-राशियों तक, एक जीव का पोषण किसी अन्य जीव के विनाश से ही होता है। अतएव, भौतिक अस्तित्व का आधारभूत सिद्धांत ही मुलत: हिंसाग्रस्त होने के कारण दोषपूर्ण है। अत: शांति, लगभग हम सभी के लिए, अपने निर्दिष्ट कार्य के निर्वाह से, तथा इस विश्वास से प्राप्त होती है कि हमने जो किया, वह सही किया। इसी विचार में युद्ध और शांति के बीच का सूक्ष्म भेद निहित है – जिसे हम सही मानते हैं, या जिस विचार को मानने के लिए हम अनुकूलित हैं, दरसल क्या वह सही है ? सही और गलत, या कुछ मामलों में पुण्य और पाप में अंतर पहचानने की क्षमता, व्यापक रूप से हमारे ज्ञान के विस्तार पर आधारित होती है जहाँ से हम अपने निष्कर्ष निकालते हैं। स्वाभाविक है कि अपर्याप्त जानकारी हमें गलत निष्कर्ष पर पहुंचाती है। इसलिए ज्ञान के महत्तम स्रोत को खोज निकालना, परम सत्य के ज्ञान को खोज निकालना और उस ज्ञान की साधना करना ही हमारे परम हित में है। सारे विश्व में भगवद्गीता ही संभवत: व्यापक रूप से सबसे अधिक पठित ईश्वरवाद पर आधारित ग्रन्थ है। जो कुछ भी ज्ञान हम अन्य सहृश ग्रन्थों, जैसे कि धम्मपद, बाइबल, तोराह, कुरान आदि में प्राप्त कर सकते हैं, वह सब कुछ भगवद्गीता में भी उपलब्ध है। किंतु भगवद्गीता में ऐसा ज्ञान भी है जिसे और कहीं भी पाया नहीं जा सकता। अतएव भगवद्गीता, ज्ञान के सभी अन्य शाखाओं से उत्कृष्ट है। आगे इन अनुवृत्तियों में भगवद्गीता में निहित परम सत्य के ज्ञान की विस्तीर्णता की एक झलक प्रस्तुत की गई है।
गीता के १८ अध्यायों के नाम निम्नलिखित हैं-
अध्याय १ – अर्जुनविषादयोग
अध्याय २ – सांख्ययोग
अध्याय ३ – कर्मयोग
अध्याय ४ – ज्ञानसंन्यासयोग
अध्याय ५ – कर्मसंन्यासयोग
अध्याय ६ – आत्मसंयमयोग
अध्याय ७ – ज्ञानविज्ञानयोग
अध्याय ८ – अक्षरब्रह्मयोग
अध्याय ९ – राजविद्याराजगुह्ययोग
अध्याय १० – विभूतियोग
अध्याय ११ – विश्वरूपदर्शनयोग
अध्याय १२ – भक्तियोग
अध्याय १३ – क्षेत्रक्षेज्ञविभागयोग
अध्याय १४ – गुणत्रयविभागयोग
अध्याय १५ – पुरुषोत्तमयोग
अध्याय १६ – दैवासुरसंपविभागयोग
अध्याय १७ – श्रद्धात्रयविभागयोग
अध्याय १८ – मोक्षसंन्यासयोग
“सम्पन्नता कीमती साज-सामान एकत्रित करना नहीं बल्कि अपनी आवश्यकताओं को सीमित रखना है।” ‐ एपिक्टेटस
“Wealth consists not in having great possessions, but in having few wants.” ‐ Epictetus
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