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भटकती राख : भीष्म सहनी | Bhatkti Rakh : By Bhisma Sahni Hindi Book

भटकती राख : भीष्म सहनी | Bhatkti Rakh : By Bhisma Sahni Hindi Book
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भटकती राख पुस्तक पीडीएफ के कुछ अंश : गाँव में फसल कटाई पूरी हो चुकी थी। हंसते-चलते किसान घरों को लोट रहे थे। भरपूर फसल उतरी थी। किसानों के कोठे अनाज से भर गये थे। गृहिणियों के होंठों पर संगीत की धुनें फूट रही थीं। दूर-दूर तक फैली धरती की कोल इससे भी बढ़िया फसल देने के लिए मानो कसमसा रही थी।
रात उतर आयी थी और घर-घर में लोग खुशियां मना रहे थे। जब एक घर की खिड़की में लड़ी एक किसान युक्ती, जो देर तक मन्त्र-मुग्ध-सी बाहर का दृश्य देने जा रही थी, महमा चिल्ला उठी, “देखो तो खेत में जगह-जगह वह क्या चमक रहा है ?”
उसका युवा पति भागकर उसके पास आया बाहर खेत में जगह- जगह झिलमिल झिलमिल करते जैसे सोने के कण चमक रहे थे।
“यह क्या मिलमिला रहा है? क्या ये सचमन सोने के कम है?” पत्नी ने बड़ी व्ययता से पूछा।
“सोना कभी यों भी चमकता है? नहीं, यह सोना नहीं है।” “फिर क्या है ?”
उसका पति चुप रहा। उसने स्वयं इन चमकते कणों को पहले कभी नहीं देखा था।
पीछे कोठरी में बैठी किसान की बूढ़ी दादी बोल उठी, “यज्ञ सोना नहीं बेटी यह राजा की राख है, कभी-कभी चमकने लगती है।”

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पुस्तक का विवरण / Book Details
Book Name भटकती राख | Bhatkti Rakh
Author
CategoryNovel Book in Hindi PDF
Language
Pages 224
Quality Good
Download Status Not for Download
“कुछ लोग जिसे ग़लती से जीवन स्तर की बढ़ती कीमतें समझ बैठते हैं, वह वास्तव में बढ़ चढ़ कर जीने की कीमत होती है।” ‐ डग लारसन
“What some people mistake for the high cost of living is really the cost of living high.” ‐ Doug Larson

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