Bheegi Aag : By Vijay Dubey Hindi Book | भीगी आग : विजय दुबे द्वारा हिंदी पुस्तक
भीगी आग पुस्तक पीडीएफ के कुछ अंश :
‘भीगी आग, विजय दुबे, एडवोकेट का नवीनतम, विचारोत्तेजक और रोचक सामाजिक उपन्यास है। यद्यपि यह सामाजिक उपन्यास है, ‘दहेज प्रथा को विषय बिन्दु बनाया गया है किंतु सामाजिक प्रबंधन से जुड़ी अन्य संस्थाओं और व्यक्तियों को भी इसकी विवेचन परिधि में लाया गया है। पुलिस, न्यायालय, उद्योग, शासन, प्रशासन, अपराधतंत्र, सैन्य व्यवस्था आदि अनेकों संगठनों में व्याप्त विसंगतियों को प्रकाश में लाने का प्रयास किया गया है। एक ही कथानक द्वारा एक व्यापक परिवेश को आंदोलित करने का, उपन्यासकार का प्रयास सफल और सराहनीय है।
उपन्यासकार विजय, स्वभाव से ही एक सचेत चिंतक और विचारक हैं। एक अधिवक्ता होने के नाते उनका अनुभव क्षेत्र भी अति विशाल है। उनका ध्यान केवल न्याय के निर्णय दिलाने तक सीमित नहीं रहता है अपितु वह उन विसंगतियों की परख कर उन्हें प्रकाशित करने का भी यत्न करते हैं, जिनसे वास्तविक न्याय प्राप्ति में बाधा पड़ती है। न्याय से तात्पर्य केवल कानूनी न्याय नहीं है अपितु वह न्याय है जो सामाजिक भावनाओं और विवेक पर आधारित होता है भारत का वर्तमान समाज, समृद्धि की उस दौड़ की ओर अग्रसर हो रहा है, जहाँ स्वार्थ की प्रधानता है, और परमार्थ की न्यूनता। परिणामतः मानवता और महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए अपराध का मार्ग अपनाना, सामान्य साधन बन गया है सभी समाज और संस्थाएँ, भ्रष्टाचार के प्रवाह में आकंठ डूबते जा रहे हैं। अधिकार की माँग की होड़ में, कर्तव्य बोध लोप हो रहा है एक चिंतक और साहित्यकार का हृदय, भावुक और संवेदनशील होने से अधिक उद्वेलित हो उठता है और वह अपनी लेखनी के माध्यम से सामाजिक व्याधियों का निदान कर उनके प्रतिरोध और परिशमन का यत्न करता है। हमारे उपन्यासकार का
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| पुस्तक का विवरण / Book Details | |
| Book Name | भीगी आग | Bheegi Aag |
| Author | Vijay Dubey |
| Category | Literature Book in Hindi Novel Book in Hindi PDF |
| Language | हिंदी / Hindi |
| Pages | 268 |
| Quality | Good |
| Download Status | Not for Download |
“जीवन जीने के दो ही तरीके हैं। एक तो ऐसे जैसे कि कुछ भी चमत्कारी नहीं है। और दूसरा जैसे कि सब कुछ चमत्कारी है।” अल्बर्ट आइन्सटाइन
“There are only two ways to live your life. One is as though nothing is a miracle. The other is as though everything is a miracle.” Albert Einstein
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