रागराचनंजलि : अश्विनी भिड़े-देशपाण्डेय | Ragrachananjali : By Ashwini Bhide-Deshpandey Hindi Book
रागराचनंजलि पुस्तक पीडीएफ के कुछ अंश : जीवन के सारे ऋण उतारे नहीं जा सकते। कई ऋण ऐसे होते हैं जिन्हें मस्तक पर उठाकर ले चलने में ही जीवन की सार्थकता समाई होती है।
जिसकी इच्छा के परे पेड़ का पत्ता तक नहीं हिलता ऐसे विश्व के नियामक जगन्नियंता भगवान के आभार कोई किस तरह से प्रकट करे कि आपने मुझे भारतीय उपखण्ड में जन्म दिया और भारतीय संगीत के क्षेत्र में कार्यरत बनाया? अपने माता- पिता के ऋणों का भुगतान कोई कैसे करे कि आपने मेरे लालनपालन और परवरिश के अलावा मुझे भारतीयत्व के मूल्यों से संस्कारित किया? संगीतविद्या और संगीतकला के गहरे सागर में मुझे तैरना सिखाकर इस सागरतल में मौजूद अमूल्य रत्नों का दर्शन करानेवाले मेरे तीन गुरुजन- स्व. पं. नारायणराव दातार, श्रीमती माणिक भिडे और पं. रत्नाकर पई- इनका ऋण मैं कैसे चुका सकती हूँ? इन सारे ऋणों को सर आँखों पर उठाकर जीने में ही मैं धन्यता मानती हूँ।
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| पुस्तक का विवरण / Book Details | |
| Book Name | रागराचनंजलि | Ragrachananjali |
| Author | Ashwini Bhide-Deshpandey |
| Category | Novel Book in Hindi PDF |
| Language | हिंदी / Hindi |
| Pages | 144 |
| Quality | Good |
| Download Status | Not for Download |
“चोट मारने के लिए लोहे के गर्म होने की प्रतीक्षा न करें, लेकिन इसे चोट मार मार कर गर्म करें।” ‐ विलियम बी. स्प्रेग
“Do not wait to strike till the iron is hot; but make it hot by striking.” ‐ William B. Sprague
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