आखरी मंजिल : रविन्द्र वर्मा | Akhari Manjil : By Ravindra Verma Hindi Book
आखरी मंजिल पुस्तक पीडीएफ के कुछ अंश : 1857 के झाँसी के विद्रोह को कुचलने के बाद अंग्रेजों ने लक्ष्मीबाई को न पकड़ पाने की हताशा का बदला रानी महल को कोतवाली बना कर लिया था। जिस प्रांगण में रानी फव्वारों के इर्द-गिर्द विहार करती थीं, वह सिपाहियों और उनके घोड़ों का मैदान हो गया था। घोड़े कभी वहाँ लीद कर देते थे। जब आज़ादी मिली तब रानी महल मुक्त हुआ। अब यह अजायबघर था। प्रांगण वीरान था। बरामदों में प्राचीन मूर्तियों रखी थीं, जिनमें से कुछ खण्डित हो गयी थीं। इन मूर्तियों में एक पूरा संसार था जैसे पहली मंज़िल की दीवारों पर बने चित्रों में चित्र धुँधले वे जिनमें नाचती हुई स्त्रियाँ और उड़ते हुए पंछी और बरसता हुआ पानी था। पेड़ों के ऊपर बादल और नीचे नाचते हुए मोर थे। हॉल में और कोई नहीं था। माथव चित्रों के सामने देर तक ऐसे खड़ा रहा जैसे मोर, पंछी और स्त्रियाँ चित्रों से बाहर निकल आयेंगी। खिड़कियाँ खुली थीं। खिड़कियों से रोशनी और सड़क का शोर आ रहे थे। माधव खिड़की के पास सड़क की ओर मुँह करके खड़ा हो गया जैसे रानी एक सदी पहले खड़ी थी जब विद्रोही सिपाही घोड़ों पर महल के बाहर जमा हो गये थे! क्या इन सैनिकों में ऐसा कोई था जिसे अंग्रेज़ पीपल के पेड़ से लटका कर फाँसी देंगे?
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| पुस्तक का विवरण / Book Details | |
| Book Name | आखरी मंजिल | Akhari Manjil |
| Author | रविन्द्र वर्मा / Ravindra Verma |
| Category | Novel Book in Hindi PDF |
| Language | हिंदी / Hindi |
| Pages | 132 |
| Quality | Good |
| Download Status | Not for Download |
“उच्च खेती, मध्यम व्यापार और नीच नौकरी।” भारत की कहावत
“Agriculture is best, enterprise is acceptable, but avoid being on a fixed wage.” Indian proverb
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