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शिगाफ़ : मनीषा कुलश्रेष्ठ | Sigaf : By Manisha Kulshresth Hindi Book

शिगाफ़ : मनीषा कुलश्रेष्ठ | Sigaf : By Manisha Kulshresth Hindi Book
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शिगाफ़ पुस्तक पीडीएफ के कुछ अंश :
एक महीना ही तो हुआ है…जब से मैंने अपने घनेरे, ऐकान्तिक आराम में खलल डाल दिया है। मेरी जिन्दगी में छोटी-छोटी अशान्त चीजें घटने लगी हैं। कल रात तो इनकी संख्या असंख्य हो गई थी।
शुरुआत यहाँ से हुई- मैंने सपना देखा, वर्फ ढके पहाड़ के चक्करदार रास्ते में, घने देवदारों के नीचे गुनगुने अँधेरे में छिपा जो पार्वती का उजड़ा हुआ पुराना मन्दिर है, उसके गर्भगृह में दो मिट्टी के दीये जल रहे थे, उनके क्षीण प्रकाश में पार्वती के कालिका स्वरूप की मूर्ति रहस्यमय लग रही थी। चाँदनी रात में मन्दिर की काई लगी काली दीवारें आकाश की तरफ मुँह बाए खड़ी थीं। वहाँ सलेटी फिरन पहने एक औरत जो कि न हाथ जोड़े थी, न श्रद्धा से माथा नत था- बस, स्तब्ध खड़ी थी। पता नहीं कितनी क़ैफियतें लिए थी, कितनी शिकायतें, कितनी चुनौतियाँ, जिनका उत्तर रुद्र कालिका की मूर्ति के पास भी नहीं था। उस वक्त रात के बारह बजे थे शायद, मेरी नींद खुली और सपना में तुरन्त भूल गई। मैं पढ़ते-पढ़ते सो गई थी। न केवल ट्यूब लाइट बुझाना बल्कि अपने कमरे का दरवाजा बन्द करना भी भूल गई थी। मैंने आधी नींद में दरवाज़े को ताला लगाने से पहले, दरवाज़े का एक पल्ला ज़रा-सा खोलकर बाहर देखा। बहुत ठंडी हवा चल रही थी…हवा में शायद कुछ बूँदें भी शामिल रही होंगी जो मेरे चेहरे पर आ गिरीं मगर मुझे लगा कि मेरे चेहरे पर बर्फ गिर रही है। तभी मैंने अपने सामनेवाले घर में एक लड़की को खड़े देखा।

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पुस्तक का विवरण / Book Details
Book Name शिगाफ़ | Sigaf
Author
CategoryFiction Book in Hindi PDF Literature Book in Hindi Novel Book in Hindi PDF Story Book PDF in Hindi
Language
Pages 264
Quality Good
Download Status Not for Download
“जब तक किसी व्यक्ति द्वारा अपनी संभावनाओं से अधिक कार्य नहीं किया जाता है, तब तक उस व्यक्ति द्वारा वह सब कुछ नहीं किया जा सकेगा जो वह कर सकता है।” हेनरी ड्रम्मन्ड
“Unless a man undertakes more than he possibly can do, he will never do all that he can.” Henry Drummond

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