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Sunya Se Shikhar : By Virendra Kumar Gupt Hindi Book | शून्य से शिखर : वीरेंद्र कुमार गुप्त द्वारा हिंदी पुस्तक

Sunya Se Shikhar : By Virendra Kumar Gupt Hindi Book | शून्य से शिखर : वीरेंद्र कुमार गुप्त द्वारा हिंदी पुस्तक
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शून्य से शिखर पुस्तक पीडीएफ के कुछ अंश : 
सदानंद भौचक रह गया। एक युवा संन्यासी के रूप में बरसों से वह घर-घर जाकर भिक्षा मांगता रहा है। आज तक किसी गृहपति ने, उसने उसे भिक्षा दी हो या नहीं, वह नहीं कहा जो आज उसने सुना। गृहपति ने कठोर लहजे में कोई अपशब्द नहीं कहा। पर हाथ जोड़ कर विनम्र स्वर में जो वह कह गया, वह उसके अन्तराल में उतर गया। वह तभी से उसे निरन्तर व्याकुल किए हुए है। उसके बाद वह अगले द्वार पर अलख नहीं जगा पाया और मन में उठी हलचल को लेकर, कर एक दिशा में चल दिया। क्या कहा था उस गृहपति ने? “मैं भिक्षा मांगना और मिक्षा देना दोनों को ही पाप समझता हूं।” क्यों? कैसे? हम संन्यासी तो मिक्षा पर ही टिके हैं। गृहत्यागी संन्यासियों द्वारा भिक्षा की याचना कोई अनैतिक कर्म कभी नहीं माना गया। गृहस्थों द्वारा भिक्षा दान को एक पुण्य कर्म की प्रतिष्ठा सदा से मिलती आई है। तब वह व्यक्ति ऐसी बात कैसे कह गया? क्या मैं आज तक पाप ही अर्जित करता आया हूं? उस व्यक्ति की दृष्टि से तो पाप ही करता रहा हूं मैं । पर उस गृहपति की बात का आधार क्या है? लाखों संन्यासी हैं जो भिक्षा पर या सेठों द्वारा आश्रमों, संस्थाओं को दिये गये दान पर ही पलते हैं। क्या वे सब पाप ही अर्जित कर रहे हैं? इन प्रश्नों के उत्तर कहां मिलेंगे? कौन देगा? उस व्यक्ति ने यह बात चिन्तन से कही है या एक उचंग या अपने किसी कटु अनुभव में से कह डाली है? उस सज्जन से बात करनी होगी। गुरुदेव या किसी अन्य सन्त से जिज्ञासा व्यर्थ होगी, क्योंकि वे आत्मा के कल्याण के लिये संन्यास मार्ग के पक्ष में ही पूर्वाग्रहग्रस्त हैं।

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पुस्तक का विवरण / Book Details
Book Name शून्य से शिखर | Sunya Se Shikhar
CategoryLiterature Book in Hindi Novel Book in Hindi PDF
Language
Pages 136
Quality Good
Download Status Not for Download
“स्वास्थ्य की हानि होने पर न तो प्रेम, न ही सम्मान, न ही धन-दौलत और न ही बल द्वारा हृदय को खुशी मिल सकती है।” ‐ जॉन गे
“Nor love, not honour, wealth nor power, can give the heart a cheerful hour when health is lost.” ‐ John Gay

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