अकथ : रणविजय सिंह सत्यकेतु | Akath : By Ranvijay Singh Satyaketu Hindi Book
अकथ पुस्तक पीडीएफ के कुछ अंश : दो साल पहले इलाके में यह खबर आग की तरह फैल गयी थी कि नूरमहल बिक गया। हर कहीं इसकी चर्चा होती रही। कहनेवाले दबी जबान से कहते सुननेवाले दाँतों तले उँगली दबा लेते।
रियासतदारों ने चाहे जितने जुल्म ढाए हों, मगर रियासतवालों के लिए लोगों के मन में कहीं न कहीं आदर का भाव दबा छिपा था जो एकदम से निकलकर बाहर तैरने लगा। नूरमहल चाय-पान की दुकान हो या कोई बैठकखाना, जहां कहीं चार जने जमा होते, और फिर रियासतदारों की चर्चा शुरू हो जाती।
“करीमनगर रियासत की नाक… नूरमहल… आखिर बिक गया नहीं बचा सके दौलत अली ऐशो-आराम में डूबकर पहले गिरवी रखा, अब बीबी की बातों में आकर बेच ही डाला।”
” करते भी क्या, बेटे भी तो नालायक ही निकले। लानत है लियाकत की जवानी और मर्दानगी पर बेगम के कहे बगैर साँस तक नहीं छोड़ता। न लाज न लिहाज।” ‘यह छैल छबीली बेगम भी खूब आयी सुसरी जो चीज नजर की गयी, उसे ही बिकवा दिया।”
| पुस्तक का विवरण / Book Details | |
| Book Name | अकथ | Akath |
| Author | Ranvijay Singh |
| Category | Kahani Sangrah Book in Hindi PDF Literature Book in Hindi |
| Language | हिंदी / Hindi |
| Pages | 148 |
| Quality | Good |
| Download Status | Not for Download |
“हमारी महानतम विशालता कभी भी न गिरने में नहीं अपितु हर बार गिरने पर फिर उठने में निहित होती है।” ‐ कंफ्यूशियस
“Our greatest glory consists not in never falling, but in rising every time we fall.” ‐ Confucius
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