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भारतीय संस्कृति की भूमिका : हृदय नारायण दीक्षित | Bhartiya Sanskriti Ki Bhumika : By Hridaya Narayan Dikshit Hindi Book

भारतीय संस्कृति की भूमिका : हृदय नारायण दीक्षित | Bhartiya Sanskriti Ki Bhumika : By Hridaya Narayan Dikshit Hindi Book
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भारतीय संस्कृति की भूमिका पुस्तक पीडीएफ के कुछ अंश : भारत में प्राचीन संस्कृति के प्रति उपेक्षा भाव है। इसके बुरे असर भी साफ दिखाई पड़ रहे हैं। परिवार संस्था टूट रही है। विवाह संस्था की बारी है। व्यक्ति व्यक्ति के बीच सुस्थापित स्नेहभाव को जगह ‘बाजार भाव’ ने ली है। अपनत्व और ममत्व की भावभूमि गड़बड़ा गयी है। मनुष्य अब क्रेता या विक्रेता की भूमिका में हैं। राजनीतिक दलों के लिए वे सिर्फ मतदाता हैं। समरसता और अन्तरंगता के मूल्य गड़बड़ा गये हैं। राष्ट्र की आंतरिक ऊर्जा में छीजन है। ऐसे में स्वाभाविक ही “क पन्थाः मार्ग क्या है” का मूलभूत प्रश्न उठता है।
का जन्म सृष्टि की अद्भुत भारत के दर्शन में कोई एक देवदूत एक ईश्वरीय ग्रन्थ की परम्परा नहीं है। यहाँ जोवन दृष्टि और मार्ग पर निरन्तर प्रश्न हुए हैं। प्रश्न घटना है। आदिम मनुष्य के सामने भरी पूरी प्रकृति थी धरती का रंग मटमैला था, लेकिन वनस्पतियाँ हरीतिमा से भरी पूरी रंग बिरंगे फूल थे। चहचहाती चिड़िया थीं, ऊपर नीले रंग का आसमान, आसमान छूने को व्याकुल पक्षी थे। प्रवाहमान नदियाँ बादल थे, बिजली थी, वर्षा थी, शीत था, ऊष्मा थी। उदय अस्त होता सूर्य था पटता बढ़ता चाँद था झिलमिल तारे थे। जन्म था, मृत्यु थी एक विराट कौतूहल था। इसी कौतूहल से जिज्ञासा का जन्म हुआ, जिज्ञासा से जन्मे प्रश्न ऋवेद (10.12.9) के ऋषि ने कहा “जब न सत् थान असत् न संसार न आकाश, इस धुंध का आवरण क्या था? गहन अंधकार के पीछे क्या था ? कहाँ है अथ जहाँ से यह सर्जन फूटा ? किसने जाना ? देवता भी तो सृष्टि के बाद पैदा हुए सर्वोच्च आकाश में बैठा महाशासक भी अपना आदि जानता है या नहीं ?” ऐसे ही प्रश्नों के उत्तर खोजते रहने की परम्परा से भारतीय संस्कृति के मूल तत्वों का विकास हुआ उपनिषद् ऐसे ही दार्शनिक प्रश्नों उत्तरों का संकलन है।

पुस्तक का विवरण / Book Details
Book Name भारतीय संस्कृति की भूमिका | Bhartiya Sanskriti Ki Bhumika
Author
Categoryसंस्कृति | Culture Hindi Books Bhartiya Sanskriti In Hindi Books History Book in Hindi
Language
Pages 252
Quality Good
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One Quotation / एक उद्धरण “बुद्धिमान व्यक्तियों की प्रंशसा की जाती है; धनवान व्यक्तियों से ईर्ष्या की जाती है; बलशाली व्यक्तियों से डरा जाता है, लेकिन विश्वास केवल चरित्रवान व्यक्तियों पर ही किया जाता है।” – अल्फ्रेड एडलर
“Men of genius are admired, men of wealth are envied, men of power are feared; but only men of character are trusted.” – Alfred Adler

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