रह गई दिशाएं इसी पार : संजीव | Raha Gayi Disaen Isi Par : By Sanjeev Hindi Book
राह गई दिशाएं इसी पार पुस्तक पीडीएफ के कुछ अंश : सृष्टि और संहार, जीवन और मृत्यु के बफर जोन पर खड़े आदमी की नियति से साक्षात्कार करता संजीव का यह उपन्यास हिन्दी साहित्य में जैविकी पर रचा गया पहला उपन्यास है उपन्यास के पारम्परिक ढाँचे में गैर पारम्परिक हस्तक्षेप और तज्जनित रचाव और रसाव इसकी खास पहचान है। निरंतर नए से नए और वर्जित से वर्जित विषय के अवगाहनकर्ता संजीव ने इसमें अपने ही बनाए दायरों का अतिक्रमण किया है और अपने ही गढ़े मानकों को तोड़ा है।
मिथ, इतिहास, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नए से नए विषय तथा चिन्तन की प्रयोग भूमि है यह उपन्यास और यह जीवन और मृत्यु के दोनों छोरों के आर-पार तक ढलकता ही चला गया है, जहाँ काल अनंत है, जहाँ दिशाएँ छोटी पड़ जाती है, जहाँ गहराइयाँ अगम हो जाती हैं और व्याप्तियाँ अगोचर…!
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| पुस्तक का विवरण / Book Details | |
| Book Name | रह गई दिशाएं इसी पार | Raha Gayi Disaen Isi Par |
| Category | Literature Book in Hindi Novel Book in Hindi PDF |
| Language | हिंदी / Hindi |
| Pages | 320 |
| Quality | Good |
| Download Status | Not for Download |
“गति और प्रगति में संदेह न करें। कोल्हू के बैल दिन भर चलते हैं लेकिन कोई प्रगति नहीं करते है।” ‐ अल्फ्रेड ए. मोन्टापर्ट
“Do not confuse motion and progress. A rocking horse keeps moving but does not make any progress.” ‐ Alfred A. Montapert
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