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अदा पर शायरी Read | Ada par Shayari PDF Download

Ada par Shayari Read | अदा पर शायरी PDF Download
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Ada par Shayari

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इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं
– मिर्ज़ा ग़ालिब

हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना
हसीनों को भी कितना सहल है बिजली गिरा देना
– अकबर इलाहाबादी

अंदाज़ अपना देखते हैं आइने में वो
और ये भी देखते हैं कोई देखता न हो
– निज़ाम रामपुरी

पूछा जो उन से चाँद निकलता है किस तरह
ज़ुल्फ़ों को रुख़ पे डाल के झटका दिया कि यूँ
– आरज़ू लखनवी

ये जो सर नीचे किए बैठे हैं
जान कितनों की लिए बैठे हैं
– जलील मानिकपूरी

पहले इस में इक अदा थी नाज़ था अंदाज़ था
रूठना अब तो तिरी आदत में शामिल हो गया
– आग़ा शाएर क़ज़लबाश

आप ने तस्वीर भेजी मैं ने देखी ग़ौर से
हर अदा अच्छी ख़मोशी की अदा अच्छी नहीं
– जलील मानिकपूरी

आफ़त तो है वो नाज़ भी अंदाज़ भी लेकिन
मरता हूँ मैं जिस पर वो अदा और ही कुछ है
– अमीर मीनाई

निगाहें इस क़दर क़ातिल कि उफ़ उफ़
अदाएँ इस क़दर प्यारी कि तौबा
– आरज़ू लखनवी

अदा से देख लो जाता रहे गिला दिल का
बस इक निगाह पे ठहरा है फ़ैसला दिल का
– असद अली ख़ान क़लक़

अदा आई जफ़ा आई ग़ुरूर आया हिजाब आया
हज़ारों आफ़तें ले कर हसीनों पर शबाब आया
– नूह नारवी

गुल हो महताब हो आईना हो ख़ुर्शीद हो मीर
अपना महबूब वही है जो अदा रखता हो
– मीर तक़ी मीर

अदाएँ देखने बैठे हो क्या आईने में अपनी
दिया है जिस ने तुम जैसे को दिल उस का जिगर देखो
– बेख़ुद देहलवी

ज़माना हुस्न नज़ाकत बला जफ़ा शोख़ी
सिमट के आ गए सब आप की अदाओं में
– कालीदास गुप्ता रज़ा

इस अदा से मुझे सलाम किया
एक ही आन में ग़ुलाम किया
– आसिफ़ुद्दौला

साथ शोख़ी के कुछ हिजाब भी है
इस अदा का कहीं जवाब भी है
– दाग़ देहलवी

करे है अदावत भी वो इस अदा से
लगे है कि जैसे मोहब्बत करे है
– कलीम आजिज़

उम्र भर मिलने नहीं देती हैं अब तो रंजिशें
वक़्त हम से रूठ जाने की अदा तक ले गया
– फ़सीह अकमल

ख़ूब-रू हैं सैकड़ों लेकिन नहीं तेरा जवाब
दिलरुबाई में अदा में नाज़ में अंदाज़ में
– लाला माधव राम जौहर

पर्दा-ए-लुत्फ़ में ये ज़ुल्म-ओ-सितम क्या कहिए
हाए ज़ालिम तिरा अंदाज़-ए-करम क्या कहिए
– फ़िराक़ गोरखपुरी

वो कुछ मुस्कुराना वो कुछ झेंप जाना
जवानी अदाएँ सिखाती हैं क्या क्या
– बेख़ुद देहलवी

तन्हा वो आएँ जाएँ ये है शान के ख़िलाफ़
आना हया के साथ है जाना अदा के साथ
– जलील मानिकपूरी

बर्क़ को अब्र के दामन में छुपा देखा है
हम ने उस शोख़ को मजबूर-ए-हया देखा है
– हसरत मोहानी

लगावट की अदा से उन का कहना पान हाज़िर है
क़यामत है सितम है दिल फ़िदा है जान हाज़िर है
– अकबर इलाहाबादी

ये अदाएँ ये इशारे ये हसीं क़ौल-ओ-क़रार
कितने आदाब के पर्दे में है इंकार की बात
– ख़ालिद यूसुफ़

मार डाला मुस्कुरा कर नाज़ से
हाँ मिरी जाँ फिर उसी अंदाज़ से
– जलील मानिकपूरी

ज़ालिम ने क्या निकाली रफ़्तार रफ़्ता रफ़्ता
इस चाल पर चलेगी तलवार रफ़्ता रफ़्ता
– दाग़ देहलवी

बे-ख़ुद भी हैं होशियार भी हैं देखने वाले
इन मस्त निगाहों की अदा और ही कुछ है
– अबुल कलाम आज़ाद

जाम ले कर मुझ से वो कहता है अपने मुँह को फेर
रू-ब-रू यूँ तेरे मय पीने से शरमाते हैं हम
– ग़मगीन देहलवी

अदा अदा तिरी मौज-ए-शराब हो के रही
निगाह-ए-मस्त से दुनिया ख़राब हो के रही
– जलील मानिकपूरी

बोले वो मुस्कुरा के बहुत इल्तिजा के ब’अद
जी तो ये चाहता है तिरी मान जाइए
– बेख़ुद देहलवी

बनावट वज़्अ’-दारी में हो या बे-साख़्ता-पन में
हमें अंदाज़ वो भाता है जिस में कुछ अदा निकले
– इमदाद अली बहर

फूल कह देने से अफ़्सुर्दा कोई होता है
सब अदाएँ तिरी अच्छी हैं नज़ाकत के सिवा
– जलील मानिकपूरी

पामाल कर के पूछते हैं किस अदा से वो
इस दिल में आग थी मिरे तलवे झुलस गए
– आग़ा शाएर क़ज़लबाश

कुछ इस अदा से मोहब्बत-शनास होना है
ख़ुशी के बाब में मुझ को उदास होना है
– राहुल झा

ऐ तराह-दार-ए-इश्वा-तराज़-ए-दयार-ए-नाज़
रुख़्सत हुआ हूँ तेरे लिए दिल-गली से मैं
– जौन एलिया

गुलाब ऐसे ही गुलाब नहीं होता
ये अदा काँटों में पलने के बाद आती है

वो दुश्मन ही सही यारों हमारा
पर उसकी जो अदा थी क्या अदा थी
– नौशाद अली

ओ मस्त-ए-नाज़ हुस्न तुझे कुछ ख़बर भी है
तुझ पर निसार होते हैं किस किस अदा से हम
– जिगर मुरादाबादी

आप ने तस्वीर भेजी मैंने देखी ग़ौर से
हर अदा अच्छी ख़ामोशी की अदा अच्छी नहीं
– जलील मानिकपुरी

मत चाहो किसी को इतना टूटकर ज़िन्दगी में,
अगर बिछड़ गये तो हर एक अदा तंग करेगी !!

दिल तुझे नाज़ है जिस शख़्स की दिलदारी पर
देख अब वो भी उतर आया अदाकारी पर
– सलीम कौसर

फ़िदा करता रहा दिल को हसीनों की अदाओं पर
मगर देखी न उस आईने में अपनी अदा तू ने
– अल्लामा इक़बाल

हँस के कर लेते हैं वो अपने सितम का ए’तिराफ़
और उन की इस अदा पर क़त्ल हो जाते हैं हम
– नाज़िर सिद्दीक़ी

अपनी आँखें घर पे रख कर भी तमाशाई हैं लोग
और उनकी इस अदा पर ख़ुश हैं बाज़ीगर बहुत
– हकीम मंज़ूर

जिसपे दिल आया है वो शीरीं-अदा मिलता नहीं
ज़िंदगी है तल्ख़ जीने का मज़ा मिलता नहीं
– अकबर इलाहाबादी

दुश्मन के घर से चल के दिखा दो जुदा जुदा
ये बाँकपन की चाल ये नाज़-ओ-अदा की है
– बेख़ुद देहलवी

जान लेनी थी साफ़ कह देते
क्या ज़रूरत थी मुस्कुराने की
– अज्ञात

नाज़ है गुल को नज़ाकत पे चमन में ऐ ‘ज़ौक़’
उस ने देखे ही नहीं नाज़-ओ-नज़ाकत वाले
– शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

तुझ को देखा न तिरे नाज़-ओ-अदा को देखा
तेरी हर तर्ज़ में इक शान-ए-ख़ुदा को देखा
– मिर्ज़ा मायल देहलवी

सूरत तो इब्तिदा से तिरी ला-जवाब थी
नाज़-ओ-अदा ने और तरह-दार कर दिया
– जलील मानिकपुरी

नमाज़ अपनी अगरचे कभी क़ज़ा न हुई
अदा किसी की जो देखी तो फिर अदा न हुई
– अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ
देखा जो मुझ को छोड़ दिए मुस्कुरा के हाथ
– निज़ाम रामपुरी

अपनी ही तेग़-ए-अदा से आप घायल हो गया
चाँद ने पानी में देखा और पागल हो गया
– मुनीर नियाज़ी

ज़माना हुस्न नज़ाकत बला जफ़ा शोख़ी
सिमट के आ गए सब आपकी अदाओं में
– कालीदास गुप्ता रज़ा

तुम फिर उसी अदा से अंगड़ाई ले के हँस दो
आ जाएगा पलट कर गुज़रा हुआ ज़माना
– शकील बदायूनी

कुछ इस अदा से आपने पूछा मिरा मिज़ाज
कहना पड़ा कि शुक्र है परवरदिगार का
– जलील मानिकपूरी

जो तिरे दिल को लुभाए वो अदा मुझ में नहीं
क्यूँ न तुझ को कोई तेरी ही अदा पेश करूँ
– साहिर लुधियानवी

ज़िंदगी एक फ़न है लम्हों को
अपने अंदाज़ से गँवाने का
– जॉन एलिया

ग़म बयाँ करने का कोई और ढंग ईजाद कर
तेरी आँखों का ये पानी तो पुराना हो गया
– वसीम बरेलवी

मैं जिसे प्यार का अंदाज़ समझ बैठा हूँ
वो तबस्सुम वो तकल्लुम तिरी आदत ही न हो
– साहिर लुधियानवी

फ़िक्र-ए-ईजाद में गुम हूँ मुझे ग़ाफ़िल न समझ
अपने अंदाज़ पर ईजाद करूँगा तुझ को
– जॉन एलिया

कही पर कहूं, या अनकही पर कहूं
साकी बता मैं किस अंदाज़ पर कहूं
– अनीमेश चौबे

नाज़ क्या इस पे जो बदला है ज़माने ने तुम्हें
मर्द हैं वो जो ज़माने को बदल देते हैं
– अकबर इलाहाबादी

है नाज़ मुझको अपनी हिंदी ज़बाँ पे यारो
हिंदी हैं हम वतन हैं ये देश सबसे आला
– डॉ. मोहसिन खान

तेरी निगाह-ए-नाज़ से छूटे हुए दरख़्त
मर जाएँ क्या करें बता सूखे हुए दरख़्त
– वरुण आनंद

इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं
होंटों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं
– जावेद अख्तर

दिल में मेरे अब अब्र भी तूफ़ान ही लाने लगे
अंदाज़ तेरे दिल-कशी के ध्यान ही आने लगे
– मनोहर शिंपी

अपने जादू पे बहुत नाज़ न कर जादूगर
कोई जादू हो वो बंगाल में कट जाता है
– उस्मान मिनाई

अजब अंदाज़ से ये घर गिरा है
मिरा मलबा मिरे ऊपर गिरा है
– अनीस मोइन

मिलता नहीं जहाँ में कोई काम ढंग का
इक इश्क़ था सो वो भी कई बार कर चुके
– नोमान शौक़

यही सोच कर ख़ुद पे हम नाज़ करते
कि हम उनकी पहली मुहब्बत रहे हैं
– हर्ष सक्सेना

हम खड़े रहते हैं मुजरिम की तरह महफ़िल में
उनका अंदाज़ वकीलों की तरह होता है
– शाकिर देहलवी

है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़
अहल-ए-नज़र समझते हैं उस को इमाम-ए-हिंद
– अल्लामा इक़बाल

मुझ पर निगाह-ए-नाज़ का जब जादू चल गया
मैं रफ़्ता रफ़्ता क़ैस की सोहबत में ढल गया
– शजर अब्बास

हुस्न को हुस्न बनाने में मिरा हाथ भी है
आप मुझ को नज़र-अंदाज़ नहीं कर सकते
– रईस फ़ारोग़

अजब अंदाज़ के शाम-ओ-सहर हैं
कोई तस्वीर हो जैसे अधूरी
– असद भोपाली

तुझे ये दोस्त अपना फिर पुराना याद आएगा
तुझे फिर ये मुहब्बत का ज़माना याद आएगा
– ज़ीशान काविश

दुनिया भर की राम-कहानी किस किस ढंग से कह डाली
अपनी कहने जब बैठे तो एक एक लफ़्ज़ पिघलता था
– ख़लीलुर रहमान आज़मी

हरीम-ए-नाज़ के पर्दे में जो निहाँ था कभी
उसी ने शोख़ अदाएँ दिखा के लूट लिया
– अनवर ताबान

जलता नहीं हूँ आतिश-ए-रुख़सार देख कर
करता हूँ नाज़ ताक़त-ए-दीदार देख कर
– शेख़ सोहैल

मुझे भी अपनी क़िस्मत पर हमेशा नाज़ रहता है
सुना है ख़्वाहिशें उनकी भी शर्मिंदा नहीं रहती
– पप्पू लखनवी

वो आईना भी ख़ुद पर करता होगा बेहद नाज़
जिस पर देखा करती होगी यार वो सूरत अपनी
– संदीप डबराल ‘सेंडी’

है दुआ याद मगर हर्फ़-ए-दुआ याद नहीं
मेरे नग़्मात को अंदाज़-ए-नवा याद नहीं
– सागर सिद्दीकी

हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और
– मिर्ज़ा ग़ालिब

उँगली हमारी तुम से न पकड़ी गई कभी
फिर भी तुम्हारे नाज़ उठाए फिरे हैं हम
– शान मनराल

यार इतना नाज़ भी मत कर नए अहबाब पर
आज जिसका ख़ास है माज़ी मैं उसका ख़ास था
– संदीप डबराल ‘सेंडी’

अपने दीवाने को देकर दर्द ओ ग़म
नाज़ ख़ुद पे किस क़दर करता है वो
– अजीतेंद्र आज़ी तमाम

जिसका तारा था वो आँखें सो गई हैं
अब कहाँ करता है मुझ पर नाज़ कोई
– आलोक श्रीवास्तव

इक ये भी तो अंदाज़-ए-इलाज-ए-ग़म-ए-जाँ है
ऐ चारागरो दर्द बढ़ा क्यूँ नहीं देते
– अहमद फ़राज़

हम तिरे किरदार तेरे ढंग पे मरते हैं
हैं बहुत कमज़र्फ़ जो भी रंग पे मरते हैं
– अवतार सिंह जस्सर

मसलहत है फरेब-ए-हसीं
एक झूठी किरन की तरह
– रेख्ता पतौलवी

धौल-धप्पा उस सरापा नाज़ का शेवा नहीं
हम ही कर बैठे थे ‘ग़ालिब’ पेश-दस्ती एक दिन
– मिर्ज़ा ग़ालिब

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है
– मिर्ज़ा ग़ालिब

नाज़-ओ-नख़रे क्या उठाए, क्या सुने उस के गिले
देखते ही देखते लड़की घमंडी हो गई
– काज़िम रिज़वी

अजब अंदाज़ से ये दिल फ़िदा है
अगर वो रूठ जाए रूठने दो
– मीम अलिफ़ शज़

हम तो तेरे चाहने वाले हुआ करते थे इक रोज़
तू हमें कैसे नज़र अंदाज़ कर सकता है सब में
– शिव

परतव से जिस के आलम-ए-इम्काँ बहार है
वो नौ-बहार-ए-नाज़ अभी रहगुज़र में है
– अली सरदार जाफ़री

वफ़ा तुम से करेंगे दुख सहेंगे नाज़ उठाएँगे
जिसे आता है दिल देना उसे हर काम आता है
– आरज़ू लखनवी

बादबाँ नाज़ से लहरा के चली बाद-ए-मुराद
कारवाँ ईद मना क़ाफ़िला-सालार आया
– जोश मलीहाबादी

नज़रंदाज़ करने का भी वो अंदाज़ अच्छा था
चलो ये भी हुनर उस नासमझ के नाम करते हैं
– रोहित कुमार राजपूत

एक तरीका एब्स बनाने का सीखो
योग करो या घुट घुट के मरना सीखो
– विजय पॉटर सिंहाड़िया

दर्द ऐसा नजरअंदाज नहीं कर सकते
जब्त ऐसा की हम आवाज नहीं कर सकते
– इस्माईल राज़

दर्द सहने का अलग अंदाज़ है
जी रहे हैं हम अदा की ज़िंदगी
– फ़रहत अब्बास शाह

अलग अंदाज़ हैं दोनों के अपनी बात कहने के
मैं उसपे शेर कहता हूं, वो ताना मार देती है
– अंकित मौर्य

कुछ बातें अलग हैं उसकी, अंदाज़ निराले हैं उसके
आंखे अजब हैं उसकी, और बाल काले हैं उसके
– बिट्टू खान

मैं ने तुम से मोहब्बत करी है सनम
नाज़ नख़रे उठाऊॅं तो क्या हर्ज है
– विजय पॉटर सिंहाड़िया

हिज्र की जो मुसीबतें अ’र्ज़ कीं उस के सामने
नाज़-ओ-अदा से मुस्कुरा कहने लगा जो हो सो हो
– शाह नियाज़ अहमद बरेलवी

कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं रहे
जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे
– जिगर मुरादाबादी

अम्न मनम ख़तर मनम ज़हर मनम शकर मनम
नफ़्अ’ मनम ज़रर मनम मन न-मनम न-मन मनम
– शाह नियाज़ अहमद बरेलवी

अदा से हाथ उठने में गुल राखी जो हिलते हैं
कलेजे देखने वालों के क्या क्या आह छिलते हैं
– नज़ीर अकबराबादी

शह-ए-ख़ूबान-ए-मन रंगीं-क़बा नाज़ुक-अदा दारद
ब-हर ग़म्ज़: ब-हर इ’श्वः जहाने मुब्तला दारद
– अ’ली हुसैन अशरफ़ी

ख़ंजर कैसा फ़क़त अदा से
तड़पा तड़पा के मार डाला
– बेदम शाह वारसी

मैं न मानूँगा कि दी अग़्यार ने तर्ग़ीब-ए-क़त्ल
दुश्मनों से दोस्ती का हक़ अदा क्यूँकर हुआ
– अमीर मीनाई

सनम का नाज़-ओ-अंदाज़-ओ-अदा क्या
फ़क़ीर-ए-वारसी का मुद्दआ’ क्या
– हसन इमाम वारसी

इ’श्क़ अदा-नवाज़-ए-हुस्न हुस्न करिश्मा-साज़-ए-इ’श्क़
आज से क्या अज़ल से है हुस्न से साज़-बाज़-ए-इ’श्क़
– बेदम शाह वारसी

सँभालो तो तुम अपनी तेग़-ए-अदा को
मिरी जाँ-देही के हुनर देख लेना
– अकबर वारसी मेरठी

झूलो झूलना मुहम्मद बीबी-आमना के लाल
हुस्न है दिलकश अदा निराली
– संजर ग़ाज़ीपुरी

उफ़-रे बाद-ए-जोश-ए-जवानी आँख न उन की उठती थी
मस्ताना हर एक अदा थी हर इ’श्वा मस्ताना था
– बेदम शाह वारसी

दिलरुबाई की अदा यूँ न किसी ने पाई
मेरे सरकार से पहले मिरे सरकार के बा’द
– पुरनम इलाहाबादी

इस अदा से मैं ने देखे दाग़ अपने ख़ून के
इक तमाशा रोज़-ए-महशर उन का दामाँ हो गया
– मयकश अकबराबादी

मुज़्तर’ उस ने सवाल-ए-उल्फ़त पर
किस अदा से कहा ख़ुदा न करे
– मुज़्तर ख़ैराबादी

मिरा सज्दा-ए-मोहब्बत कभी इस तरह अदा हो
कि मिरी जबीं झुके जब न उठे तुम्हारे दर से
– जौहर वारसी

हम गुलशन-ए-फ़ितरत से जीने की अदा लेंगे
शाख़ों से लचक लेंगे काँटों से अना लेंगे
– फ़ना निज़ामी कानपुरी

वो पहली सब वफ़ाएँ क्या हुईं अब ये जफ़ा कैसी
वो पहली सब अदाएँ क्या हुईं अब ये अदा क्यूँ है
– मुज़्तर ख़ैराबादी

इ’श्क़ हर-आन नई शान-ए-नज़र रखता है
ग़मज़ा-ओ-इ’श्वा-ओ-अन्दाज़-ओ-अदा कुछ भी नहीं
– ज़हीन शाह ताजी

बट्ठ वहम ख़तरे दी अदा
डूझा नोही है हिक ख़ुदा
– ख़्वाजा ग़ुलाम फ़रीद

वो अदा-शनास-ए-ख़िज़ाँ हूँ मैं वो मिज़ाज-दान-ए-बहार हूँ
न है ए’तिबार-ए-ख़िज़ाँ मुझे न यक़ीन फ़स्ल-ए-बहार पर
– अज़ीज़ वारसी देहलवी

तिरी महफ़िल में जो आया ब-अंदाज़-ए-अ’जब आया
कोई लैला-अदा आया कोई मजनूँ-लक़ब आया
– अफ़क़र मोहानी

हर इक अदा को तिरी ला-जवाब कहते हैं
सितम को भी करम-ए-बे-हिसाब कहते हैं
– बर्क़ वारसी

वो आँखें वो ज़ुल्फ़ें वो रुख़ वो ग़म्ज़े वो नाज़-ओ-अदा
किस ने असीर-ए-दाम किया हम ख़ुद ही असीर-ए-दाम हुए
– सदिक़ देहलवी

तुम को अच्छा मुसलमाँ किया
और काफ़िर-अदा हो गए
– पुरनम इलाहाबादी

गर मिले इक बार मुझ को वो परी-वश कज-अदा
उस को ज़ाहिर कर दिखाऊँ दिल का मतलब दिल की बात
– किशन सिंह आरिफ़

हसीनों में वो गुल सब से जुदा है अपनी रंगत का
अदा का नाज़ का इश्वः का शोख़ी का शरारत का
– मोहम्मद अकबर वारसी

मिरा सर कट के मक़्तल में गिरे क़ातिल के क़दमों पर
दम-ए-आख़िर अदा यूँ सज्दा-ए-शुकराना हो जाए
– बेदम शाह वारसी

इक वो कि बे-कहे हमें देता है ने’मतें
इक हम कि हम से शुक्र अदा भी न हो सके
– वाजिद वारसी

जब तुम्हीं तुम हो हर अदा मेरी
फिर भला मुझ से कब जुदा हो तुम
– मरदान सफ़ी

ये आदाब-ए-मोहब्बत है तिरे क़दमों पे सर रख दूँ
ये तेरी इक अदा है फेर कर मुँह मुस्कुरा देना
– अब्दुल हादी काविश

ग़ज़ब है अदा चशम-ए-जादू-असर में
कि दिल पिस गया बस नज़र ही नज़र में
– राक़िम देहलवी

अदा-ओ-नाज़-ए-क़ातिल हूँ कभी अंदाज़-ए-बिस्मिल हूँ
कहीं मैं ख़ंदा-ए-गुल हूँ कहीं सोज़-ए-अ’नादिल हूँ
– कौसर ख़ैराबादी

गदाई में मिली शाही मुझे उस की इ’नायत से
भला क्यूँकर अदा हो शुक्र उस के लुत्फ़-ए-बे-हद का
– अख़्तर महमूद वारसी

इ’श्क़ से फिर ख़तरा-ए-तर्क-ए-वफ़ा होने लगा
फिर फ़रेब-ए-हुस्न सरगर्म-ए-अदा होने लगा
– हसरत मोहानी

मुझ से अदा हुआ है ‘जिगर’ जुस्तुजू का हक़
हर ज़र्रे को गवाह किए जा रहा हूँ मैं
– जिगर मुरादाबादी

कहाँ से जोगी की अदा और कहाँ आ’शिक़ की फबन
आतिश-ए-ग़म से जला जब से जलाया दिल-ओ-जान
– नज़ीर अकबराबादी

मक़ाम-ए-रहमत-ए-हक़ है तिरे दर की ज़मीं वारिस
अदा हो जाए मेरा भी कोई सज्दा यहीं वारिस
– क़ैसर शाह वारसी

हर सूरत-ए-मर्ग-ओ-ज़ीस्त अपनी है जुदा
उस लब ने जिलाया था अदा ने मारा
– अमीर मीनाई

क्या जानिए क्या हो गया अरबाब-ए-जुनूँ को
मरने की अदा याद न जीने की अदा याद
– जिगर मुरादाबादी

अदा ग़म्ज़े करिश्मे इश्वे हैं बिखरे हुए हर-सू
सफ़-ए-मक़्तल में या क़ातिल है या अंदाज़-ए-क़ातिल है
– मोहम्मद अकबर वारसी

मारा है ‘बयाँ’ को जिन ने ऐ शोख़
क्या जानिए कौन सी अदा थी
– एहसनुल्लाह ख़ाँ बयाँ

बता कर शोख़ियाँ उस को अदा की
डुबोई हम ने क़िस्मत मुद्दआ’ की
– राक़िम देहलवी

दरख़ुर्द-ए-सरज़निश नबूवद जुर्म-ए-आ’शिकाँ
शमशीर-ए-नाज़ व तेग़-ए-अदा रा निगाह-दार
– हसरत मोहानी

छुपा है मिक़्ना’ में किस अदा से
बना है पर्द:-नशीं सेहरा
– बेदम शाह वारसी

हर नाज़ तिरा ये कहता है हर एक अदा से ज़ाहिर है
कहने को तिरा आशिक़ हूँ मगर तू और नहीं मैं और नहीं
– रियाज़ ख़ैराबादी

आँसू बहा के दीदा-ए-जादू-तराज़ से
दिखला के इक अदा निगह-ए-फ़ित्ना-साज़ से
– रियाज़ ख़ैराबादी

दूर से ऐ निगह-ए-शौक़ बलाएँ ले ले
किस अदा से है नक़ाब-ए-रुख़-ए-ज़ेबा सेहरा
– रियाज़ ख़ैराबादी

दिलरुबाई का भी कुछ कुछ ढब उन्हें आने लगा
बात मतलब की इशारों में अदा करने लगे
– हसरत मोहानी

ख़्वाजा तोरी सूरत पे मैं वारी
नूरी प्रेम अदा पे मैं वारी
– संजर ग़ाज़ीपुरी

वो रहे ख़ुश हम से ‘मर्दां’ और कभी ना-ख़ुश रहे
दिल में हम को हर अदा उन की मगर भाती रही
– मरदान सफ़ी

तुझे देख ओ बुत-ए-ख़ुश-अदा फिरी आँख सारी ख़ुदाई से
वो जो याद रहती थी सूरतें उन्हें साफ़ दिल से भुला दिया
– औघट शाह वारसी

कुछ भीगी तालैं होली की कुझ नाज़ अदा के ढंग भरे
दिल भूले देख बहारों को और कानों में आहंग भरे
– नज़ीर अकबराबादी

इ’श्क़ तेरा जो ऐ दिलरुबा हो गया
था जो क़िस्मत का लिखा अदा हो गया
– संजर ग़ाज़ीपुरी

पुस्तक का विवरण / Book Details
Book Name अदा पर शायरी Read | Ada par Shayari PDF Download
CategoryBest Shayari PDF Books in Hindi
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“स्वयं पर विजय प्राप्त कर लेना सबसे श्रेष्ठ और महानतम विजय होती है।” ‐ प्लैटो
“To conquer oneself is the noblest and greatest triumph.” ‐ Plato

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